जब मैं हाई स्कूल का विद्यार्थी था, एक शनिवार को बहुत सुबह मेरे मन आया कि मैं नाइनपिन्स(एक खेल) के अभ्यास स्थल में जाकर काम पर लग जाऊं l पिछली शाम को मैंने देर तक मटमैले फर्श की सफाई की थी क्योंकि चौकीदार बीमार हो गया था l मैंने अपने मालिक को चौकीदार के विषय बताना ज़रूरी नहीं समझा क्योंकि मैं उनको चकित करना चाहता था l आखिरकार, मैंने सोचा, “क्या गड़बड़ी हो सकती थी? ”

जब मैं कार्यस्थल के अन्दर आया, मैंने देखा कि उस स्थान पर पानी भरा था, टॉयलेट पेपर, अंक लिखनेवाले कागज़ व खेल के अन्य सामन पानी में तैर रहे थे l तब मुझे समझ में आया कि मैंने क्या गलती की थी : फर्श साफ़ करते समय, मैंने पानी की एक बड़ी टोंटी खुली छोड़ दी थी जिससे पूरी रात पानी बहता रहा!  आश्चर्यजनक रूप से मेरे मालिक ने “मेरे प्रयास” को देखते हुए एक बड़ी मुस्कराहट के साथ मुझे गले लगाया l

जब दमिश्क के मार्ग पर पौलुस का सामना यीशु से हुआ (प्रेरितों 9:3-4), वह सक्रियता से मसीहियों को दण्डित करने और परेशान करने में लगा हुआ था (पद.1-2) l यीशु ने पौलुस का सामना किया जो गुनाहगार था और जो जल्द ही प्रेरित बनने वाला था l अपने अनुभवों के कारण दृष्टिहीन शाउल/पौलुस को एक मसीही व्यक्ति, हनन्याह की ज़रूरत थी जो साहस और  अनुग्रह के साथ उसकी दृष्टि लौटा सकता था (पद.7) l

शाउल और मैं, दोनों को अनापेक्षित  अनुग्रह मिला l 

अनेक लोगों को मालूम है कि उनके जीवन बिगड़े हुए हैं l उनको छुटकारा के लिए भाषण की जगह आशा चाहिए l कठोर चेहरा अथवा कड़वे वचन उस आशा के प्रति उनकी दृष्टि रोक सकती हैं l यीशु के अनुयायी, हनन्याह, या मेरे मालिक, को जीवन की बदलती परिस्थितियों में अनुग्रह का रूप बनना था l