देने का उपहार
एक पासवान ने अपनी कलीसिया को बेचैन करनेवाली चुनौती देकर वाक्यांश “वह तुम्हें सब कुछ दे देगा” में जान डाल दी l क्या होगा यदि हम अपने कोट उतारकर ज़रुरतमंदों को दे दें? तत्पश्चात उसने अपना कोट उतारकर कलीसिया के आगे रख दिया l बहुतों ने उसके नमूने का अनुसरण किया l यह सर्दियों के समय हुआ, इसलिए उस दिन घर जाना कम आरामदायक था l किन्तु अनेक ज़रुरतमंदों को उस मौसम ने थोड़ी गर्माहट दी l
जब यूहन्ना बपतिस्मा देनेवाला यहूदिया के निर्जन प्रदेश में फिरता था, उसके पास आनेवाली भीड़ के लिए कड़ी चेतावनी थी l उसने कहा, “हे साँप के बच्चों ... मन फिराव के योग्य फल लाओ” (लूका 3:7-8) l चौंक कर उन्होंने उससे पूछा, “तो हम क्या करें?” उसने एक सलाह के साथ उत्तर दिया : “जिसके पास दो कुरते हों, वह उसके साथ जिसके पास नहीं है बाँट ले और जिसके पास भोजन हो, वह भी ऐसा ही करे” (पद.10-11) l सच्चा पश्चाताप एक उदार हृदय उत्पन्न करता है l
क्योंकि “परमेश्वर हर्ष से देनेवाले से प्रेम करता है,” दान दोष-आधारित अथवा विवशता में न हो (2 कुरिं.9:7) l किन्तु जब हम स्वतंत्रता और उदारता से देते हैं, तो हम देखते हैं कि वास्तव में लेने से देना धन्य है l
कोस्सी की साहस
टोगो के मोनो नदी में बप्तिस्मा का इंतज़ार करते हुए, कोस्सी ने झुककर लकड़ी की एक जीर्ण नक्काशी उठायी l उसके परिवार पीढ़ियों से उसके उपासक थे l इस समय उन्होंने उसे उस कुरूप वस्तु को उस अवसर के लिए जलाई गयी आग में फेंकते देखा l अब उनकी अच्छी मुर्गियाँ इस देवता के आगे बलि नहीं होंगी l
पाश्चात्य देशों में लोग मूर्तियों को परमेश्वर के स्थान पर पूजी जानेवाली वस्तुओं का अलंकार समझते हैं l पश्चिम अफ्रीका के टोगो में, मूर्तियाँ वास्तविक ईश्वर हैं जिन्हें बलि देकर शांत करना ज़रूरी है l मूर्तियों को जलाना और बप्तिस्मा एक सच्चे परमेश्वर के प्रति एक नए विश्वासी के स्वामिभक्ति की साहसिक अभिव्यक्ति है l
जैसे आठ वर्षीय राजा योशिय्याह ने एक मूर्तिपूजक और यौनाचार ग्रस्त संस्कृति में शासन संभाला l उसके पिता और दादा यहूदा के सम्पूर्ण अनैतिक इतिहास में सबसे ख़राब थे l तब महायाजक को व्यवस्था की पुस्तक मिली l युवा राजा ने उसके वचन सुनकर उनको माना (2 राजा 22:8-13) l योशिय्याह ने विधर्मियों के वेदियाँ ध्वस्त कर दीं, अशेरा देवी को समर्पित वस्तुएं जला दीं, और विध्यात्मक यौनाचार पर विराम लगाया (अध्याय 23) l इन पद्धतियों के स्थान पर, उसने फसह पर्व लागू किया (23:21-23) l
हम जब भी-जाने या अनजाने में-परमेश्वर के बाहर उत्तर खोजेंगे, हम झूठे ईश्वर का अनुसरण करेंगे l खुद से पूछना बुद्धिमत्ता होगी : हमें कौन सी मूर्तियाँ, वास्तविक अथवा प्रतीकात्मक, आग में फेंकनी हैं?
दो आकृतियाँ
चर्च के बरामदे पर एक स्वाभिमानी दादी दो तस्वीर मित्रों को दिखा रही थी l एक चित्र उसके घर, बुरून्डी में उसकी बेटी का था l और दूसरा उसके नवजात पौत्र का जिसे जन्म देते समय उसकी मृत्यु हो गई l
एक सहेली ने उन तस्वीरों को देखकर, उनके दुःख को अपना मानते हुए, उस प्रिय दादी के चेहरे को अपने हाथों से थाम लिया l उसने अपने आँसुओं द्वारा केवल यह बोली, “मैं समझती हूँ l मैं समझती हूँ l”
और वह समझती थी l दो महीने पहले उसने एक बेटा खोया था l
दूसरों का दिलासा विशेष है जिन्होंने हमारे दर्द का अनुभव किया है l वे जानते हैं l यीशु अपनी गिरफ़्तारी से ठीक पहले, अपने शिष्यों को चिताया, “तुम रोओगे और विलाप करोगे, परन्तु संसार आनंद करेगा l” किन्तु अगले क्षण उसने उनको संभाला : “तुम्हें शोक होगा, परन्तु तुम्हारा शोक आनंद में बदल जाएगा” (यूहन्ना 16:20) l कुछ ही घंटों में, शिष्य यीशु की गिरफ़्तारी और क्रूसीकरण से उजड़ा हुआ महसूस करेंगे l किन्तु उसे जीवित देखकर उनका बिखरता आनंद तुरंत ही अकल्पनीय आनंद में बदल गया l
यशायाह ने उद्धारकर्ता के विषय नबूवत की, “निश्चय उसने हमारे रोगों को सह लिया और हमारे ही दुखों को उठा लिया” (यशा. 53:4) l हमारा प्रभु दुःख के विषय जानता ही नहीं, बल्कि सहा है l वह चिंता करता है l एक दिन हमारा दुःख आनंद में बदल जाएगा l
मेरा सर्वस्व
युवा आइज़क वाट ने अपने चर्च में संगीत का अभाव महसूस कर पिता की चुनौती से गीत लिखा, “जिस क्रूस पर यीशु मरा था” अंग्रेजी भाषा का महानतम गीत अनेक भाषाओं में अनुदित हुआ l
आराधना से भरपूर तीसरा अंतरा हमें क्रूसित यीशु की उपस्थिति में पहुँचा देता है l
देख, उसके सिर, हाथ, पाँव के घाव, यह कैसा दुःख, यह कैसा प्यार!
अनूठा है यह प्रेम-स्वभाव, अनूप यह जग का तारणहार l
वाट अत्यधिक ख़ूबसूरती से क्रूसीकरण का वर्णन इतिहास के सबसे भयंकर क्षण के रूप में करता है l हम क्रूस के निकट खड़े लोगों का साथ देते हैं l देह में चुभी किलों से टंगा परमेश्वर पुत्र श्वास लेने की कोशिश करता है l घंटों के उत्पीड़न बाद, अलौकिक अंधकार छा जाता है l अनंतः, सौभाग्य से सृष्टि का प्रभु अपना मनोव्यथित आत्मा त्याग देता है l धरती डोलती है l मंदिर का मोटा परदा दो भाग हो जाता है l कब्रों से अनेक शव जी उठकर नगर में दिखाई देते हैं (मत्ती 27:51-53) l इस घटना से यीशु को क्रूसित करनेवाले सूबेदार बोल उठता है, “सचमुच यह परमेश्वर का पुत्र था!” (पद.54) l
वाट की कविता पर पोएट्री फाउंडेशन टिप्पणी करती है, “क्रूस समस्त मान्यताओं को पुनः व्यवस्थित करती है और समस्त दिखावे को रद्द करती है l” गीत का अंत इस तरह ही हो सकता था : “हे यीशु प्रिय आप को मैं, समर्पित करता हूँ देह, प्राण l”
छोटी झूठ और बिलौटे
माँ ने चार वर्षीय एलियास को नवजात बिलौटों के पास से भागते हुए देखा l क्योंकि उसे छूने को मना किया था l पूछने पर एलियास झूठ बोला l
माँ के फिर पूछने पर कि क्या वे मुलायम थे?
उसने कहा, “हाँ और काला वाला म्याऊँ करता है l”
हम बच्चे के ऐसे झूठ पर हँसते हैं l किन्तु यह अनाज्ञाकारिता मानव स्थिति है l चार वर्षीय बच्चे को कोई झूठ बोलना नहीं सिखाता l “दाऊद अपने आदर्श पापस्वीकार में लिखता है, “मैं अधर्म के साथ उत्पन्न हुआ, “[हाँ] पाप के साथ अपनी माता के गर्भ में पड़ा” (भजन 51:5) l प्रेरित पौलुस ने कहा, जब आदम ने पाप किया, पाप [संसार] में प्रवेश किया l उसके पाप से ... मृत्यु फ़ैल गई, ... क्योंकि सबने पाप किया” (रोमि. 5:12 NLT) l यह निराजनक खबर सब पर लागू है l
किन्तु आशा बहुत है! “पौलुस लिखता है, “[व्यवस्था] इसलिए दी गई जिससे सब देख सकें कि वे ... कितने असफल रहे हैं l परन्तु जितना अधिक हम अपनी पापमय अवस्था को देखते हैं, उतना ही अधिक हम परमेश्वर के अपार अनुग्रह पर ध्यान करते हैं” (रोमि.5:20 NLT) l
परमेश्वर हमारी गलती करने के लिए ठहरता नहीं कि वह हम पर झपट्टा मारे l वह अनुग्रह, क्षमा, और पुनःस्थापन करता है l हमें केवल जाने कि हमारे पाप सुन्दर और बहाने के योग्य नहीं और हमें विश्वास और पश्चाताप में उसके निकट आना है l
सन्देह की मृत्यु
हम उसे संदेही थोमा कहते हैं (देखें यूहन्ना 20:24-29), किन्तु यह नाम बिल्कुल ठीक नहीं है l आख़िरकार, हममें से कितने विश्वास किये होते कि हमारा मृतक अगुआ पुनरुथित हुआ है? हम उसे “साहसी थोमा” भी पुकार सकते हैं l आखिरकार, यीशु के अपनी मृत्यु की ओर उद्देश्यपूर्ण ढंग से बढ़ते समय, थोमा ने प्रभावशाली साहस दर्शाया l
लाजर की मृत्यु के बाद, यीशु ने कहा था, “आओ, हम फिर यहूदिया को चलें” (यूहन्ना 11:7), शिष्यों ने जिसका विरोध किया l “हे रबी,” उन्होंने कहा, “अभी तो यहूदी तुझ पर पथराव करना चाहते थे, और क्या तू फिर भी वहीं जाता है?” (पद.8) l थोमा ने ही बोला था, “आओ, हम भी उसके साथ मरने को चलें” (पद. 16) l
थोमा का विचार उसके कार्य से उत्तम था l यीशु की गिरफ़्तारी पश्चात, पतरस और यूहन्ना को छोड़कर जो मसीह के संग महायाजक के आंगन तक गए, थोमा बाकी के साथ भाग गया (मत्ती 26:56) l केवल यूहन्ना ही यीशु के संग क्रूस तक गया l
लाजर को जीवित देखकर भी (यूहन्ना 11:38-44), थोमा क्रूसित प्रभु की मृत्युंजय पर विश्वास नहीं किया l मानवीय-संदेही थोमा-पुनरुथित यीशु को देखने के बाद ही विश्वास करके बोला, “हे मेरे प्रभु, हे मेरे परमेश्वर” (यूहन्ना 20:28) l संदेही को यीशु ने निश्चय दिया और हमें अपार सुख l “तू ने मुझे देखा था, क्या इसलिए विश्वास किया है? धन्य वे हैं जिन्होंने बिना देखे विश्वास किया?” (पद. 29) l
अवसर क्या है?
चार-वर्षीय आशेर का मुस्कराता चेहरा उसके पसंदीदा टोपीवाली व्यायाम-कमीज़ से झाँका l मुलायम जबड़ों वाली घड़ियाल के सिर वाली उसकी कमीज़ मानो उसके सिर को निगलने वाली थी! उसकी माँ निराश हुई l वह एक परिवार को प्रभावित करना चाहती थी जिनसे वह हाल में नहीं मिली थी l
“अरे, हौन,” वह बोली, “इस अवसर के लिए यह ठीक नहीं है l”
“बिल्कुल है !” आशेर ख़ुशी से बोला l
“हूँ ..., और वह कौन सा अवसर हो सकता है?” उसने पुछा l आशेर बोला, “तुम जानती हो l जीवन!” उसे कमीज़ पहनना होगा l
यह बच्चा सभोपदेशक 3:12 का सत्य जानता है – “मनुष्यों के लिए आनंद करने और जीवन भर भलाई करने के सिवाय, और कुछ भी अच्छा नहीं l” सभोपदेशक निराशा और अक्सर ग़लतफ़हमी उत्पन्न कर सकता है क्योंकि यह परमेश्वर की नहीं किन्तु मानवीय दृष्टिकोण है l लेखक, राजा सुलेमान, पूछता है, “काम करनेवाले को अपने परिश्रम से क्या लाभ होता है? (पद.9) l फिर भी आशा दिखती है l वह यह भी लिखता है : “और यह भी परमेश्वर का दान है कि मनुष्य खाए-पीए और अपने सब परिश्रम में सुखी रहे” (पद.13) l
हम ऐसे परमेश्वर के सेवक हैं जो आनंद हेतु हमें अच्छी वस्तुएं देता है l जो कुछ वह करता है “सदा स्थिर रहेगा” (पद. 14) l उसको पहचानकर और उसकी प्रेमी आज्ञाएँ मानने पर वह हमारे जीवनों को उद्देश्यपूर्ण, अर्थपूर्ण, और आनंदित बनाता है l
सम्पूर्ण मानव
अंग्रेज लेखक एवालिन वॉ के लिखने से उसकी चारित्रिक गलतियाँ अधिक स्पष्ट हो जाती थीं l वह उपन्यासकार मसीही होकर भी, संघर्ष करता रहा l किसी स्त्री ने पूछा, “श्री वॉ, आपका व्यवहार बदला नहीं, फिर भी खुद को मसीही कहते हैं?” उसने उत्तर दिया, “महोदया, आपके अनुसार मैं बुरा हो सकता हूँ l किन्तु मेरी माने, यह मेरा धर्म ही है, नहीं तो मैं मानव भी नहीं होता l
वॉ आन्तरिक युद्ध लड़ रहा था जो पौलुस कहता है : “इच्छा तो मुझ में है, परन्तु भले काम मुझ से बन नहीं पड़ते” (रोमियों 7:18) l “मैं शारीरिक और पाप के हाथ बिका हुआ हूँ” (पद.14) l “मैं भीतरी मनुष्यत्व से तो परमेश्वर की व्यवस्था से बहुत प्रसन्न रहता हूँ l परन्तु .... मुझे इस मृत्यु की देह से कौन छुड़ाएगा?” (पद.22-24) l और उसके बाद उल्लसित उत्तर : “हमारे प्रभु यीशु मसीह के द्वारा परमेश्वर का धन्यवाद हो” (पद.25) l
जब हम मसीह में विश्वास करके, अपनी गलतियाँ और उद्धारकर्ता की ज़रूरत महसूस करते हैं, हम तुरंत नयी सृष्टि बन जाते हैं l किन्तु हमारी आत्मिक यात्रा अभी लम्बी है l प्रेरित यूहन्ना अनुसार : “अब हम परमेश्वर की संतान हैं, और अभी तक यह प्रगट नहीं हुआ कि हम क्या कुछ होंगे l ... जब वह प्रगट होगा तो हम उसके समान होंगे, क्योंकि उसको वैसा ही देखेंगे जैसा वह है” (1 यूहन्ना 3:2) l
गुणित प्रेम
जब केरेन के चर्च की एक महिला के विषय पता चला कि उसे ALS(amyotrophic lateral sclerosis या Lou Gehrig) नामक जानलेवा बीमारी हो गई है, स्थिति अच्छी नहीं थी l यह क्रूर बीमारी तंत्रिकाओं और मांशपेशियों को प्रभावित करके रोगी को लकवाग्रस्त कर देता है l पारिवारिक बीमा से घर में इलाज संभव नहीं था और उसका पति नर्सिंग होम में इलाज करने की कल्पना भी नहीं कर सकता था l
नर्स होने के कारण केरेन उस महिला की सेवा करने उसके घर जाने लगी l किन्तु जल्द ही वह समझ गई कि अपने मित्र की सेवा करते हुए वह अपने परिवार की देखभाल नहीं कर पा रही थी, इसलिए उसने चर्च में दूसरों को सेवा भाव सीखना आरंभ कर दी l अगले सात वर्षों में बीमारी के बढ़ने पर केरेन ने अपने अलावा इकतीस स्वयंसेवकों को प्रशिक्षित किया जिन्होंने उस परिवार को प्रेम, प्रार्थना, और व्यावहारिक सहायता दी l
“जो कोई परमेश्वर से प्रेम रखता है [उसे] अपने भाई [और बहन] से भी प्रेम [रखना होगा],” प्रेरित यूहन्ना ने कहा (1 यूहन्ना 4:21) l केरेन उस प्रकार के प्रेम का एक दीप्त उदाहरण देती है l वह कुशल, प्रेमी, और एक चर्च परिवार को एक दुखित मित्र की सेवा हेतु प्रेरित करने वाली थी l एक ज़रूरतमन्द व्यक्ति के लिए उसका प्रेम गुणित व्यावहारिक प्रेम बन गया l