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Articles by टिम गस्टफसन

शेबना का कब्र

तमिल राजनेता करुणानिधि चाहते थे कि उन्हें चेन्नई में मरीना समुद्र तट/Marina beach के पास उनके गुरु सीएन अन्नादुरैके बगल में दफनाया जाए, लेकिन वह नहीं चाहते थे कि उनका तर्कवादी(rationalist) विश्वास प्रणाली के अनुसार कोई धार्मिक संस्कार किया जाए l 

हालाँकि एक विशाल स्मारक उनके विश्राम स्थल को चिह्हित करता है, लेकिन उनकी विश्वास प्रणाली ने उन्हें मानव अस्तित्व की सच्चाइयों से सीमित नहीं किया, जो कि जीवन और मृत्यु सच्चाई है l गंभीर सच्चाई यह है कि जीवन हमारे बिन, हमारे जाने के प्रति उदासीन होकर चलता रहता है l 

यहूदा के इतिहास में एक कठिन समय के दौरान, शेबना, “राजघराने के पद पर नियुक्त भंडारी” ने मृत्यु के बाद अपनी विरासत सुनिश्चित करने के लिए अपने लिए एक कब्र बनवाई l परन्तु परमेश्वर ने, अपने नबी यशायाह के द्वारा, उससे कहा, “यहाँ तेरा कौन है कि तू ने अपनी कबर यहाँ खुदवायी है? तू अपनी कबर ऊंचे स्थान में खुदवाता और अपने रहने का स्थान चट्टान में खुदवाता है?(यशायाह 22:16) l नबी ने उससे कहा, “[परमेश्वर] तुझे मरोड़कर गेंद के समान लम्बे चौड़े देश में फेंक देगा . . . वहाँ तू मरेगा”(पद.18) l 

शेबना बात से चूक गया था l मायने यह नहीं रखता कि हमें कहाँ दफनाया जाएगा; महत्वपूर्ण यह है कि हम किसकी सेवा करते हैं l जो लोग यीशु की सेवा करते हैं उन्हें यह असीम सांत्वना मिलती है : “जो मृतक प्रभु में मरते हैं, वे अब से धन्य हैं” (प्रकाशितवाक्य 14:13) l हम ऐसे परमेश्वर की सेवा करते हैं जो हमारे “प्रस्थान/मृत्यु” के प्रति कभी उदासीन नहीं रहता है l वह हमारे आगमन की आशा करता है और घर में हमारा स्वागत करता है!

 

एक अकेली आवाज़

प्रथम विश्व युद्ध के समापन पर पेरिस शांति सम्मेलन के बाद, फ्रांसीसी मार्शल फर्डिनेंड फोच ने कटुतापूर्वक कहा, "यह शांति नहीं है। यह बीस वर्षों के लिए युद्धविराम है।” फोच का विचार उस लोकप्रिय राय का खंडन करता है कि यह भयावह संघर्ष "सभी युद्धों को समाप्त करने वाला युद्ध" होगा। बीस साल और दो महीने बाद, द्वितीय विश्व युद्ध छिड़ गया। फोच सही थे।

बहुत समय पहले, मीकायाह, जो उस समय अपने क्षेत्र में परमेश्वर का एकमात्र सच्चा भविष्यवक्ता था, ने लगातार इस्राएल के लिए गंभीर सैन्य परिणामों की भविष्यवाणी की थी (2 इतिहास 18:7)। इसके विपरीत, राजा अहाब के चार सौ झूठे भविष्यवक्ताओं ने जीत की भविष्यवाणी की: जो दूत मीकायाह को बुलाने गया था, उस ने उस से कहा,"सुन नबी लोग एक ही मुँह से राजा के विषय शुभ वचन कहते हैं, इसलिए तेरी बात उनकी सी हो, तू भी शुभ वचन कहना" (पद 12)।

मीकायाह ने उत्तर दिया, "जो कुछ मेरा परमेश्वर कहे वही मैं भी कहूँगा" (पद 13)। उसने भविष्यवाणी की कि कैसे इस्राएल "बिना चरवाहे की भेड़ों की नाईं पहाड़ियों पर तितर-बितर हो जाएगा" (पद 16)। मीकायाह सही था। अरामियों ने अहाब को मार डाला और उसकी सेना भाग गई (पद 33-34; 1 राजा 22:35-36)।

मीकायाह की तरह, हम जो यीशु का अनुसरण करते हैं, एक संदेश बाटते हैं जो लोकप्रिय राय से मेल नहीं खाता। यीशु ने कहा, "बिना मेरे द्वारा कोई पिता के पास नहीं पहुँच सकता" (यूहन्ना 14:6)। कई लोगों को यह संदेश पसंद नहीं आता क्योंकि यह अत्यंत सकरा लगता है। सभी के लिए नहीं है, लोग कहते हैं। फिर भी मसीह एक आरामदायक संदेश लाता है जो सभी के लिए है। वह हर उस व्यक्ति का स्वागत करता है जो उसकी ओर मुड़ता है।

 

परमेश्वर के शांति के दूत

नोरा शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन में गईं क्योंकि वह न्याय के मुद्दे को बहुत प्रभावी ढंग से महसूस करती थी। जैसी  की योजना बनाई गई थी, प्रदर्शन शांत था। प्रदर्शनकारी शांत भाव से शहर के निचले इलाके में चले।

तभी दो बसें रुकीं। आंदोलनकारी शहर के बाहर से आये थे, जल्द ही दंगा भड़क गया। नोरा का दिल टूट गया, वह चली गई। ऐसा लग रहा था कि उनके अच्छे इरादे निष्फल हो गए।

जब प्रेरित पौलुस ने यरूशलेम के मंदिर का दौरा किया, तो पौलुस का विरोध करने वाले लोगों ने उसे वहां देखा। वे "एशिया प्रांत से" थे (प्रेरितों के काम 21:27) और यीशु को अपने जीवन के जीने के तरीके के लिए खतरा मानते थे। पौलुस के बारे में झूठ और अफवाहें फैलाते हुए, उन्होंने तुरंत परेशानी खड़ी कर दी (पद 28-29)। भीड़ ने पौलुस को मंदिर से खींच लिया और उसको मारा। सिपाही दौड़ते हुए आये।

जब उसे गिरफ्तार किया जा रहा था, पौलुस ने रोमन कमांडर से पूछा कि क्या वह भीड़ को संबोधित कर सकता है (पद 37-38)। जब अनुमति दी गई, तो उन्होंने भीड़ से उनकी अपनी भाषा में बात की, उन्हें आश्चर्यचकित किया और उनका ध्यान आकर्षित किया (पद 40)। और ठीक उसी तरह, पौलुस ने दंगे को मृत धर्म से बचाव की अपनी कहानी साझा करने के अवसर में बदल दिया था (22:2-21)।

कुछ लोगों को हिंसा और विभाजन पसंद है। हिम्मत मत हारो। वे जीतेंगे नहीं, परमेश्वर हमारी हताश दुनिया के साथ अपनी रोशनी और शांति साझा करने के लिए साहसी विश्वासियों की तलाश कर रहा है। जो संकट प्रतीत होता है वह आपके लिए किसी को परमेश्वर का प्रेम दिखाने का अवसर हो सकता है।

 

खलनायकों को बचाना

कॉमिक पुस्तक का नायक(हीरो) हमेशा ही लोकप्रिय रहा है l केवल 2017 में ही, छः सुपरहीरो फिल्मों ने बॉक्स ऑफिस बिक्री में $4 बिलियन(ख़रब) अमरीकी डॉलर कमाए l परन्तु लोग क्यों बड़े एक्शन फिल्मों की ओर आकर्षित होते हैं?

शायद इसलिए क्योंकि, कुछ हद तक, ऐसी कहानियाँ परमेश्वर की बड़ी कहानी के समान दिखाई देती हैं l एक नायक(हीरो) है, एक खलनायक(villain) है, लोग जिन्हें बचाना ज़रूरी  है, और ढेर सारे दिलचस्प एक्शन l

इस कहानी में, सबसे बड़ा खलनायक शैतान है, हमारी आत्माओं का शत्रु l परन्तु इसके साथ और ढेर सारे “छोटे” खलनायक भी हैं l उदाहरण के लिए, दानिय्येल की पुस्तक में, एक नबूकदनेस्सर है, उस समय के ज्ञात संसार का राजा, जिसने ऐसे हर एक को मारने का निर्णय लिया जो उसकी विशाल मूर्ति को दंडवत नहीं करता था (दानिय्येल 3:1-6) l जब तीन साहसी यहूदी अधिकारियों ने इनकार किया (पद.12-18), परमेश्वर ने नाटकीय रूप से उनको उस धधकती भट्टी से बचाया (पद.24-27) l

परन्तु एक आश्चर्जनक मोड़ में, हम इस खलनायक के हृदय को बदलते हुए देखते हैं l इस असाधारण धटना के प्रतिउत्तर में, नबूकदनेस्सर कहता है, “धन्य है शद्रक, मेशक, और अबेदनगो का परमेश्वर” (पद.28) l

परन्तु उसने परमेश्वर का अनादर करनेवाले किसी भी व्यक्ति को मारने की धमकी दी (पद.29), नहीं समझते हुए कि परमेश्वर को उसकी सहायता नहीं चाहिए थी l नबूकदनेस्सर अध्याय 4 में और अधिक परमेश्वर के विषय सीखनेवाला था – परन्तु वह एक अलग कहानी है l

जो हम नबूकदनेस्सर में देखते हैं वह केवल एक खलनायक नहीं है, परन्तु आत्मिक यात्रा में एक व्यक्ति l परमेश्वर के उद्धार की कहानी में, हमारा नायक(हीरो) यीशु, हर एक के पास पहुँचता है जिसे बचाव की ज़रूरत है – जिसमें हमारे बीच के खलनायक भी सम्मिलित हैं l

उपवास का सार

भूख की पीड़ा मेरे आत्मसंयम को विफल कर रही थी l मेरे सलाहकार ने उपवास को परमेश्वर पर केन्द्रित होने के लिए एक मार्ग के तौर पर अनुशंसित किया था l परन्तु जैसे-जैसे दिन बीतता गया, मैं विचार करने लगा : “यीशु ने यह चालीस दिनों तक कैसे किया? मैंने पवित्र आत्मा के ऊपर शांति, सामर्थ्य, और धीरज के लिए…

पत्थर एक लालसा

फर्नान्डो पेस्सोआ की पुर्तगाली कविता “ओडे मारीटीमा” की एक पंक्ति कहती है, “आह, हर घाट पत्थर की लालसा है!” पेस्सोआ की घाट भावनाओं का प्रतिरूप है जिसका हम अनुभव करते हैं जब एक जलयान धीरे-धीरे हमसे दूर जाता है l यह जलयान कूच कर जाता है परन्तु घाट वहीं रहता है, आशा और स्वप्न, वियोग और चाह की स्थायी स्मारक l हम खोयी हुयी वस्तुओं के लिए लालायित होते हैं, और उन बातों के लिए जिन तक हमारी पहुँच नहीं l

पुर्तगाली शब्द (saudade) जिसका अनुवाद “लालसा” है अतीत के लिए लालायित होने का सदर्भ देता है जो हम अनुभव करते हैं – एक गहरी लालसा जो परिभाषा को चुनौती देती है l कवि अवर्णनीय का वर्णन कर रहा है l

हम कह सकते हैं कि नबो पहाड़ मूसा की “पत्थर की लालसा” थी l नबो पहाड़ से उसने टकटकी लगाकर प्रतिज्ञात देश को देखा – एक देश जहां वह नहीं पहुंचनेवाला था l मूसा के लिए परमेश्वर के शब्द – “मैं ने इसको तुझे साक्षात् दिखला दिया है, परन्तु तू पार होकर वहाँ जाने न पाएगा” (व्यवस्थाविवरण 34:4) – कठोर प्रतीत हो सकते हैं l परन्तु यदि हम केवल यही देखते हैं, हम घटना के केंद्र से चूक जाते हैं l परमेश्वर मूसा से अत्यधिक आराम की बातें बोल रहा है : “जिस देश के विषय में मैं ने अब्राहम, इसहाक, और याकूब से शपथ खाकर कहा था, कि मैं इसे तेरे वंश को दूँगा वह यही है” (पद.4) l जल्द ही, मूसा नबो से कुछ करके कनान से कहीं बेह्तार देश में जानेवाला था (पद.5) l

जीवन हमें घाट पर खड़ा हुआ पाता है l प्रिय लोग चले जाते हैं; आशा धूमिल हो जाती है; स्वप्नों का अंत हो जाता है l इन सबके मध्य हम अदन की प्रतिध्वनि और स्वर्ग की झलक का अनुभव करते हैं l हमारी लालसाएं हमें परमेश्वर की ओर इंगित करती हैं l वही हमारी पूर्णता है जिसकी हम लालसा करते हैं l