मैं हमेशा से मां बनना चाहती थ और विवाह करने, गर्भवती होने, और बच्चे होने के सपने देखती थे। परंतु विवाह के बाद गर्भावस्था के नकारात्मक परीक्षणों के बाद मेरे पति और मुझे एहसास हुआ कि हम बांझपन से संघर्ष कर रहे थे। महीनों तक डॉक्टर के चक्कर, परीक्षण और आसूँ बहाना चलते रहे। हम तूफान के बीच में थे। बांझपन के कारण मैं परमेश्वर की भलाई और उनकी विश्वासयोग्यता पर संदेह करने लगी।

अपनी यात्रा से मुझे यूहन्ना 6 में समुद्री तूफान में फसें चेलों की कहानी याद आती है। जब वे अंधेरे में तूफान की लहरों से जूझते हुए नाव में थे तब उन्होंने यीशु को झील पर चलकर उनकी ओर आते देखा। उन्होंने अपनी उपस्थिति से चेलों को शांत किया और कहा, “मैं हूं; डरो मत”(पद 20)।

चेलों के समान हम दोनों नहीं जानते थे कि हमारा तूफान क्या लाएगा; परंतु हमें शांति मिली, क्योंकि हम परमेश्वर को अधिक गहराई से जानने लगे, कि वो सदा विश्वासयोग्य और सच्चे हैं। यद्यपि जिस बच्चे के हमने सपने देखे थे वह हमें नहीं मिलेगा,  परन्तु हमने सीखा कि हमारे संघर्षों में हम परमेश्वर की शांतिदायक उपस्थिति अनुभव कर सकते हैं। क्योंकि वह हमारे जीवनों में सामर्थपूर्ण रूप से कार्य कर रहे हैं, इसलिए हमें चिंता करने की आवश्यकता नहीं है।