यीशु में पुनर्जीवन
लियोनार्डो दा विंची को हम अनेक गुणों का, सर्वगुणसंपन्न व्यक्ति के रूप में जानते हैं। उनके बौद्धिक कौशल ने अध्ययन और कला के कई क्षेत्रों में प्रगति की। फिर भी लियोनार्डो ने "हमारे इन दुखद दिनों" का ज़िक्र किया और अफसोस जताया कि हम "लोगों के दिमाग में अपनी कोई भी यादें छोड़े बिना" ही मर जाते हैं।
लियोनार्डो ने कहा, "जब मैंने सोचा कि मैं जीना सीख रहा हूं, मैं मरना सीख रहा था।" उसने जितना सोचा होगा, वह उससे कहीं ज्यादा सच्चाई के करीब था। मरना सीखना ही जीवन का मार्ग है। यरूशलेम में यीशु के विजयी प्रवेश के बाद (जिसे हम अब पाम संडे (खजूरों का इतवार) के रूप में मनाते हैं; यहुन्ना 12:12-19 देखें), उन्होंने कहा, "जब तक गेहूँ का दाना भूमि में पड़कर मर नहीं जाता, वह अकेला रहता है।परन्तु जब मर जाता है, तो बहुत फल लाता है” (पद 24)। उन्होंने यह बात अपनी मृत्यु के बारे में कही, लेकिन हम सभी को शामिल करने के लिए इसका विस्तार किया: "जो अपने प्राण को प्रिय जानता है,वह उसे खो देता;और जो इस जगत में अपने प्राण को अप्रिय जानता है; वह अनंत जीवन के लिए उस की रक्षा करेगा" (पद 25)।
प्रेरित पौलुस ने बपतिस्मा के माध्यम से मसीह के साथ हमारे "गाड़े जाने" के बारे में लिखा, जैसे मसीह पिता की महिमा के द्वारा मृतकों में से जीवित हो गए, हमे भी जीने के लिए एक नया जीवन मिला। क्योंकि अगर उनकी मृत्यु में हम उनके साथ एक हुए हैं, तो निश्चय उनके पुनरुत्थान में भी उनके साथ एक होंगे (रोमियों 6:4-5)।
अपनी मृत्यु के माध्यम से, यीशु हमें पुनर्जन्म प्रदान करते हैं - पुनर्जागरण का वास्तविक अर्थ! उन्होंने अपने पिता के साथ अनन्त जीवन का मार्ग बनाया है।
शाश्वत विरासत
जब महामंदी के दौरान “डस्ट बोल” (Dust Bowl) नाम के रेतीले तूफ़ानों ने संयुक्त राज्य अमेरिका को तबाह कर दिया था, तब कैनसस, हियावाथा के निवासी जॉन मिलबर्न डेविस ने अपने लिए प्रसिद्धि और सम्मान प्राप्त करने का फैसला किया। अपने बल-बूते पर करोड़पति बने निःसंतान, डेविस ने दान या आर्थिक विकास में निवेश करने के बजाय, बड़े खर्च पर, स्थानीय कब्रिस्तान में अपनी और अपनी मृत पत्नी की ग्यारह आदमकद मूर्तियाँ खड़ी कर दीं ।
डेविस ने पत्रकार एर्नी पाइल से कहा, "कैनसस में वे मुझसे नफरत करते हैं।" स्थानीय निवासी चाहते थे कि वह अस्पताल, स्विमिंग पूल या पार्क जैसी सार्वजनिक सुविधाओं के निर्माण के लिए धन दें। फिर भी उन्होंने बस इतना ही कहा, "यह मेरा पैसा है और मैं इसे अपनी इच्छानुसार खर्च करता हूँ।"
राजा सुलैमान, जो अपने समय का सबसे धनी व्यक्ति था, ने लिखा, "जो रूपए से प्रीति रखता है वह रूपए से तृप्त न होगा” "जब सम्पत्ति बढ़ती है तो उसके खाने वाले भी बढ़ते हैं” (सभोपदेशक 5:10-11)। सुलैमान धन की भ्रष्ट करने वाली प्रवृत्तियों के प्रति भली-भांति परिचित हो गया था। प्रेरित पौलुस ने भी धन के लालच को समझा और अपना जीवन यीशु की आज्ञाकारिता में लगाने का निर्णय लिया। रोमन जेल में फाँसी की प्रतीक्षा करते हुए, उन्होंने विजयी भाव से लिखा, "क्योंकि अब मैं अर्ध की नाई उंडेला जाता हूं, और मेरे कूच का समय आ पहुंचा है।मैं अच्छी कुश्ती लड़ चुका हूं मैं ने अपनी दौड़ पूरी कर ली है, मैं ने विश्वास की रखवाली की है।" (2 तीमुथियुस 4:6-7)।
जो हम पत्थर में तराशते हैं या अपने लिए जमा करते हैं, वो सदा के लिए बना नहीं रहता है। यह वह है जो हम एक-दूसरे के लिए और उसके लिए प्यार से देते हैं - वह जो हमें दिखाता है कि प्यार कैसे करना है।
लैव्यव्यवस्था भी
विषय लैव्यव्यवस्था था, और मुझे एक स्वीकारोक्ति करनी थी l मैंने अपने बाइबल अध्ययन समूह को बताया, “मैंने बहुत से हिस्सों को छोड़ दी l” “मैं त्वचा रोगों के बारे में दुबारा नहीं पढ़ रहा हूँ l”
तभी मेरे मित्र डेव ने बात की l उन्होंने कहा, “मैं एक ऐसे व्यक्ति को जनता हूँ जो उस परिच्छेद के कारण यीशु में विश्वास किया l” डेव ने बताया कि उसका डॉक्टर दोस्त नास्तिक था l उसने निर्णय लिया कि बाइबल को पूरी तरह से अस्वीकार करने से पहले, वह उसे पढ़ेगा l लैव्यव्यवस्था में त्वचा रोगों वाला भाग उन्हें आकर्षित किया l इसमें संक्रामक और गैर-संक्रामक घावों (13:1-46) और उनके इलाज के तरीके (14:8-9) के विषय में आश्चर्यजनक विवरण शामिल थे l वह जानता था कि यह तत्कालीन चिकित्सा ज्ञान से कहीं अधिक था—फिर भी यह लैव्यव्यवस्था में था l उसने सोचा, ऐसा कोई तरीका नहीं है जिससे मूसा यह सब जान सका l डॉक्टर ने विचार किया कि मूसा को वास्तव में उसकी जानकारी परमेश्वर से प्राप्त हुयी थी l आखिरकार उसने यीशु पर विश्वास किया l
यदि बाइबल के कुछ भाग आपको उबा देते हैं, तो ठीक है, मैं आपके साथ हूँ l लेकिन इसमें जो कुछ भी कहा गया है वह किसी कारण से हैं l लैव्यव्यवस्था इसलिए लिखी गयी थी ताकि इस्राएल जान सके कि परमेश्वर के लिए और उसके साथ कैसे रहना है l जैसे-जैसे हम परमेश्वर और उसके लोगों के बीच इस रिश्ते के बारे में और अधिक सीखते हैं, हम स्वयं परमेश्वर के बारे में सीखते हैं l
प्रेरित पौलुस (2 तीमुथियुस 3:16)) ने लिखा, “सम्पूर्ण पवित्रशास्त्र परमेश्वर की प्रेरणा से रचा गया है और उपदेश, और समझाने, और सुधारने, और धर्म की शिक्षा के लिए लाभदायक है l” आइए आगे पढ़ें l यहाँ तक कि लैव्यव्यवस्था भी l
आत्म-सम्मान बढ़ाना
मैगी की युवा सहेली चौंकानेवाले ढंग से तैयार होकर चर्च में आई l हालाँकि किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए था; वह एक वैश्या थी l मैगी की आगंतुक बेचैनी से अपनी सीट पर बैठकर, बार-बार अपनी बहुत छोटी स्कर्ट को खींचती हुयी अपनी बाहों को सचेतावस्था में अपने चारों ओर मोड़ रही थी l
“ओह, क्या तुम्हें ठण्ड लग रही है?” मैगी ने चतुराई से इस बात से ध्यान हटाते हुए पूछा कि उसने कैसे कपड़े पहने हैं l “यह! मेरा शॉल ले लो l”
मैगी ने दर्जनों लोगों को चर्च में आने के लिए आमंत्रित करके और उन्हें सहज महसूस कराने में मदद करके यीशु से परिचित कराया l सुसमाचार उसके लुभावने तरीकों के द्वारा चमकता था l वह सभी के साथ सम्मानपूर्वक व्यवहार करती थी l
जब धार्मिक अगुवों ने एक स्त्री को व्यभिचार के कठोर (और सटीक) आरोप के साथ यीशु के सामने घसीट लाए, तो मसीह ने उस पर तब तक ध्यान नहीं दिया जब तक कि उसने आरोप लगाने वालों को दूर नहीं किया l उन लोगों के जाने के बाद वह उसे डांट सकता था l इसके बजाय, उसने दो सरल प्रश्न पूछे : “वे कहाँ गए?” और “क्या किसी ने तुझ पर दंड की आज्ञा न दी?” (यूहन्ना 8:10) l निसंदेह, बाद वाले प्रश्न का उत्तर नहीं था l इसलिए यीशु ने उसे एक संक्षिप्त कथन में सुसमाचार दिया : “मैं भी तुझ पर दंड की आज्ञा नहीं देता l” और फिर निमंत्रण : “जा, और फिर पाप न करना” (पद.11) l
लोगों के प्रति वास्तविक प्रेम की सामर्थ्य को कम मन आंकिये—प्रेम का वह प्रकार जो निंदा करने से इंकार करता है, यहाँ तक कि यह हर किसी को गरिमा और क्षमा प्रदान करता है l
लोबान का अर्थ
आज एपिफेनी (अवतरण-दिवस—अन्यजातियों के लिए मसीह की अभिव्यक्ति)है, वह दिन जो कैरल "वी थ्री किंग्स ऑफ ओरिएंट आर" में वर्णित घटना की याद दिलाता है, जब अन्यजातियों के बुद्धिमान लोगों ने बालक यीशु से मुलाकात की थी। फिर भी वे राजा नहीं थे, वे सुदूर पूर्व से नहीं थे (जैसा कि ओरिएंट का पहले मतलब था), और इसकी संभावना भी नहीं है कि वे तीन थे।
हालाँकि, उपहारतीन थे, और कैरल प्रत्येक को मानती है। जब मजूसी बेथलेहेम पहुंचे, "उन्होंने अपने FkSys खोले और [यीशु] को सोना, लोबान और गन्धरस के उपहार दिए" (मत्ती 2:11)। उपहार यीशु के मिशन(कार्य) का प्रतीक हैं। सोना राजा के रूप में उनकी भूमिका का प्रतिनिधित्व करता है। आराधनालय में जलाए गए धूप के साथ मिश्रित लोबान, उनकेईश्वरत्व की बात करता है। गन्धरस, जिसका उपयोग शवों पर लेप लगाने के लिए किया जाता है, हमें ठहराव देता है।
कैरल कापद4 कहता है, “मैं लोबान लाया हूं/ ताकि उस को मैं दूं/ सोता है जो दुखी परेशान/, दुख उठा कर खून बहाकर बलिदान होगा।" हम कहानी में ऐसा कोई दृश्य नहीं लिखेंगे, लेकिन परमेश्वर ने ऐसा किया। यीशु की मृत्यु हमारे उद्धार का केंद्र है। हेरोदेस ने यीशु को तब मारने का भी प्रयास किया जब वह बच्चा था (पद 13)।
कैरल का अंतिम पद तीन विषयों को एक साथ जोड़ता है: “गौरवशाली, अब उसे उठता हुआ देखो/ राजा और परमेश्वर और बलिदान। यह क्रिसमस की कहानी को पूरा करता है, हमारी प्रतिक्रिया को प्रेरित करता है: "अल्लेलुइया,अल्लेलुइया/पृथ्वी और आकाशमें ये ध्वनियाँगूंज रही हैं।।"
पुत्र(Son) भी उदित होता है
अर्नेस्ट हेमिंग्वे के पहले समपूर्ण उपन्यास में अत्यधिक शराब पीने वाले दोस्तों को दिखाया गया है, जिन्होंने हाल ही में प्रथम विश्व युद्ध को झेला है। उनमें युद्ध की तबाही के शाब्दिक और लाक्षणिक रूप से घावों के निशान हैं जिसे वे सहन करते हैं और पार्टियों, भव्य साहसिक कार्यों और आसपास सोने के द्वारा इसका सामना करने की कोशिश करते हैं। दर्द के असर को कम करने के लिए हमेशा शराब होती है। कोई भी खुश नहीं है।
हेमिंग्वे की पुस्तक द सन आल्सो राइजेज(The Sun Also Rises) का शीर्षक सीधे सभोपदेशक :5 से आता है। सभोपदेशक में, राजा सुलैमान स्वयं को "शिक्षक" (पद.1) के रूप में संदर्भित करता है। वह देखता है, "सब कुछ व्यर्थ है" (पद. 2) और पूछता है, "उन सब परिशम से जिसे मनुष्य धरती पर करता है, उसको क्या लाभ प्राप्त होता है?” (पद.3) l सुलैमान ने देखा कि सूर्य कैसे उगता और डूबता है, हवा इधर-उधर बहती है, नदियाँ कभी संतुष्ट न होने वाले समुद्र में बहती रहती हैं (पद.5-7)। अंततः, सब कुछ भुला दिया जाता है (पद.11)।
हेमिंग्वे और सभोपदेशक दोनों ही हमें केवल इस जीवन के लिए जीने की व्यर्थता से सामना कराते हैं। हालाँकि, सुलैमान ने अपनी पुस्तक में दिव्य(divine) के उज्ज्वल संकेत बुने हैं। वहाँ स्थिरता है—और वास्तविक आशा है। सभोपदेशक हमें वैसे ही दिखाता है जैसे हम वास्तव में हैं, लेकिन यह परमेश्व को भी वैसा ही दिखाता है जैसा वह है। सुलैमान ने कहा, "जो कुछ परमेश्वर करता है वह सदा स्थिर रहेगा" (3:14) और इसमें हमारी बड़ी आशा है। क्योंकि परमेश्वर ने हमें अपने पुत्र, यीशु का उपहार दिया है।
परमेश्वर के बिना, हम एक अंतहीन, कभी संतुष्ट न होने वाले समुद्र में बह रहे हैं। उसके उदित(risen) पुत्र, यीशु के द्वारा, हमारा उसके साथ मेल हो गया है, और हमें अपना अर्थ, मूल्य और उद्देश्य पता चलता है।
यीशु को समर्पित करना
1951 में, जोसेफ स्टालिन के डॉक्टर ने उन्हें अपने स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिए अपने कार्यभार को कम करने का सलाह दिया। सोवियत संघ के शासक ने चिकित्सक पर जासूसी का आरोप लगाया और उसे गिरफ्तार कर लिया। जिस अत्याचारी ने झूठ के साथ इतने लोगों पर अत्याचार किया था, वह सत्य का पालन नहीं कर सका—और जैसा उसने कई बार किया था—उसने उस सत्य बताने वाले को हटा दिया। वैसे भी सत्य का जीत हुआ। स्टालिन की मृत्यु 1953 में हुयी।
यिर्मयाह भविष्यवक्ता, जिसे अपने भयानक भविष्यवाणियों के लिए गिरफ्तार किया गया और जंजीरों में रखा गया (यिर्मयाह 38:1–6; 40:1), यहूदा के राजा को ठीक-ठीक बताया कि यरूशलेम का क्या होगा। उसने राजा सिदकिय्याह से कहा, “जो कुछ मैं तुझसे कहता हूँ उसे यहोवा की बात समझकर मान ले” (38:20)। शहर के आसपास की सेना के सामने आत्मसमर्पण करने में विफल रहने से स्थिति और भी बदतर हो जाएगी। “तेरी सब स्त्रियाँ और बाल-बच्चे कसदियों के पास निकाल कर पहुँचाए जाएँगे,” यिर्मयाह ने चिताया “और तू भी कसदियों के हाथ से न बचेगा” (पद 23)।
सिदकिय्याह उस सत्य पर कार्य करने में असफल रहा। आखिरकार बेबीलोनियों ने राजा को पकड़ लिया, उसके सभी बेटों को मार डाला, और शहर को जला दिया (अध्याय 39)।
एक मायने में, हर इंसान सिदकिय्याह की दुविधा का सामना करता है। हम पाप और घटिया विकल्पों के अपने स्वयं के जीवन की दीवारों में फँसे हुए हैं। अक्सर, हम उन लोगों से जो हमें अपने बारे में सच्चाई बताते हैं से बचकर काम को बदतर बना देते हैं। हमें केवल उसकी इच्छा के प्रति समर्पण करने की आवश्यकता है जिसने कहा, "मार्ग और सत्य और जीवन मैं ही हूँ; बिना मेरे द्वारा कोई पिता के पास नहीं पहुँच सकता।" (यूहन्ना 14:6)।
प्रार्थना के माध्यम से प्रेम
बहुत देर हो चुकी थी, टॉम को अपने लड़ाकू जूतों के नीचे डरावना "क्लिक" महसूस हुआ। वह तुरंत कूद गया। जमीन के नीचे छिपा हुआ घातक उपकरण विस्फोट नहीं हुआ। बाद में, विस्फोटक निपटान टीम ने वहाँ से 36 किलो उच्च विस्फोटक खोद निकाला। टॉम ने उन जूतों को तब तक पहना जब तक वे टूटकर गिर नहीं गये। "मेरे भाग्यशाली जूते," वह उन्हें बुलाता है।
टॉम ने शायद अपने बाल-बाल बचने को याद करने के लिए उन जूतों को पकड़ रखा होगा। लेकिन लोग अक्सर वस्तुओं को "भाग्यशाली" मानने या उन्हें अधिक आध्यात्मिक लेबल "धन्य" देने के लिए प्रलोभित होते हैं। खतरा तब आता है जब हम किसी वस्तु को परमेश्वर के आशीर्वाद के स्रोत के रूप में श्रेय देते है— यहां तक कि एक प्रतीक भी क्यों न हो।
इस्राएलियों ने इसे कठिन तरीके से सीखा। पलिश्ती सेना ने उन्हें युद्ध में हरा दिया था। किसी ने "यहोवा की वाचा का संदूक" लेकर दोबारा लड़ने के बारे में सोचा (1 शमूएल 4:3)। यह एक अच्छा विचार प्रतीत हुआ (पद 6–9) आख़िरकार, वाचा का सन्दूक एक पवित्र वस्तु थी।
परन्तु इस्राएलियों का दृष्टिकोण गलत था। अपने आप में, सन्दूक उनके लिए कुछ भी नहीं ला सकता था। एक सच्चे परमेश्वर की उपस्थिति के बजाय किसी वस्तु में अपना विश्वास रखने से, इस्राएलियों को और भी बुरी हार का सामना करना पड़ा, और शत्रु ने सन्दूक पर कब्ज़ा कर लिया (पद 10–11)।
स्मृति चिन्ह जो हमें प्रार्थना करने या परमेश्वर की भलाई के लिए धन्यवाद देने की याद दिलाते हैं, ठीक हैं। लेकिन वे कभी आशीर्वाद का स्रोत नहीं है। वह परमेश्वर है - और केवल परमेश्वर ही है।
यीशु अनुकरण करने के योग्य है
रोनित एक धार्मिक गैर मसीही परिवार से आती है। उनकी आत्मिक चर्चाएं बड़ी ही अरुचिकर व औपचारिक होती थी। उसने कहा “मैं सभी प्रार्थनाओं को करती हूं परंतु मुझे [परमेश्वर से] कुछ सुनाई नहीं देता।"
उसने बाइबल पढ़ना आरंभ किया धीरे-धीरे उसका विश्वास यीशु को एक मसीहा मानने की ओर बढ़ा। रोनित निरीक्षण के बारे में बताया कि मैंने अपने हृदय में एक स्पष्ट आवाज को सुना जो मुझसे कह रही थी तुम बहुत कुछ सुन चुकी हो बहुत कुछ देख चुकी हो अब समय आ गया है कि तुम विश्वास करो परंतु उनके समक्ष एक समस्या थी उसके पिता। वह उस क्षण को याद करती है जब उसके पिता ने इसके प्रति अपना रौद्र रूप दिखाया।
जब यीशु इस पृथ्वी पर चलते थे तो उनके पीछे भीड़ चलती थी (लूका 14:25) हमें स्पष्ट रूप से पता नहीं है कि भीड़ क्या ढूंढ रही थी, परंतु यीशु चेलों की तलाश में था । और उसके लिए कीमत चुकानी पड़ती है । “यदि कोई मेरे पास आए, और अपने पिता और माता और पत्नी और बच्चों और भाइयों और बहिनों वरन् अपने प्राण को भी अप्रिय न जाने, तो वह मेरा चेला नहीं हो सकता", यीशु ने कहा (पद 26)। उसने एक गढ़ बनाने के विषय कहानी कही । "पहले बैठकर खर्च न जोड़े....? उसने पूछा (पद 28)। यीशु का मतलब अपने परिवार से घृणा करना नहीं था परंतु यह कहना चाह रहे थे कि इन सबसे बढ़कर हमें उसका चुनाव करना है । उन्होंने कहा, "तुम में से जो कोई अपना सब कुछ त्याग न दे, वह मेरा चेला नहीं हो सकता"(पद 33)।
रोनित अपने परिवार को बहुत प्रेम करती हैं फिर भी उसने कहा चाहे कितनी भी कीमत क्यों ना हो मैंने जान लिया है कि वह योग्य है। यीशु आपका मार्गदर्शन कर रहे हैं तो उनका अनुसरण करने के लिए आपको क्या त्यागने की आवश्यकता हो सकती है?