“रहस्य-नहीं” का रहस्य
एक सहयोगी ने मुझसे कुबूला कि उसकी सोच है कि वह “यीशु जैसा नहीं है l” उसके बताने पर मैंने ध्यान दिया जिसे वह अपना “आरामदायक, आत्मकेंद्रित” जीवन कहता था, और वह उसे किस प्रकार संतुष्ट नहीं कर पा रहा था l “किन्तु मेरी समस्या यह है, मैं अच्छा बनना चाहता हूँ, और चिंता करनेवाला भी, किन्तु बन नहीं पा रहा है l ऐसा महसूस होता है कि जो मैं करना चाहता हूँ, मैं कर नहीं पाता हूँ, और जो मैं नहीं करना चाहता हूँ, मैं करता रहता हूँ l”
उसने पूर्ण ईमानदारी के साथ मुझसे पूछा, “आपका रहस्य क्या है?” मैंने उत्तर दिया, “मेरा रहस्य है कि कोई रहस्य नहीं है l मैं तुम्हारी तरह परमेश्वर के मानक के अनुकूल जीने में सामर्थ्यहीन हूँ, इसलिए हमें यीशु की ज़रूरत है l”
मैंने बाइबल से “उसका” कथन दिखाया जैसे पौलुस ने रोमियों 7:15 में प्रगट किया है l पौलुस के निराशा के शब्द प्रायः जो मसीही थे और हैं की समझ में आती है जो खुद को परमेश्वर के लायक होने के लिए पर्याप्त होने का प्रयास करते हुए पाते हैं किन्तु कम पड़ते हैं l शायद आप भी समझते हैं l यदि हां, तो पौलुस की घोषणा कि मसीह हमारे उद्धार का कर्ता और उसके परिणामस्वरूप परिवर्तन है (7:25-8:2) आपको अवश्य ही रोमांचित करे l यीशु ने हमें खुद से घबराने वाली बातों से छुड़ाने के लिए पहले ही काम पूरा कर दिया है!
परमेश्वर और हमारे बीच की दीवार, पाप की दीवार, हमारे द्वारा किये गए किसी काम के विना हटा दी गयी है l उद्धार –और हमारे विकास की प्रक्रिया में पवित्र आत्मा द्वारा लाया गया परिवर्तन – यही वह है जो परमेश्वर सब के लिए चाहता है l वह हमारी आत्माओं के द्वार पर दस्तक देता है l उसके लिए दरवाजा खोलें l यह कोई रहस्य नहीं है कि वह उत्तर नहीं है!
दृढ़ आशा
1940 के दशक में जब जापान ने चीन पर हमला बोला, डॉ. विलियम वॉलस वुजहू, चीन में मिशनरी डॉक्टर के रूप में सेवा कर रहे थे l वालेस ने, जो उस समय स्टउट मेमोरियल अस्पताल के प्रभारी थे, अस्पताल को नाव पर उनके उपकरण लोड करने का आदेश दिया और पैदल सेना के हमलों से बचने के लिए नदियों में तैरते हुए अस्पताल के रूप में काम करना जारी रखा l
खतरनाक समय के दौरान, फिलिप्पियों 1:21 - वॉलस का एक पसंदीदा पद - ने उसे याद दिलाया कि यदि वह जीवित रहेगा, उसे उद्धारकर्ता के लिए कार्य करना होगा; किन्तु यदि उसकी मृत्यु हो जाएगी, उसके पास मसीह के साथ अनंतता की प्रतिज्ञा है l इस पद की विशेष सार्थकता तब दिखाई दी जब 1951 में धोखे से कैद कर लिए जाने के बाद उनकी मृत्यु हो गयी l
पौलुस का लेखन एक गहरी भक्ति को दर्शाता है जिसे हम यीशु के अनुयायियों के रूप में स्वीकार कर सकते हैं; हमें उसके लिए परीक्षाओं और यहां तक कि खतरे का सामना करने में सक्षम बनाता है l यह पवित्र आत्मा द्वारा प्राप्त भक्ति और हमारे निकटतम लोगों की प्रार्थना है (पद.19) l यह एक प्रतिज्ञा भी है l यहां तक कि जब हम मुश्किल परिस्थितियों में निरंतर सेवा के लिए आत्मसमर्पण करते हैं, तो यह इस ताकीद के साथ है : जब हमारा जीवन और कार्य यहाँ समाप्त होता है, तब भी हमें यीशु के साथ अनंत काल का आनंद मिलता है l
हमारे सबसे कठिन क्षणों में, हृदय जो मसीह के साथ चलने के लिए प्रतिबद्ध हैं, और हमारी आँखें उसके साथ अनंत काल की प्रतिज्ञा पर टिकी हुयी हैं, हमारे दिन और हमारे कार्य दूसरों को परमेश्वर के प्रेम की आशीष दें l
घर का मार्ग
कभी-कभी जीवन यात्रा इतनी कठिन दिखायी है जिससे हम अभिभूत/पराजित हो जाते हैं, और ऐसा महसूस होता है मानो अंधकार असीमित है l ऐसे ही एक सुबह हमारे पारिवारिक चिंतन के समय, मेरी पत्नी को अपने मनन के समय एक नयी सीख मिली l “मैं सोचती हूँ कि परमेश्वर चाहता है कि जो बातें हम इस अन्धकार में सीख रहें हैं उन्हें ज्योति में न भूलें l”
पौलुस अपनी टीम के साथ एशिया में अत्यधिक कठिनाईयों का वर्णन करते हुए, इन्हीं विचारों को कुरिन्थियों को लिख रहा है (2 कुरिन्थियों 1) l पौलुस चाहता था कि कुरिन्थुस के विश्वासी समझ जाएं कि परमेश्वर किस प्रकार अंधकारमय पलों को भी बदल सकता है l वह कहता है, “हमें शांति मिली है, इसलिए हम भी दूसरों को शांति दे सकते हैं” (पद.4) l पौलुस और उसकी टीम आजमाइशों में सीख रहे थे ताकि वे कुरिन्थियों को उसी प्रकार की कठिनाइयों में शांति और सलाह दे सकें l और यदि हम सुनने को तत्पर हैं तो परमेश्वर हमारे लिए भी ऐसा ही करता है l वह हमें आजमाइशों से सीखी हुई बातों से दूसरों को शांति देने के लिए तैयार करके हमारी आजमाइशों से हमें छुटकारा देगा l
क्या आप वर्तमान में अन्धकार में हैं? पौलुस के शब्दों और अनुभव द्वारा उत्साहित हो जाएं l भरोसा करें कि परमेश्वर आपके क़दमों को दिशा दे रहा है और अपनी सच्चाइयों को आपके हृदय में स्थापित कर रहा है ताकि आप समान स्थितियों में लोगों को उत्साहित कर सकें l आप उस स्थिति से परिचित हैं और आप घर का मार्ग जानते हैं l
स्वार्थहीन सेवा
कुछ लोग इकठ्ठा होकर उस बड़े वृक्ष को मैदान में पड़ा देख खुद को बौना महसूस कर रहे थे l एक वृद्ध महिला अपनी छड़ी के सहारे खड़ी होकर पिछली रात आए तूफ़ान की बात कर रही थी जिसके कारण उसका वह “विशाल वृक्ष गिर चुका था” l उसकी आवाज़ में भावुकता थी, “सबसे बुरी बात यह थी कि उसके कारण हमारे विवाह के बाद मेरे पति द्वारा बनायी गयी पत्थर की दीवाल भी गिर गयी थी l उन्हें इस दीवार से प्रेम था l मैं भी उस दीवार से प्रेम करती थी! अब मेरे पति की तरह यह भी नहीं रहा l”
अगली सुबह, कंपनी के कर्मियों को गिरे वृक्ष को हटाते हुए और स्थान को साफ़ करते देखकर उसका चेहरा खिल उठा l उसने दो वयस्कों और एक किशोर को जो उसके लॉन का घास काटता था सावधानीपूर्वक उनकी प्रिय दीवाल को नापते और पुनः बनाते देखा!
परमेश्वर जिस सेवा के पक्ष में है यशायाह नबी उसी का वर्णन करता है: जिस प्रकार मरम्मत करनेवाले उस वृद्ध महिला के लिए किये कार्य उसी तरह के कार्य जो हमारे चारों ओर के लोगों के मन को आनंदित करते हैं, l यह परिच्छेद सिखाता है कि परमेश्वर पाखंडी आत्मिक रीति रिवाजों से ऊपर उठकर दूसरों को स्वार्थहीन सेवा देनेवालों को महत्त्व देता है l वास्तव में, परमेश्वर निःस्वार्थ सेवा के लिए अपनी संतान पर दो-तरफ़ा आशीष बरसाता है l पहली, परमेश्वर शोषित और ज़रुरतमंदों की सहायता करने में हमारी इच्छित कार्यों का उपयोग करता है (यशायाह 58:7-10) l उसके पश्चात परमेश्वर ऐसी सेवा में संलग्न लोगों का अपने राज्य में सामर्थी सकारात्मक बल के रूप में उपयोग करके हमारी नेकनामी का निर्माण या पुनःनिर्माण करता है (पद. 11-12) l आज आप कौन सी सेवा देना चाहते हैं?
हर क्षण विशेष है
जब मेरी मुलाकात एडा से हुई, उस वक्त तक उसके मित्रों और परिजनों की मृत्यु हो चुकी थी और वह एक नर्सिंग होम में रहती थी l वृद्धावस्था का यह सबसे कठिन भाग है,” उसने कहा “जब आपके देखते-देखते सभी आपको छोड़ गए और आप जीवित हैं l” एक दिन मैंने एडा से पूछा कि किस तरह अभी भी उनकी रूचि जीवित थी और वह अपना समय कैसे बिताती थी l उसने बाइबल से पौलुस की एक पत्री के एक परिच्छेद का सन्दर्भ देकर कहा (फ़िलि. 1:21) : “क्योंकि मेरे लिए जीवित रहना मसीह है, और मर जाना लाभ है l” उसके बाद वह बोली, “ जब तक मैं जीवित हूँ, मेरे पास करने के लिए काम है l अपने अच्छे दिनों में, मैं लोगों को यीशु के विषय बताती हूँ; और कठिन दिनों में, मैं प्रार्थना कर सकती हूँ l”
सार्थक रूप से देखें तो, पौलुस कैद से यह पत्री लिख रहा था l और उसने एक सच को पहचाना जो अनेक मसीही अपनी नश्वरता का सामना करते हुए महसूस करते हैं : यद्यपि स्वर्ग का आकर्षण अत्यधिक है, इस पृथ्वी पर का हमारा समय परमेश्वर के लिए विशेष है l
पौलुस की तरह, ऐडा ने पहचाना कि हर सांस परमेश्वर की सेवा और उसकी महिमा करने हेतु एक अवसर है l इस प्रकार ऐडा दूसरों से प्रेम करने और उनको अपने उद्धारकर्ता के विषय बताने में अपना समय बिताती थी l
हमारे सबसे अन्धकारमय दिनों में भी, मसीही परमेश्वर की संगति में रहने के स्थायी आनंद की प्रतिज्ञा को थामे रह सकते हैं l और जब तक हम जीवित हैं, हम उसकी संगति का आनंद लेते हैं l वह हमारे हर क्षण को विशेष बनाता है l
अनावश्यक बुद्धि
कुछ साल पहले, एक महिला ने मुझे अपने 13 वर्ष से कम के बेटे के विषय बताया जो एक हिंसात्मक घटना सम्बंधित समाचार देख रहा था l स्वाभाविक बुद्धि से, उसने उससे रिमोट छीनकर चैनल बदल दिया l “तुम्हें इस तरह की बातें नहीं देखनी चाहिए,” वह उससे रूखेपन से बोली l इसके बाद वाद-विवाद शुरू हो गया, और अंततः वह बोली कि उसे अपने बेटे के दिमाग़ में “जो जो बातें उचित हैं, और जो जो बातें पवित्र हैं, और जो जो बातें सुहावनी हैं . . . ” डालनी होगी(फिलिप्पियों 4:8) l रात के भोजन के बाद, वह अपने पति के साथ समाचार देख रही थी जब अचानक उनकी पांच वर्षीय बेटी अन्दर आकर टेलीविजन बंद कर दी l “तुम्हें ये बातें नहीं देखनी चाहिए,” वह बेहतरीन तरीके से अपनी “माँ” की आवाज़ में बोली l “अब, बाइबल की बातों पर विचार कीजिए !”
व्यस्क के रूप में, हम अपने बच्चों से बेहतर तरीके से समाचार को समझ और जान सकते हैं l फिर भी, उनकी बेटी दिलचस्प और बुद्धिमान थी जब उसने माँ की बातें दोहरायी l परिपक्व व्यस्क भी जीवन के नकारात्मक पक्ष के प्रभाव से धीरे-धीरे प्रभावित हो सकता है l फिलिप्पियों 4:8 में वर्णित पौलुस की सूची पर चिंतन करना उस अंधेरेपन का इलाज है जो हम पर स्थायी प्रभाव डालता है यदि हम संसार की स्थिति पर नज़र डालते हैं l
परमेश्वर का आदर करने का सर्वोत्तम तरीका उन बातों के विषय सावधान निर्णय करना है जिन्हें हमारे मनों में रहना चाहिए और जिससे हमारे हृदय भी सुरक्षित रहेंगे l
अनपेक्षित अनुग्रह
जब मैं हाई स्कूल का विद्यार्थी था, एक शनिवार को बहुत सुबह मेरे मन आया कि मैं नाइनपिन्स(एक खेल) के अभ्यास स्थल में जाकर काम पर लग जाऊं l पिछली शाम को मैंने देर तक मटमैले फर्श की सफाई की थी क्योंकि चौकीदार बीमार हो गया था l मैंने अपने मालिक को चौकीदार के विषय बताना ज़रूरी नहीं समझा क्योंकि मैं उनको चकित करना चाहता था l आखिरकार, मैंने सोचा, “क्या गड़बड़ी हो सकती थी? ”
जब मैं कार्यस्थल के अन्दर आया, मैंने देखा कि उस स्थान पर पानी भरा था, टॉयलेट पेपर, अंक लिखनेवाले कागज़ व खेल के अन्य सामन पानी में तैर रहे थे l तब मुझे समझ में आया कि मैंने क्या गलती की थी : फर्श साफ़ करते समय, मैंने पानी की एक बड़ी टोंटी खुली छोड़ दी थी जिससे पूरी रात पानी बहता रहा! आश्चर्यजनक रूप से मेरे मालिक ने “मेरे प्रयास” को देखते हुए एक बड़ी मुस्कराहट के साथ मुझे गले लगाया l
जब दमिश्क के मार्ग पर पौलुस का सामना यीशु से हुआ (प्रेरितों 9:3-4), वह सक्रियता से मसीहियों को दण्डित करने और परेशान करने में लगा हुआ था (पद.1-2) l यीशु ने पौलुस का सामना किया जो गुनाहगार था और जो जल्द ही प्रेरित बनने वाला था l अपने अनुभवों के कारण दृष्टिहीन शाउल/पौलुस को एक मसीही व्यक्ति, हनन्याह की ज़रूरत थी जो साहस और अनुग्रह के साथ उसकी दृष्टि लौटा सकता था (पद.7) l
शाउल और मैं, दोनों को अनापेक्षित अनुग्रह मिला l
अनेक लोगों को मालूम है कि उनके जीवन बिगड़े हुए हैं l उनको छुटकारा के लिए भाषण की जगह आशा चाहिए l कठोर चेहरा अथवा कड़वे वचन उस आशा के प्रति उनकी दृष्टि रोक सकती हैं l यीशु के अनुयायी, हनन्याह, या मेरे मालिक, को जीवन की बदलती परिस्थितियों में अनुग्रह का रूप बनना था l
शांति देनेवाला हाथ
नर्स की टिप्पणी में लिखा था, “मरीज़ झगड़ालू स्वभाव का है l”
उसके बाद उसने यह पहचाना कि जटिल ओपन-हार्ट शल्यचिकित्सा के बाद होश में आने पर मुझे एलर्जी हो रही थी l मेरे गले में एक नली डली थी और मैं परेशान था l मेरा शरीर तेजी से कांपने लगा, और मेरे बांहों पर लगे फीते खिंचने लगे, जो इसलिए लगे थे कि मैं अचानक सांस लेनेवाली नली न खींच दूँ l यह डरानेवाली और दुःख देनेवाली घटना थी l एक समय, नर्स की एक सहायिका ने मेरे बिस्तर की दाहिनी ओर झुककर मेरा हाथ पकड़ लिया l यह अचानक हुआ, और वह कोमल स्पर्श था l मुझे शांति मिली, जिससे मेरा शरीर का बुरी तरह कांपना कम हुआ l
दूसरे मरीजों के साथ अनुभव से, नर्स की सहायिका जानती थी कि शांति देनेवाले हाथ मेरी मदद कर सकते थे l यह परमेश्वर का एक दिखाई देनेवाला उदहारण है कि कैसे वह अपने बच्चों को उनके दुःख में शांति देता है l
शांति किसी देखभाल करनेवाले के हाथ में एक ताकतवर और याद रखने योग्य हथियार है, और पौलुस हमसे 2 कुरिन्थियों 1:3-4 में कहता है कि यह परमेश्वर के हथियार के बक्से का महत्वपूर्ण भाग है; किन्तु परमेश्वर शांति के प्रभाव को हमारे द्वारा बढ़ाता भी है जब वह चाहता है कि बीते समयों में जो शांति हमने प्राप्त की है हम उसी प्रकार की स्थितियों में पड़े हुए दूसरे लोगों को शांति देने के लिए करें (पद.4-7) l यह उसके महान प्रेम का केवल एक और चिन्ह है; और जो हम कभी-कभी सरल भाव के द्वारा दूसरों के साथ बाँट सकते हैं l
वह दिन जब मैं प्रार्थना नहीं कर सका
नवम्बर 2015 में मुझे ओपन-हार्ट सर्जरी की ज़रूरत पड़ी l मैं चकित और भयभीत हुआ और मुझमें स्वाभाविक तौर से मृत्यु का भय समा गया l क्या कुछ संबंधों को ठीक करने थे? कुछ धन सम्बन्धी विषय मेरे परिवार को जानना ज़रूरी था? मैं सफल सर्जरी के महीनों बाद काम करने की स्थिति में आ पाता l क्या कुछ काम सर्जरी के पूर्व हो सकते थे? और क्या ज़रूरी काम दूसरों को दिये जा सकते थे? यह समय काम और प्रार्थना का था l
इसके सिवा मैं दोनों ही नहीं कर सकता था l
मेरे थके शरीर और मन से सरल कार्य भी असम्भव थे l मुझे प्रार्थना में असुविधा और बीमार हृदय के कारण नींद आती थी l मुझ में निराशा थी l काम नहीं कर सकने के कारण मैं परमेश्वर से परिवार के साथ रहने हेतु और समय भी नहीं मांग सकता था!
प्रार्थना नहीं कर सकना सबसे कष्टदायी था l किन्तु समस्त मानवीय ज़रूरतों में सृष्टिकर्ता मेरी स्थिति जानता था l आखिरकार, हमारे जीवनों की ऐसी स्थिति मैंने उसके द्वारा दी गयी दो तैयारियाँ याद की : प्रार्थना करने में हमारी अयोग्यता के समय पवित्र आत्मा की प्रार्थना (रोमि.8:26); और मेरे लिए दूसरों की प्रार्थना (याकूब 5:16: गला.6:2) l
पवित्र आत्मा का पिता से मेरे लिए प्रार्थना करना सुख देनेवाला था l मित्रों और परिजनों की प्रार्थना के विषय सुनना बड़ा उपहार था l एक और चकित करनेवाली बात : मित्रों और परिजनों का मुझसे प्रार्थना विषय पूछना, और उनको मेरा उत्तर देना भी परमेश्वर प्रार्थना के रूप में सुन रहा था l
अनिश्चितता के समय भी यह सोचना कि हमारी अयोग्यता में परमेश्वर हमारे हृदय की सुनाता है, एक उपहार है l