Our Authors

सब कुछ देखें

Articles by विन्न कॉलियर

बिना सोचे समझे खतरे की ओर आगे बढ़

1892 में, हैजा से पीड़ित एक निवासी ने गलती से यह बीमारी एल्बे नदी के माध्यम से जर्मनी की संपूर्ण जल आपूर्ति हैम्बर्ग तक फैला दी। कुछ ही हफ्तों में दस हजार नागरिक मर गये। आठ साल पहले, जर्मन सूक्ष्म जीवविज्ञानी (microbiologist) रॉबर्ट कॉख ने एक खोज की थी: हैजा पानी से होने वाली बीमारी है जो तेजी से फैलती है। कॉख के इस प्रकटन ने बड़े यूरोपीय शहरों के अधिकारियों को अपने पानी की सुरक्षा के लिए फिल्ट्रेशन प्रणाली (पानी साफ करने की एक विधि) में निवेश करने के लिए प्रेरित किया। हालाँकि, हैम्बर्ग के अधिकारियों ने कुछ नहीं किया। लागतों का हवाला देते हुए और संदेहपूर्ण विज्ञान का आरोप लगाते हुए, उन्होंने स्पष्ट चेतावनियों को नजरअंदाज कर दिया, जबकि उनका शहर तबाही की ओर अग्रसर था।

नीतिवचन की किताब हममें से उन लोगों के बारे में बहुत कुछ कहती है जो मुसीबत देखते हैं फिर भी कोई कदम उठाने या काम करने से इनकार कर देते हैं। "बुद्धिमान व्यक्ति खतरे को पहले से ही भांप लेता है और सावधानी बरतता है।” (27:12)। जब परमेश्वर हमें आगे आने वाले खतरे को देखने में मदद करता है, तो खतरे को दूर करने के लिए कोई कदम उठाना या काम करना सही समझ है। हम समझदारी से रास्ता बदलते हैं। या हम उसके द्वारा प्रदान की जाने वाली उचित सावधानियों के साथ स्वयं को तैयार करते हैं। लेकिन हम कुछ तो अवश्य ही करते हैं I कुछ न करना सरासर पागलपन है। हालाँकि, हम सभी चेतावनी संकेतों को नज़रअंदाज़ करने में विफल हो सकते हैं और आपदा की ओर बढ़ सकते हैं। "भोले लोग आगे बढ़े चले जाते और हानि उठाते है” (पद-12)।

पवित्रशास्त्र में और यीशु के जीवन के द्वारा, परमेश्वर हमें अनुसरण करने का मार्ग दिखाते हैं और हमें निश्चित रूप से आने वाली मुसीबतों के बारे में चेतावनी देते हैं। यदि हम मूर्ख हैं, तो हम बिना सोचे समझे खतरे की ओर आगे बढ़ सकते है या इसके बजाय, जब वह अपनी कृपा से हमारा नेतृत्व करता है, तो क्या हम उसकी बुद्धि पर ध्यान दे सकते हैं और अपना रास्ता बदल सकते हैं।

हमें जिस बुद्धि की आवश्यकता है

अपनी याद रहने वाली (अति महान)  पुस्तक द ग्रेट इन्फ्लुएंजा (The Great Influenza) में, जॉन एम. बैरी ने 1918 फ्लू महामारी की कहानी का वर्णन किया है। बैरी ने खुलासा किया कि कैसे स्वास्थ्य अधिकारियों ने सतर्क रहने के बजाय बड़े पैमाने पर फैलने की आशंका जताई थी। उन्हें डर था कि प्रथम विश्व युद्ध, जिसमें सैकड़ों हजारों सैनिक खाइयों में ठूंस दिए गए और सीमाओं के पार चले गए, नए वायरस फैलाएंगे। लेकिन तबाही रोकने के लिए ये ज्ञान बेकार था. शक्तिशाली नेता युद्ध पर ज़ोर देते हुये बिना सोचे समझे हिंसा की ओर अग्रसर हो गये। और महामारी विशेषज्ञों ने अनुमान लगाया है कि महामारी में पांच करोड़ लोग मारे गए थे, जो युद्ध के नरसंहार में मारे गए लगभग दो करोड़ लोगों को और जोड़ते हैं।

हमने बार-बार साबित किया है कि हमारा मानवीय ज्ञान हमें बुराई से बचाने के लिए कभी भी पर्याप्त नहीं होगा (नीतिवचन 4:14-16)। हालाँकि हमने अपार ज्ञान अर्जित किया है और उल्लेखनीय अंतर्दृष्टियाँ (insights) प्रस्तुत की हैं, फिर भी हम एक-दूसरे को पहुँचाने वाली पीढ़ा को रोक नहीं सकते हैं। हम "दुष्टों के मार्ग" को नहीं रोक सकते, यह मूर्खतापूर्ण, दोहराने वाला मार्ग जो "गहन अंधकार" की ओर ले जाता है। हमारे सर्वोत्तम ज्ञान के बावजूद, हमें वास्तव में यह पता नहीं है कि "हम किस से ठोकर खाते है” (पद-19)।

इसलिए हमें "बुद्धि प्राप्त करनी चाहिए, समझ प्राप्त करनी चाहिए" (पद-5)। बुद्धि हमें सिखाती है कि ज्ञान के साथ क्या करना है। और सच्ची बुद्धि, यह बुद्धि जिसकी हमें अत्यंत आवश्यकता है, परमेश्वर से आती है। हमारा ज्ञान हमेशा कम पड़ता है, लेकिन उसकी बुद्धि वह प्रदान करती है जिसकी हमें आवश्यकता है।

सुंदर बहाली (पुनरुद्धार)

प्रसिद्ध कलाकार मकोतो फुजीमुरा ने अपनी अद्भुत पुस्तक आर्ट + फेथ: ए थियोलॉजी ऑफ मेकिंग में प्रसिद्ध कलाकार मकोतो फुजीमुरा किंत्सुगी के प्राचीन जापानी कला रूप का वर्णन करते हैं। इसमें कलाकार टूटे हुए मिट्टी के बर्तन (मूल रूप से चाय के बर्तन) के टुकड़ों को लाख के साथ जोड़कर दरारों में सोना भरता है। फुजीमुरा बताते हैं – “किंत्सुगी सिर्फ एक टूटे हुए बर्तन को ठीक या मरम्मत नहीं करता है, बल्कि यह तकनीक टूटे हुए मिट्टी के बर्तनों को पहले से भी अधिक सुंदर बना देती है।”  किन्त्सुगी की शुरुआत सदियों पहले हुई थी जब एक सेनापति का पसंदीदा कप टूट गया था और फिर जिसे खूबसूरती से बहाल किया गया था, और तब से यह एक कला बन गई जो अत्यधिक बेशकीमती और चाहने योग्य है। 

यशायाह ने परमेश्वर द्वारा संसार के साथ इस प्रकार की बहाली को कुशलतापूर्वक क्रियान्वित करने का वर्णन किया है। यद्यपि हम अपने विद्रोह के कारण बरबाद हो गए हैं और अपने स्वार्थ के कारण टूट गए हैं, परमेश्वर “नया आकाश और नई पृथ्वी” बनाने का वादा करता है (65:17)। वह न केवल पुरानी दुनिया की मरम्मत करने की योजना बना रहा है बल्कि इसे पूरी तरह से नया बनाने के लिए हमारी बर्बादी (खंडहरों)  को हटाकर एक ताज़ी सुंदरता से झिलमिलाती दुनिया को बनाने की योजना बना रहा है। यह नई रचना इतनी आश्चर्यजनक और शोभायमान होगी कि “पिछला कष्ट दूर हो जायेगा और पिछली बातें याद नहीं रहेंगी” (पद 16–17)। इस नई रचना के साथ, परमेश्वर हमारी गलतियों को छिपाने के लिए संघर्ष नहीं करेंगे, बल्कि अपनी रचनात्मक शक्ति को प्रकट करेंगे – शक्ति जिससे  बदसूरत चीजें सुंदर बन जाती हैं और मृत चीजें नए सिरे से सांस लेती हैं।

जब हम अपने टूटे हुए जीवन का सर्वेक्षण करते हैं, तो निराशा की कोई आवश्यकता नहीं है। परमेश्वर अपनी सुंदर बहाली का कार्य कर रहा है।

परमेश्वर की महान गाथा

लाइफ मैगज़ीन के 12 जुलाई, 1968 के मुखपृष्ठ पर बियाफ्रा (नाइजीरिया में गृहयुद्ध के दौरान) के भूख से मर रहे बच्चों की भयानक तस्वीर प्रकाशित की गई थी। एक जवान लड़के ने परेशान होकर उस मैगज़ीन की एक प्रतिलिपि (कॉपी) पास्टर के पास ले जाकर पूछा, “क्या परमेश्वर को इस बारे में मालूम है?” उस पास्टर ने उत्तर दिया, “मैं जानता हूँ कि तुम इस बात को नहीं समझ सकते, परन्तु, हाँ, परमेश्वर को इस बारे में मालूम है।” इस पर वह लड़का यह कहते हुए बाहर चला गया कि उसे ऐसे परमेश्वर में कोई दिलचस्पी नहीं है।

ऐसे प्रश्न केवल बच्चों को ही नहीं बल्कि हम सभी को परेशान करते हैं। परमेश्वर के रहस्यमयी ज्ञान की पुष्टि के साथ-साथ, मैं इस बात की आशा करता हूँ कि काश उस लड़के ने उस महान गाथा के बारे में सुना होता जिसे परमेश्वर ने लिखना जारी रखा   है यहाँ तक कि बियाफ्रा जैसे स्थानों में भी।

यीशु ने अपने उन अनुयायियों के लिए इस कहानी को प्रकट किया, जिन्होंने यह मान लिया था कि कठिनाई से वह उनकी रक्षा करेगा। इसके बजाय मसीह ने उनसे कहा कि “इस संसार में तुम्हें क्लेश होता है।” हालाँकि, यीशु ने जिस बात की पेशकश की, वह उसकी यह प्रतिज्ञा थी कि ये बुराइयाँ अंत नहीं हैं। वास्तव में, उसने पहले से ही “संसार को जीत लिया है” (यूहन्ना 16:33)। और परमेश्वर के अंतिम अध्याय में, हर एक अन्याय को मिटा दिया जाएगा, हर एक दुःख ठीक हो जाएगा।

उत्पत्ति से लेकर प्रकाशितवाक्य तक की पुस्तकें हर अकल्पनीय बुराई को नष्ट करने, हर गलत बात को सही करने की परमेश्वर की कहानी को याद दिलाती  हैं। यह कहानी उस प्रेम करने वाले व्यक्ति को प्रस्तुत करती है जिसकी हममें अविवादित रुचि है। यीशु ने अपने चेलों से कहा कि “मैंने ये बातें तुम से इसलिए कही हैं, कि तुम्हें मुझ में शांति मिले” (पद 33)। सम्भव है कि आज के समय में भी हम उसकी शांति और उपस्थिति में विश्राम करें।

यीशु हमारा भाई

ब्रिजर वॉकर केवल छह साल का था जब एक खतरनाक कुत्ता उसकी छोटी बहन पर झपट पड़ा l स्वभाविक रूप से, ब्रिजर कुत्ते के क्रूर हमले से उसे बचाने के लिए उसके सामने कूद गया l आपातकालीन देखभाल प्राप्त करने और उसके चेहरे पर नब्बे टाँके लगने के बाद, ब्रिजर ने बताया l “अगर किसी को मरना था, तो वह मैं था l” शुक्र है कि प्लास्टिक सर्जनों ने ब्रिजर के चेहरे को ठीक कर दिया l लेकिन उसका स्नेहमय प्यार, नए तस्वीरों से जाहिर होता है, जहाँ वह अपनी बहन को गले लगाते हुए दिखाई देता है, जो सदैव मजबूत बना हुआ है l

आदर्श रूप से, परिजन हम पर नज़र रखते हैं और हमारी देखभाल करते हैं l सच्चे भाई जब हम डरते हैं या अकेले होते हैं हमारे मुसीबत में आते हैं l वास्तव में, हमारे सबसे अच्छे भाई भी अपूर्ण हैं; कुछ हमें चोट भी पहुंचाते हैं l हालाँकि, हमारा एक भाई, यीशु हमेशा हमारी तरफ है l इब्रानियों हमें बताता है कि मसीह, विनम्र प्रेम के एक कार्य के रूप में, मानव परिवार में शामिल हो गया, हमारे “मांस और लहू” को साझा किया और, “सब बातों में अपने भाइयों के समान [बना]” (2:14,17) l परिणामस्वरूप, यीशु हमारा सबसे सच्चा भाई है, और वह हमें अपना “भाई [और बहन]” कहकर प्रसन्न होता है (पद.11) l

हम यीशु को अपने उद्धारकर्ता, मित्र और राजा के रूप में संदर्भित करते हैं—और इनमें से हर एक सत्य है l हालाँकि, यीशु हमारा भाई भी है जिसने हर मानवीय भय और प्रलोभन, हर निराशा या उदासी का अनुभव किया है l हमारा भाई हमेशा हमारे साथ खड़ा है l

सबल और निर्बल

कॉलेज फुटबॉल में शायद सबसे हृदयस्पर्शी परंपरा आयोवा विश्वविद्यालय, संयुक्त राज्य अमेरिका में होती है l आयोवा के किन्निक स्टेडियम के बगल में स्थित स्टेड फैमिली चिल्ड्रेन हॉस्पिटल है, और हॉस्पिटल की सबसे ऊपरी मंजिल में फर्श से छत तक खिड़कियाँ हैं जो मैदान का शानदार दृश्य प्रस्तुत करती हैं l खेल के दिनों में, बीमार बच्चे और उनके परिवार नीचे की कार्यवाई देखने के लिए फर्श पर इकठ्ठा होते हैं, और पहली तिमाही के अंत में, कोच, एथलीट और हजारों प्रशंसक हॉस्पिटल की ओर मुड़कर हाथ हिलाते हैं l उन कुछ पलों में बच्चों की आँखों में चमक आ जाती है l खिलाड़ियों से खचाखच भरे स्टेडियम में और हज़ारों की संख्या में टीवी दर्शकों के सामने, खिलाडियों का रूककर अपना परवाह दिखाना शक्तिशाली है l

शास्त्र शक्तिशाली लोगों को (और हम सभी के पास किसी न किसी प्रकार की शक्ति है) निर्देशित करते हैं कि जो कमज़ोर हैं उनकी देखभाल करें, उन पर ध्यान दें जो संघर्ष कर रहे हैं, और उनकी देखभाल करें जिनके शरीर टूटे हुए हैं l हालाँकि, बहुत बार, हम उन लोगों की उपेक्षा करते हैं जिनपर ध्यान देने की ज़रूरत है (यहेजकेल 34:6) l नबी यहेजकेल ने इस्राएल के अगुओं को उनके स्वार्थी स्वभाव के लिए डांटा, उन लोगों की उपेक्षा करने के लिए जिन्हें सहायता की अति आवश्यकता थी l “हाय,” परमेश्वर ने यहेजकेल द्वारा कहा l “तुम ने बीमारों को बलवान न किया, न रोगियों को चंगा किया, न घायलों के घावों को बाँधा” (पद.2, 4) l

कितनी बार हमारी व्यक्तिगत प्राथमिकताएँ, नेतृत्व दर्शन, या आर्थिक नीतियाँ संकट में पड़े लोगों के प्रति कम सम्मान प्रदर्शित करती हैं? परमेश्वर हमें एक अलग मार्ग दिखाता है, जहाँ शक्तिशाली लोग निर्बलों की परवाह करते हैं (पद.11-12) l

प्रार्थना और परिवर्तन

1982 में, पास्टर  क्रिस्चियन फह्रेर ने जेर्मनी के, लेइप्ज़िग्स संत निकोलस चर्च में सोमवारीय प्रार्थना सभा शुरू किया। वर्षों के लिए वैश्विक हिंसा और अत्याचारी पूर्वी जर्मन शासन के दौरान परमेश्वर से शान्ति मांगने के लिए कुछ लोग इकट्ठा हुए। भले ही साम्यवादी अधिकारीयों ने कलीसिया को निकटता से देखा, लेकिन तब तक निफिक्र थे जब तक की उपस्थिति बढ़ न गया और फैलकर कलीसिया के दरवाजे के बाहर सामूहिक सभाएं न होने लगीं। 9 अक्टूबर, 1989 को सत्तर हज़ार प्रदर्शनकारी एकत्रित हुए और शांतिपूर्वक विरोध किया। छह हजार पूर्वी जर्मन पुलिस किसी भी उकसावे का जवाब देने के लिए तैयार थी। हालाँकि, भीड़ शांतिपूर्ण रही और इतिहासकार इस दिन को एक महत्वपूर्ण क्षण मानते हैं। एक महीने बाद, बर्लिन की दीवार गिर गई। बड़े पैमाने पर बदलाव की शुरुआत प्रार्थना सभा से हुई। 

            

जब हम परमेश्वर की ओर मुड़ते और उनके बुद्धि और सामर्थ्य पर निर्भर होना शुरू करते हैं, चीजे अक्सर बदलने और नया आकार लेने लगती है। इस्राएलियों की तरह जब हम “संकट में यहोवा की दोहाई देते हैं,” हम उस एकमात्र परमेश्वर को पाते हैं जो हमारे सबसे विकट परिस्थितियों को भी गहराई से बदलने और हमारे सबसे पेचीदा सवालों का जवाब देने में सक्षम है (भजन संहिता 107:28)। “परमेश्वर आँधी को थाम देता है और तरंगें बैठ जाती हैं।” और "निर्जल देश को जल के सोते कर देता है।” (पद 29, 35)। वह एक जिनसे हम प्रार्थना करते है निराशा से आशा और बरबादी से सुंदरता लाता है। 

             

परन्तु यह परमेश्वर है जो (अपने समय में—हमारे समय में नहीं) रूपान्तरण का कार्य करता है। प्रार्थना यह है कि परिवर्तनकारी कार्य जो वह कर रहा है उसमें हम किस तरह भाग लेते हैं ।

ईश्वर की अचूक यादगार

एक व्यक्ति के पास बिटकॉइन में $400 मिलियन से अधिक मुद्रा थी।  लेकिन वह इसके एक प्रतिशत तक भी नहीं पहुंच सका। अपने धन को जमा करने वाले उपकरण का पासवर्ड उससे खो  गया था।  और आपदा घटी — दस पासवर्ड से कोशिश करने के बाद, उपकरण अपने आप ही नष्ट हो गया।  उसकी सम्पति (तकदीर)हमेशा के लिए खो गई। एक दशक तक, वह व्यक्ति बैचेन था, वह अपने जीवन को बदलने वाले  निवेश पूँजी के पासवर्ड को याद करने की सख्त कोशिश कर रहा था। उसने आठ पासवर्ड आज़माए और आठ बार विफल रहा। 2021 में, वह बहुत दुखी हुआ कि उसके पास सिर्फ दो और मौके थे और फिर — सब कुछ धुएं में उड़ गया। 

हम भूलने वाले (भुलक्कड़) लोग हैं। कभी–कभी हम छोटी चीजें भूल जाते हैं–  हमने अपनी चाबियां कहां रखी हैं; और कभी–कभी हम बड़ी चीजें भूल जाते हैं एक पासवर्ड जो लाखों अनलॉक करता है। शुक्र है परमेश्वर हमारे जैसा नहीं है। वह उन चीजों या लोगों को कभी नहीं भूलता जो उसे प्रिय हैं। संकट के समय में इस्राएल को डर था कि परमेश्वर उन्हें भूल गया है। यहोवा ने मुझे त्याग दिया है, यहोवा मुझे भूल गया है (यशायाह 49:14)। हालाँकि, यशायाह ने उन्हें आश्वासन दिया कि उनका परमेश्वर हमेशा याद रखता है। क्या कोई माँ अपने दूध पीते बच्चे को भूल सकती है? वह पूछता है। बेशक, एक माँ अपने दूध पीते बच्चे को नहीं भूलेगी। फिर भी, भले ही एक माँ ऐसी मूर्खता करे, पर  हम जानते हैं कि परमेश्वर हमें कभी नहीं भूलेगा (पद 15)।

परमेश्वर कहते हैं, “देख, मैंने तेरा चित्र अपनी हथेलियों पर खोद कर बनाया है।” (पद 16)। परमेश्वर ने हमारे नामों को अपने अस्तित्व में खोदा है। आइए हम याद रखें कि वह हमें भूल नहीं सकता है–जिनसे वह प्यार करता है।

जो केवल आत्मा ही कर सकती है

जुरगेन मोल्टमैन नाम के एक चौरानवे वर्षीय जर्मन धर्मशास्त्री द्वारा लिखित पवित्र आत्मा पर एक पुस्तक की चर्चा के दौरान, एक इन्टरव्यू लेने वाले ने उनसे पूछा: "आप पवित्र आत्मा को कैसे सक्रिय करते हैं? क्या हम एक गोली ले सकते हैं? क्या दवा कंपनियाँ [आत्मा प्रदान करती हैं]?" मोल्टमैन की घनी भौहें तन गईं। अपना सिर हिलाते हुए, वह ज़ोर से अंग्रेजी में जवाब देते हुए मुस्कुराया। "मैं क्या कर सकता हुँ? कुछ मत करो आत्मा की बाट जोहो, और आत्मा आ जाएगी।”

मोल्टमैन ने हमारी गलत धारणा पर प्रकाश डाला कि हमारी ऊर्जा और विशेषज्ञता चीजों को घटित करती है। अधिनियमों से पता चलता है कि प्रभु चीजों को घटित करता है। कलीसिया की शुरुआत में, इसका मानवीय रणनीति या प्रभावशाली नेतृत्व से कोई लेना-देना नहीं था। बल्कि, आत्मा "प्रचण्ड वायु के झोंके की नाई" भयभीत, असहाय, और हक्का-बक्का चेलों के कमरे में आयी (2:2)। इसके बाद, आत्मा ने उन लोगों को इकट्ठा करके सभी जातीय श्रेष्ठताओं को तोड़ दिया जो एक नए समुदाय में भिन्न थे। प्रभु उनके भीतर क्या कर रहा था यह देखकर शिष्य भी उतने ही हैरान रह गए जितने कि कोई भी हो सकता है। उन्होंने कुछ नहीं किया; "आत्मा ने उन्हें समर्थ दिया" (पद. 4)।

कलीसिया—और संसार में हमारा साझा कार्य—इससे परिभाषित नहीं होता कि हम क्या कर सकते हैं। हम पूरी तरह से उस पर निर्भर हैं जो केवल आत्मा कर सकता है करना। यह हमें निडर और शांत दोनों होने की अनुमति देता है। इस दिन, जिस दिन हम पिन्तेकुस्त मनाते हैं, हम आत्मा की प्रतीक्षा करें और प्रत्युत्तर दें।