मध्यपूर्व के क्षेत्र में मोबाइल फ़ोन खरीदते समय, मुझसे कुछ ख़ास प्रश्न पूछे गए : नाम, राष्ट्रीयता, पता l किन्तु उसके बाद क्लर्क ने फॉर्म भरते समय पूछा, “आपके पिता का नाम क्या है? मैं चकित हुई, और मैंने सोचा यह क्यों ज़रूरी है l मेरी संस्कृति में यह ज़रूरी नहीं है, किन्तु मेरी पहचान के लिए यहाँ यह ज़रूरी था l कुछ संस्कृतियों में, वंशावली ज़रूरी है l

इस्राएली भी वंशावली का महत्त्व मानते थे l वे अपने कुलपिता अब्राहम पर घमंड करते थे, और उनकी सोच में उनका अब्राहम का कुल का होना ही उनको परमेश्वर की संतान बनाता था l उनके अनुसार, उनकी मानवीय वंशावली उनके आत्मिक परिवार से जुड़ा था l

सैंकड़ों वर्ष बाद यहूदियों से बातचीत में, यीशु ने स्पष्ट किया कि यह ऐसा नहीं है l वे अब्राहम को अपना भौतिक पिता मान सकते थे, किन्तु यदि वे उससे प्रेम नहीं करते थे जिसे पिता ने भेजा था तो वे परमेश्वर के परिवार के नहीं थे l

आज भी वही सार्थक है l हम अपना भौतिक परिवार नहीं चुनते हैं, किन्तु हम अपना आत्मिक परिवार चुन सकते हैं जिसके हम हिस्से हैं l यीशु के नाम पर विश्वास करके, परमेश्वर हमें उसकी संतान बनने का अधिकार देता है (यूहन्ना 1:12) l

आपका आत्मिक पिता कौन है? क्या आपने यीशु का अनुसरण करने का चुनाव किया है? आज आप अपने पापों की क्षमा के लिए यीशु पर विश्वास करके परमेश्वर के परिवार का हिस्सा बन जाएँ l