फर्नान्डो पेस्सोआ की पुर्तगाली कविता “ओडे मारीटीमा” की एक पंक्ति कहती है, “आह, हर घाट पत्थर की लालसा है!” पेस्सोआ की घाट भावनाओं का प्रतिरूप है जिसका हम अनुभव करते हैं जब एक जलयान धीरे-धीरे हमसे दूर जाता है l यह जलयान कूच कर जाता है परन्तु घाट वहीं रहता है, आशा और स्वप्न, वियोग और चाह की स्थायी स्मारक l हम खोयी हुयी वस्तुओं के लिए लालायित होते हैं, और उन बातों के लिए जिन तक हमारी पहुँच नहीं l

पुर्तगाली शब्द (saudade) जिसका अनुवाद “लालसा” है अतीत के लिए लालायित होने का सदर्भ देता है जो हम अनुभव करते हैं – एक गहरी लालसा जो परिभाषा को चुनौती देती है l कवि अवर्णनीय का वर्णन कर रहा है l

हम कह सकते हैं कि नबो पहाड़ मूसा की “पत्थर की लालसा” थी l नबो पहाड़ से उसने टकटकी लगाकर प्रतिज्ञात देश को देखा – एक देश जहां वह नहीं पहुंचनेवाला था l मूसा के लिए परमेश्वर के शब्द – “मैं ने इसको तुझे साक्षात् दिखला दिया है, परन्तु तू पार होकर वहाँ जाने न पाएगा” (व्यवस्थाविवरण 34:4) – कठोर प्रतीत हो सकते हैं l परन्तु यदि हम केवल यही देखते हैं, हम घटना के केंद्र से चूक जाते हैं l परमेश्वर मूसा से अत्यधिक आराम की बातें बोल रहा है : “जिस देश के विषय में मैं ने अब्राहम, इसहाक, और याकूब से शपथ खाकर कहा था, कि मैं इसे तेरे वंश को दूँगा वह यही है” (पद.4) l जल्द ही, मूसा नबो से कुछ करके कनान से कहीं बेह्तार देश में जानेवाला था (पद.5) l

जीवन हमें घाट पर खड़ा हुआ पाता है l प्रिय लोग चले जाते हैं; आशा धूमिल हो जाती है; स्वप्नों का अंत हो जाता है l इन सबके मध्य हम अदन की प्रतिध्वनि और स्वर्ग की झलक का अनुभव करते हैं l हमारी लालसाएं हमें परमेश्वर की ओर इंगित करती हैं l वही हमारी पूर्णता है जिसकी हम लालसा करते हैं l