एक सहयोगी ने मुझसे कुबूला कि उसकी सोच है कि वह “यीशु जैसा नहीं है l” उसके बताने पर मैंने ध्यान दिया जिसे वह अपना “आरामदायक, आत्मकेंद्रित” जीवन कहता था, और वह उसे किस प्रकार संतुष्ट नहीं कर पा रहा था l “किन्तु मेरी समस्या यह है, मैं अच्छा बनना चाहता हूँ, और चिंता करनेवाला भी, किन्तु बन नहीं पा रहा है l ऐसा महसूस होता है कि जो मैं करना चाहता हूँ, मैं कर नहीं पाता हूँ, और जो मैं नहीं करना चाहता हूँ, मैं करता रहता हूँ l”

उसने पूर्ण ईमानदारी के साथ मुझसे पूछा, “आपका रहस्य क्या है?” मैंने उत्तर दिया, “मेरा रहस्य है कि कोई रहस्य नहीं है l मैं तुम्हारी तरह परमेश्वर के मानक के अनुकूल जीने में सामर्थ्यहीन हूँ, इसलिए हमें यीशु की ज़रूरत है l”

मैंने बाइबल से “उसका” कथन दिखाया जैसे पौलुस ने रोमियों 7:15 में प्रगट किया है l पौलुस के निराशा के शब्द प्रायः जो मसीही थे और हैं की समझ में आती है जो खुद को परमेश्वर के लायक होने के लिए पर्याप्त होने का प्रयास करते हुए पाते हैं किन्तु कम पड़ते हैं l शायद आप भी समझते हैं l यदि हां, तो पौलुस की घोषणा कि मसीह हमारे उद्धार का कर्ता और उसके परिणामस्वरूप परिवर्तन है (7:25-8:2) आपको अवश्य ही रोमांचित करे l यीशु ने हमें खुद से घबराने वाली बातों से छुड़ाने के लिए पहले ही काम पूरा कर दिया है!

परमेश्वर और हमारे बीच की दीवार, पाप की दीवार, हमारे द्वारा किये गए किसी काम के विना हटा दी गयी है l उद्धार –और हमारे विकास की प्रक्रिया में पवित्र आत्मा द्वारा लाया गया परिवर्तन – यही वह है जो परमेश्वर सब के लिए चाहता है l वह हमारी आत्माओं के द्वार पर दस्तक देता है l उसके लिए दरवाजा खोलें l यह कोई रहस्य नहीं है कि वह उत्तर नहीं है!