जमाइका में बढ़ते हुए, मेरे माता-पिता मेरी बहन और मुझको “अच्छे लोग” बनने में सहायता किये l हमारे घर में, अच्छा  का अर्थ था माता-पिता के प्रति आज्ञाकारिता, सच बोलना, स्कूल और कार्य में सफल, और कम से कम ईस्टर और क्रिसमस में चर्च जाना l मेरे विचार से अच्छा व्यक्ति बनने की यह परिभाषा सभी संस्कृतियों में सामान्य है l वस्तुतः, प्रेरित पौलुस ने, फिलिप्पियों 3 में अच्छा बनने की अपनी संस्कृति की परिभाषा द्वारा एक बड़ी बात कही l  

प्रथम शताब्दी का ईमानदार यहूदी, पौलुस, अपनी संस्कृति में नैतिक व्यवस्था को मानता था l वह “सही” परिवार में जन्म लिया, “सही” शिक्षा पायी, “सही” धर्म को माना l वह यहूदी रिवाज़ के अनुसार सही व्यक्ति का वास्तविक नमूना  था l पद 4 में पौलुस लिखता है कि वह अपने समस्त अच्छाईयों में घमंड कर सकता था l किन्तु, जितना भी वह अच्छा था, पौलुस ने अपने पाठकों से (और हमसे) कहा कि अच्छा होने के ऊपर कुछ और है l वह अच्छा होना जानता था, यद्यपि अच्छा बनना, परमेश्वर से प्रेम करना नहीं है l

पौलुस के अनुसार पद. 7-8 में यीशु को जानना परमेश्वर को प्रसन्न करना, है l पौलुस ने अपनी अच्छाइयों को “मसीह यीशु की पहिचान की उत्तमता” की तुलना में “कूड़ा” समझा l “हम अच्छे हैं-और हम परमेश्वर को प्रसन्न करते हैं-जब हमारी आशा और विश्वास केवल मसीह में है, अपनी अच्छाइयों में नहीं l