आपके पिता का नाम क्या है?
मध्यपूर्व के क्षेत्र में मोबाइल फ़ोन खरीदते समय, मुझसे कुछ ख़ास प्रश्न पूछे गए : नाम, राष्ट्रीयता, पता l किन्तु उसके बाद क्लर्क ने फॉर्म भरते समय पूछा, “आपके पिता का नाम क्या है? मैं चकित हुई, और मैंने सोचा यह क्यों ज़रूरी है l मेरी संस्कृति में यह ज़रूरी नहीं है, किन्तु मेरी पहचान के लिए यहाँ यह ज़रूरी था l कुछ संस्कृतियों में, वंशावली ज़रूरी है l
इस्राएली भी वंशावली का महत्त्व मानते थे l वे अपने कुलपिता अब्राहम पर घमंड करते थे, और उनकी सोच में उनका अब्राहम का कुल का होना ही उनको परमेश्वर की संतान बनाता था l उनके अनुसार, उनकी मानवीय वंशावली उनके आत्मिक परिवार से जुड़ा था l
सैंकड़ों वर्ष बाद यहूदियों से बातचीत में, यीशु ने स्पष्ट किया कि यह ऐसा नहीं है l वे अब्राहम को अपना भौतिक पिता मान सकते थे, किन्तु यदि वे उससे प्रेम नहीं करते थे जिसे पिता ने भेजा था तो वे परमेश्वर के परिवार के नहीं थे l
आज भी वही सार्थक है l हम अपना भौतिक परिवार नहीं चुनते हैं, किन्तु हम अपना आत्मिक परिवार चुन सकते हैं जिसके हम हिस्से हैं l यीशु के नाम पर विश्वास करके, परमेश्वर हमें उसकी संतान बनने का अधिकार देता है (यूहन्ना 1:12) l
आपका आत्मिक पिता कौन है? क्या आपने यीशु का अनुसरण करने का चुनाव किया है? आज आप अपने पापों की क्षमा के लिए यीशु पर विश्वास करके परमेश्वर के परिवार का हिस्सा बन जाएँ l
परमेश्वर द्वारा मार्गदर्शित
कुछ माह पूर्व मुझे एक ई-मेल द्वारा “मार्गदर्शित लोगों” के समाज का सदस्य बनने का निमंत्रण मिला l मैंने जाना कि मार्गदर्शित शब्द का अर्थ है, लक्ष्य प्राप्ति हेतु परिश्रम करनेवाला उच्च प्रेरित व्यक्ति l
क्या मार्गदर्शित व्यक्ति होना अच्छा है? एक अचूक जांच है : “परमेश्वर की महिमा के लिए सब कुछ करें” (1 कुरिं. 10:31) l कितनी बार हम अपने गौरव के लिए करते हैं l नूह के दिनों में जल-प्रलय पश्चात, लोगों का एक समूह “[अपने नाम] के लिए एक गुम्मट बनाना चाहा (उत्प.11:4) l वे प्रसिद्धि चाहते थे और वे संसार में फैलना नहीं चाहते थे l इसलिए कि वे परमेश्वर की महिमा के विरुद्ध कर रहे थे, भले ही, उनको गलती से मार्गदर्शित किया गया l
इसके विपरीत, जब राजा सुलेमान ने वाचा का संदूक और नया निर्मित मंदिर समर्पित किया, उसने कहा, “मैं [ने] ... परमेश्वर यहोवा के नाम से इस भवन को बनाया है” (1 राजा 8:20) l तब उसने प्रार्थना की, “वह हमारे मन अपनी ओर ऐसा फिराए रखे कि हम उसके सब मार्गों पर चला करें” (1 राजा 8:58) l
जब हमारी महानतम इच्छा परमेश्वर की महिमा और उसकी आज्ञाकारिता है, हम मार्गदर्शित, आत्मा की अगुवाई में उसके प्रेम के खोजी और उसकी सेवा करनेवाले होते हैं l हम सुलेमान की प्रार्थना करें, हमारे “मन हमारे परमेश्वर यहोवा की ओर ... लगा रहे, कि ... [हम] उसकी विधियों पर चलते और उसकी आज्ञाएँ मानते [रहें]” (पद.61) l
छल्ला और अनुग्रह
अपने हाथों को देखकर मैं याद करती हूँ कि मैंने अपनी सगाई और शादी के छल्ले खो दिए l मैं यात्रा पर जाने के लिए अनेक काम में लगी थी, और नहीं मालुम वे कहाँ खो गए l
इस चिंता में कि मेरे पति को कैसा लगेगा मैं असावधानी में की गई गलती को उन्हें बताने में सहमी l किन्तु उन्होंने एक बार फिर छल्लों से अधिक मेरे प्रति सहानुभूति और चिंता दर्शायी l हालाँकि, कई बार मैं उनकी मनोहरता चाहती हूँ! इसके विपरीत, वह, मेरे विरुद्ध यह घटना याद नहीं करते है l
बहुत बार हम अपने पापों को याद करके परमेश्वर की क्षमा प्राप्ति के लिए कुछ करने की सोचते हैं l किन्तु परमेश्वर ने कहा है कि विश्वास के द्वारा अनुग्रह ही से तुम्हारा उद्धार हुआ है (इफि. 2:8-9) l परमेश्वर ने इस्राएल को एक नयी वाचा के विषय बताते समय कहा, “मैं उनका अधर्म क्षमा करूँगा, और उनका पाप फिर स्मरण न करूँगा” (यिर्म. 31:34) l हमारा परमेश्वर क्षमा करके हमारी गलतियों को स्मरण नहीं करता l
हम अपने अतीत के विषय उदास हो सकते हैं, किन्तु हमें उसकी प्रतिज्ञाओं पर भरोसा करके उसके अनुग्रह और क्षमा पर विश्वास करना है कि ये यीशु में विश्वास द्वारा वास्तविक हैं l यह समाचार और विश्वास की निश्चयता हमें धन्यवादित बनाए l जब परमेश्वर क्षमा करता है, वह भूल जाता है l
जीवन भर का चरवाहा
जब मेरा बेटा अगली कक्षा में गया, वह चिल्लाया, “मुझे अपनी शिक्षिका जीवन भर चाहिए!” हमने उसे समझाया कि शिक्षक का बदलना जीवन का एक हिस्सा है l हम विचार करेंगे : क्या कोई सम्बन्ध जीवन भर रहेगा?
कुलपिता, याकूब, ने एक सम्बन्ध के विषय जाना l अनेक नाटकीय परिवर्तन के अनुभव के बाद और मार्ग में अपनों को खोने के बाद, उसने एक नियमित उपस्थिति को अपने जीवन में महसूस किया l उसने प्रार्थना की, “परमेश्वर .... [जो] मेरे जन्म से लेकर आज के दिन तक मेरा चरवाहा बना है ... इन लड़कों को आशीष दे” (उत्पत्ति 48:15-16) l
याकूब चरवाहा था, इसलिए उसने एक चरवाहा और उसकी भेड़ की तरह परमेश्वर के साथ अपनी तुलना की l चरवाहा एक भेड़ के जन्म से लेकर उनके बूढ़े होने तक रात-दिन उनकी देखभाल करता है l वह दिन में उनका मार्गदर्शन और रात में उनकी सुरक्षा करता है l दाऊद भी जो चरवाहा था के पास वही निश्चय था, किन्तु यह कहकर, “मैं यहोवा के धाम में सर्वदा वास करूँगा” (भजन 23:6) उसने अनंत पहलू प्रगट किया l
शिक्षक का बदलना जीवन का एक हिस्सा है l किन्तु यह जानना कितना अच्छा है कि हमारे पास जीवन भर का एक सम्बन्ध है l चरवाहा हमारे सांसारिक जीवन के हर दिन हमारे साथ रहने का वादा किया है (मत्ति28:20) l और जीवन के अंत में, हम हमेशा उसके अति निकट होंगे l
एक अच्छी विरासत
दादा-दादी पैसे वाले नहीं थे, फिर भी प्रत्येक क्रिसमस को मेरे चचेरे भाई-बहन और मेरे लिए यादगार बनाते थे l हमेशा ढेर सारा भोजन, आनंद, और प्रेम होता था l और बचपन से ही हमनें सीखा था कि मसीह ही उत्सव को संभव बनाता है l
हम ऐसी ही विरासत अपने बच्चों के लिए छोड़ना चाहते हैं l जब पिछला क्रिसमस मनाने के लिए परिवार इकट्ठा हुआ, हमने जाना कि यह अद्भुत परंपरा दादा-दादी ने आरंभ की थी l उन्होंने हमारे साथ रुपये पैसे की विरासत नहीं छोड़ी, किन्तु वे प्रेम, आदर, और विश्वास के बीज बोने में सावधान थे ताकि हम-उनके नाती-पोते-उनके नमूने की नक्ल कर सकें l
हम बाइबिल में नानी लोइस, और माँ यूनीके के विषय पढ़ते है, जिन्होंने तीमुथियुस के साथ असली विश्वास बाँटा (2 तीमु. 1:5) l इस प्रभाव ने उसको बहुतों के साथ सुसमाचार बांटने हेतु तैयार किया l
हम परमेश्वर के साथ निकट सम्बन्ध रखकर जीवन बिताते हुए हमारे द्वारा प्रभावित जीवनों के लिए एक आत्मिक विरासत तैयार कर सकते हैं l व्यवहारिक तरीकों से, दूसरों के प्रति अविभाजित ध्यान देकर, उनकी सोच और काम में रूचि दिखाकर, और उनके संग जीवन जीकर प्रेम को वास्तविक बनाते हैं l हम उनको अपने उत्सवों में भी बुलाएं! हमारे जीवनों द्वारा परमेश्वर के प्रेम की सच्चाई दिखाने के द्वारा, हम दूसरों के लिए स्थायी विरासत छोड़ते हैं l
पिनाटा से बेहतर
पिनाटा अर्थात् टोफियों और मिठाइयों से भरा गत्ते का एक डिब्बा अथवा मिट्टी के पात्र के बगैर मिक्सिको का उत्सव अधुरा है l बच्चे एक छड़ी से उसे तोड़कर टोफियाँ आदि पाने का प्रयास करते हैं l
मठवासी पिनाटा द्वारा सोलहवीं शताब्दी में मैक्सिकों के मूल निवासियों को सिखाते थे l पिनाटा सात भयंकर पाप दर्शानेवाले सात बिंदु वाले तारे होते थे l पिनाटा को तोड़ना बुराई से लड़ाई दर्शाता था, और उसके अन्दर की वस्तुएं बाहर गिर जाती थीं, लोग उसे विश्वास को बचाए रखने के पुरुस्कार के तौर पर अपने घर ले जाते थे l
किन्तु हम बुराई से नहीं लड़ सकते l परमेश्वर अपनी करुणा दिखाने के लिए हमारे प्रयास नहीं चाहता l इफिसियों हमें शिक्षा देता है कि “ विश्वास के द्वारा अनुग्रह ही से तुम्हारा उद्धार हुआ है ... वरन् परमेश्वर का दान है” (2:8) l हम नहीं; मसीह ने पाप को हराया है l
बच्चे पिनाटा के अन्दर की मोमबत्तियों चाहते हैं, किन्तु परमेश्वर के वरदान हमें यीशु में विश्वास से मिलते हैं l परमेश्वर ने “हमें ... सब प्रकार की आत्मिक आशीष दी हैं” (1:3) l हमारे पास पाप क्षमा, छुटकारा, लेपलाकपन, नया जीवन, आनंद, प्रेम, और बहुत कुछ है l ये आत्मिक आशीषें हमें विश्वास को बचाने और मजबूत बने रहने से नहीं किन्तु यीशु में विश्वास से मिली हैं l आत्मिक आशीषें केवल अनुग्रह अर्थात् जिसके हम योग्य नहीं हैं, से आतीं हैं l
अच्छा, बुरा, और बदसूरत
मेरी एक प्रिय सहेली ने मुझे एक सन्देश भेजा जिसमें लिखा था, “मैं बहुत आनंदित हूँ कि हम एक दूसरे को अच्छी, बुरी, और बदसूरत बातें बता सकते हैं!” हम वर्षों से मित्र रहे हैं, और हमने अपना आनंद और पराजय बांटना सीख लिया है l हम मानते हैं कि हम सम्पूर्ण नहीं हैं, इसलिए हम अपने संघर्ष बांटे हैं, किन्तु परस्पर सफलताओं में आनंदित होते हैं l
गोलियत पर दाऊद के विजय वाले अच्छे दिनों के आरम्भ से, दाऊद और योनातान भी घनिष्ठ मित्र थे (1 शमूएल 18:1-4) l उन्होंने योनातान के पिता के ईर्ष्या के बुरे दिनों में परस्पर भय बांटे (18:6-11; 20:1-2) l आख़िरकार, उन्होंने दाऊद की हत्या की शाऊल की योजना के बदसूरत दिनों में दुःख उठाया (20:42) l
अच्छे मित्र हमें बाहरी स्थितियों के बदलने पर त्यागते नहीं l वे अच्छे और बुरे दिनों में साथ रहते हैं l बदसूरत दिनों में परमेश्वर से दूर जाने की परीक्षा आने पर वह हमें परमेश्वर की ओर इशारा करते हैं l
सच्ची मित्रता परमेश्वर का उपहार है क्योंकि वह सिद्ध मित्र का उदाहरण है, जो अच्छे, बुरे, और बदसूरत दिनों में वफादार रहता है l जैसे प्रभु हमें याद दिलाता है, “मैं तुझे कभी न छोडूंगा, और न कभी त्यागूँगा” (इब्रानियों 13:5) l
परमेश्वर की सुनना
मेरे युवा पुत्र को मेरी आवाज़ पसंद है, सिवाय इसके कि जब मैं उसका नाम ज़ोर से और कठोरता से इस प्रश्न के साथ पुकारती हूँ, “तुम कहाँ हो?” ऐसा मैं तब करती हूँ, जब वह कुछ नटखटी करके मुझसे छिप रहा होता है l मैं चाहती हूँ कि मेरा बेटा मेरी आवाज़ सुने क्योंकि मैं उसकी भलाई और सुरक्षा चाहती हूँ
आदम और हव्वा परमेश्वर की आवाज़ से परिचित थे l l हालांकि, वर्जित फल को खाकर अनाज्ञाकारिता के बाद, वे उसकी आवाज़ सुनकर, “तुम कहाँ हो?” छिप गए (उत्पत्ति 3:9) l वे गलती करने के कारण परमेश्वर का सामना नहीं कर पा रहे थे-कुछ जिसे उसने माना किया था (पद.11) l
जब परमेश्वर ने आदम और हव्वा को पुकारकर उन्हें बगीचे में पाया, उसके शब्दों में अवश्य ही सुधार और परिणाम था (पद.13-19) l किन्तु परमेश्वर ने उन पर दया दिखाई और उद्धारकर्ता की प्रतिज्ञा में मानवता के लिए आशा भी दी(पद.15) l
परमेश्वर हमें खोजे, यह ज़रूरत नहीं है l उसे ज्ञात है हम कहाँ हैं और हम क्या छिपाने की कोशिश कर रहे हैं l किन्तु एक प्रेमी पिता होने के कारण, वह हमारे हृदयों से बातें करना चाहता है और हमें क्षमा और आरोग्यता देना चाहता है l उसकी इच्छा है हम उसकी आवाज़ सुने-और ध्यान दें l
कब्र 7 का धन
मेक्सिको के पुरातत्ववेत्ता अंटोनियो कासो ने 1932 में, मोंटे ऐल्बान, ओक्साका में कब्र 7 खोजा l उसने स्पेनी कब्जे से पूर्व के जवाहिरात “मोंटे अल्बान का धन” और चार सौ से अधिक शिल्पकृतियाँ खोजी l मेक्सिको के पुरातत्व खोज में यह महत्वपूर्ण है l कोई भी कासो के हाथों में शुद्ध सजावटी प्याला देखकर उसकी उत्तेजना की कल्पना ही कर सकता है l
शताब्दियों पूर्व, भजनकार ने सोना या स्फटिक पत्थर से अधिक मूल्यवान धन के विषय लिखा, “जैसे कोई बड़ी लूट पाकर हर्षित होता है, वैसे ही मैं तेरे वचन के कारण हर्षित हूँ” (भजन 119:162) l भजन 119 में, लेखक हमारे जीवनों के लिए परमेश्वर के निर्देश और प्रतिज्ञाओं का महत्त्व जानकर उनकी तुलना बड़े धन से किया जो एक विजेता के कब्जे में आता है l
कासो कब्र 7 की खोज से याद किया जाता है l हम ओक्साका में संग्रहालय में इसका आनंद ले सकते हैं l जबकि, प्रतिदिन हम वचन में जाकर प्रतिज्ञाओं के हीरे, आशा के माणिक, और बुद्धिमत्ता के पन्ना खोज सकते हैं l किन्तु पुस्तक द्वारा इंगित सबसे महान व्यक्तित्व स्वयं यीशु है l आखिरकार, वह ही पुस्तक का लेखक है l
हम मेहनत से भरोसा करें कि यह धन हमें समृद्ध बनाएगा l जैसे भजनकार कहता है, “मैंने तेरी चितौनियों को ... अपना निज भाग कर लिया है, क्योंकि वे मेरे हृदय के हर्ष का कारण हैं” (पद. 111) l