हमारे पास एक राजा है!
मेरी इच्छानुसार न होने पर अपने पति पर हानिकारक शब्दों से वार करने के बाद, मैंने पवित्र आत्मा के अधिकार का अपमान किया जब उसने बाइबिल पदों से मेरे पापी आचरण को उजागर किया l क्या मेरा अड़ियल घमण्ड मेरे विवाह में सम्बंधित हानि अथवा परमेश्वर के प्रति अनाज्ञाकारी होने के लायक था? बिल्कुल नहीं l किन्तु प्रभु और अपने पति से क्षमा मांगने से पूर्व मैंने अपने पीछे जख्में छोड़ी थीं अर्थात् बुद्धिमान सलाह की अवहेलना और केवल खुद के प्रति जवाबदेह होने का परिणाम l
एक समय इस्राएली विद्रोही थे l मूसा की मृत्यु बाद, यहोशू इस्राएलियों को प्रतिज्ञात देश में ले चला l उसकी अगुवाई में इस्राएलियों ने परमेश्वर की सेवा की (न्यायियों 2:7) l किन्तु यहोशू और उसकी पीढ़ी की मृत्यु बाद, अगली पीढ़ी के लोग परमेश्वर और उसके काम को भूल गए (पद.10) l उन्होंने ईश्वर की अगुवाई को त्यागकर पाप को गले लगाया (पद.11-15) l
परमेश्वर द्वारा राजा की तरह काम करनेवाले न्यायी खड़ा करने के बाद, स्थिति में सुधार आया (पद.16-18), l किन्तु प्रत्येक न्यायी की मृत्यु बाद, इस्राएलियों ने परमेश्वर का विरोध किया l उन्होंने केवल खुद के प्रति जवाबदेही का जीवन जीकर, हानिकारक परिणाम भुगता (पद.19-22) l किन्तु यह हमारी असलियत न हो l हम खुद को अनंत शासक यीशु के बड़े अधिकार के आधीन कर सकते हैं जिसके पीछे चलने के लिए हम बनाए गए हैं, क्योंकि वह हमारा जीवित न्यायी और राजाओं का राजा है l
अमूल्य आराधना
मैं लेखन को परमेश्वर की आराधना और सेवा मानती हूँ, जबकि इससे अधिक कि अब मेरा स्वास्थ्य मेरा चलना-फिरना सीमित कर दिया है l इसलिए, जब एक परिचित को मेरा लेखन महत्वहीन लगा, मैं निराश हुयी l मैंने परमेश्वर के लिए अपने छोटे भेंट के महत्त्व पर शक किया l
प्रार्थना, वचन अध्ययन, और मेरे पति, परिवार, और मित्रों के प्रोत्साहन द्वारा ही, प्रभु पुष्टि करता है कि केवल वह-दूसरों के दृष्टिकोण नहीं-एक उपासक के रूप में हमारी मंशा और उसके प्रति हमारी भेंट का मूल्य तय करता है l मैंने सर्वोत्तम दाता से अपने कौशल को विकसित करने और प्राप्त श्रोतों को बांटने हेतु अवसर देने को कहा l
यीशु ने हमारे देने के मापदंड का विरोध किया (मरकुस 12:41-44) l जब धनी लोग मंदिर के खजाने में बहुत अधिक पैसे डाल रहे थे, एक विधवा ने “दो दमड़ियाँ ...डाली” (पद.42) l प्रभु ने उसके दान को श्रेष्ठ माना (पद.43), यद्यपि उसका सहयोग उसके चारों ओर के लोगों से महत्वहीन दिखाई दिया (पद.44) l
यद्यपि विधवा की कहानी पैसे के दान पर केन्द्रित है, देने का हर कार्य आराधना और प्रेममय आज्ञाकारिता का एक ढंग हो सकता है l विधवा की तरह, हम परमेश्वर के दिए हुए में से जानबूझकर, उदार, और बलिदानी दान द्वारा उसका आदर करते हैं l हम परमेश्वर के प्रेम से प्रेरित हृदयों द्वारा अपना सर्वोत्तम समय, और योग्यताएँ देकर, उसे अमूल्य आराधना का भेंट चढ़ाते हैं l
अत्यधिक फल
बसंत और गर्मी के मौसम में, मैं अपने पड़ोसी के अहाते में अंगूर के बड़े गुच्छे देखता हूँ जो हम दोनों के आँगन के बीच लगे बाड़े पर लटके होते हैं l बेर और संतरे हमारे पहुँच में होते हैं l
यद्यपि हम न भूमि को जोतते हैं, न बीज बोते हैं, अथवा न बगीचे को सींचते हैं और न उसमें का घास-फूस निकालते हैं, हमारे पड़ोसी हमारे साथ अपनी आशीष बांटते हैं l वे जिम्मेदारी से अपने फसल की देखभाल करते हैं और अपने फसल के एक भाग द्वारा हमें खुश करते हैं l
हमारे पड़ोसी के बगीचे के पेड़ और अंगूर की लताएँ मुझे एक और फसल की याद दिलाते हैं जो मुझे और उन लोगों को फायदा पहुंचाते हैं जो परमेश्वर ने मेरे जीवन में दिए हैं l वह फसल आत्मा का फल है l
मसीह के विश्वासियों को पवित्र आत्मा की सामर्थ्य से जीवन के फाएदे प्राप्त करने को कहा गया है (गला. 5:16-21) l जब परमेश्वर की सच्चाई के बीज हमारे हृदयों में बढ़ते हैं, पवित्र आत्मा “प्रेम, आनंद, शांति, धीरज, कृपा भलाई, विश्वास, नम्रता, और आत्म-संयम” (पद.22-23) को अधिकाई से प्रगट करने में सहायता करता है l
एक बार जब हम अपने जीवन यीशु को समर्पित कर देते हैं, हमारी आत्म-केन्द्रित इच्छाएँ हम पर नियंत्रण नहीं रख सकतीं हैं (पद.24) l समय के साथ, पवित्र आत्मा हमारी सोच को, हमारे आचरण को, और हमारी आदतों को बदल देता है l जब हम मसीह में बढ़ते और प्रोढ़ होते जाते हैं, हम अपने पड़ोसियों के साथ उसके उदार फसल की आशीषों को बांटकर आनंदित होते हैं l
हमारा दोष मिट गया
मैंने अपनी युवावस्था में, एक सहेली से निकट के उपहार के दूकान में मेरे साथ चलने को कहा l हालाँकि, उसने मुझे चकित कर दिया l उसने बालों में लगानेवाले कुछ रंगीन क्लिप्स मेरे पॉकेट में डालकर दूकानदार को पैसे दिए बगैर मुझे खींचती हुई बाहर ले आयी l मैं एक सप्ताह तक खुद को दोषी मानती रही इससे पहले कि मैं रोती हुई अपनी माँ के पास जाकर अपनी गलती न मान ली l
अपनी सहेली को चोरी करने से न रोक पाने पर मैं दुखित थी l मैं चोरी की वस्तुओं को लौटाकर दूकानदार से क्षमा मांगी और फिर कभी चोरी नहीं करने का प्रण किया l दूकानदार ने मुझसे अपने दूकान में आने से मना कर दिया l किन्तु इसलिए कि मेरी माँ ने मुझे क्षमा करके भरोसा दिलाया था कि मैंने सही करने का पूरा प्रयास किया था, और उस रात मैं शांति से सो पायी थी l
राजा दाऊद ने पश्चाताप करके क्षमा प्राप्त किया (भजन 32:1-2) l दाऊद ने बतशेबा और ऊरिय्याह के विरुद्ध अपने पाप को छिपाया(2 शमु. 11-12) जब तक कि उसकी “तरावट धूप काल की से झुर्राहट” न बन गयी (भजन 32:3-4) l किन्तु जब दाऊद ने अपने पाप को “प्रगट किया”, तो प्रभु ने उसके पाप क्षमा कर दिए (पद.5) l परमेश्वर ने “संकट से” उसकी रक्षा करके उसे “छुटकारे के गीतों से घेर” लिया (पद.7) l दाऊद आनंदित हुआ क्योंकि “जो यहोवा पर भरोसा रखता है वह करुणा से गिरा रहेगा” (पद.10) l
पश्चाताप करते समय और क्षमा मांगते समय हम अपने पापों के परिणाम का चुनाव नहीं कर सकते अथवा लोगों के प्रतिउत्तर पर नियंत्रण नहीं रख सकते हैं l किन्तु प्रभु हमें हमारे दोष को मिटाकर पाप की गुलामी से स्वतंत्रता और पश्चाताप द्वारा शांति का आनंद लेने में हमेशा सामर्थी बना सकता है l
परमेश्वर के प्रेम का प्रदर्शन
आवासीय कैंसर देखभाल केंद्र में माँ के इलाज के दौरान मुझे उनकी देखभाल करने का सौभाग्य मिला l अपने कठिन दिनों में भी, बिस्तर से उठने से पूर्व वह वचन पढ़कर दूसरों के लिए प्रार्थना करती थीं l
उन्होंने प्रतिदिन अपने विश्वास को परमेश्वर, अपने भले कार्य, और दूसरों को उत्साहित करने और उनके लिए प्रार्थना करने की इच्छा पर आधारित करके यीशु के साथ समय बिताया l बिना कभी ध्यान दिए कि उनका मुखमंडल परमेश्वर के स्नेही मनोहरता से दीप्त था, उन्होंने उस दिन तक जब परमेश्वर ने उनको उनके घर स्वर्ग न बुला लिया अपने चारों ओर के लोगों के साथ परमेश्वर का प्रेम बांटती रही l
मूसा परमेश्वर के साथ चालीस दिन और चालीस रात बातचीत करने के बाद (निर्ग.34:28), सीनै पर्वत से नीचे आया l वह नहीं जानता था कि परमेश्वर के साथ उसकी अन्तरंग सहभागिता ने वास्तव में उसके चेहरे को बदल दिया था (पद.29) l किन्तु इस्राएली बता सकते थे कि मूसा ने परमेश्वर से बातें की थी (पद.30-32) l वह निरंतर परमेश्वर से मुलाकात करता रहा और अपने चारों ओर के लोगों के जीवनों को प्रभावित करता रहा (33-35) l
हम शायद महसूस न कर पाएं कि कैसे परमेश्वर के साथ हमारे अनुभव समय के साथ हमें बदल देते हैं, और हमारा रूपांतरण वास्तव में मूसा के चमकते भौतिक चेहरे के समान नहीं होगा l किन्तु जैसे हम परमेश्वर के साथ समय बिताते और अपने जीवनों को और भी दिन प्रति दिन उसको समर्पित करेंगे, हम उसके प्रेम को परावर्तित कर सकेंगे l परमेश्वर दूसरों को अपनी ओर आकर्षित करेगा जब उसकी उपस्थिति का प्रमाण हममें होकर और हमारे द्वारा दिखाई देगा l
विभाजन का विनाश
एक लेखन अंतिम-तिथि मेरे सामने थी, जबकि सुबह हम पति-पत्नी में हुई बहस मेरे मन में थी l मेरी आँखें कर्सर पर, उंगलियाँ की-बोर्ड पर थीं l प्रभु, वह भी गलत था l
कंप्यूटर का स्क्रीन बंद होने पर, मेरा प्रतिबिम्ब भौं चढ़ाता दिखा l मेरी अस्वीकृत गलतियां मेरे कार्य में अधिक नुकसानदायक थीं l हम दोनों और परमेश्वर के साथ रिश्ते में कठिनाई हो रही थी l
मैंने अहंकार छोड़कर, क्षमा मांग ली l मेल की शांति का स्वाद लेते हुए मेरे पति ने भी क्षमा मांग ली l मेरा लेखन समय पर पूरा हुआ l
इस्राएलियों ने व्यक्तिगत पाप का दर्द और पुनर्स्थापन का आनंद अनुभव किया l यहोशू ने परमेश्वर के लोगों से यरीहो की लड़ाई से समृद्ध बनाने को मना किया(यहोशू 6:18), किन्तु आकान ने अधिग्रहित वस्तुओं को चुराकर अपने तम्बू में छिपा दिया (7:1) l उसके पाप के खुलासे और कार्यवाही पश्चात (पद. 4-12) ही राष्ट्र ने परमेश्वर की शांति का आनंद उठाया l
आकान की तरह, हम सर्वदा विचार नहीं करते कि “अपने तम्बू में पाप छिपाना” हमारे हृदयों को परमेश्वर से दूर करके हमारे आस-पास को प्रभावित करता है l यीशु को प्रभु मानकर, पाप स्वीकार करके, क्षमा ढूँढना परमेश्वर और दूसरों के साथ स्वस्थ्य और विश्वासयोग्य सम्बन्ध स्थापन की बुनियाद है l हम प्रतिदिन प्रेमी सृष्टिकर्ता और पालनहार के प्रति समर्पण द्वारा मिलकर उसकी सेवा और उपस्थिति का आनंद ले सकते हैं l
परमेश्वर के वचन में भीगना
जब हमारा बेटा ज़ेवियर छोटा बच्चा था हम पारिवारिक सैर पर मोंटेरेरी बे मछलीघर घूमने गए l मछली घर में घुसकर, मैंने छत से लटकता हुए एक बड़ी प्रतिमा की ओर इशारा किया l “देखो एक कुबड़ी व्हेल मछली l”
ज़ेवियर की आँखें बड़ी हो गयीं l “विशाल,” उसने कहा l
मेरे पति मुड़कर बोले l “वह यह शब्द कैसे जानता है?”
“उसने हमें बोलते सुना होगा l” मैंने अपना कन्धा समेटा, और चकित हुई कि हमारा बेटा शब्दावली सीख लिया है जो हमने उसे स्वेच्छा से नहीं सिखाया था l
व्यवस्थाविवरण 6 में, परमेश्वर ने अपने लोगों से जानबूझ कर अपने युवा पीढ़ियों को वचन और आज्ञाकारिता सिखाने को कहा l इस्राएलियों द्वारा परमेश्वर के विषय अपना ज्ञान बढ़ाकर, वे और उनके बच्चे परमेश्वर का अधिक आदर करना सीखेंगे और उसको निकटता से जानने, उससे पूर्ण प्रेम करने, और उसके प्रति आज्ञाकारिता के प्रतिफल का आनंद लेंगे (पद.2-5) l
जानबूझ कर उसके वचन से अपना हृदय और मस्तिष्क भरने से (जपद.6), हम बेहतर तैयारी से अपने दैनिक गतिविधियों में परमेश्वर के प्रेम और सच्चाई को अपने बच्चों के साथ बाँट पाएंगे (पद.7) l उदहारण से अगुवाई करके, हम अपने युवाओं को परमेश्वर का अधिकार पहचाना, उसका आदर करना और उसकी अपरिवर्तनीय सच्चाई के लिए सज्जित और उत्साहित कर पाएंगे (पद.8-9) l
जब स्वाभाविकता से परमेश्वर का वचन हमारे हृदय और मुँह से निकलेगा, हम पीढ़ियों तक विश्वास की मजबूत विरासत छोड़ेंगे (4:9) l
थोड़ा सुख बांटना
एक सहेली ने घर में बने मिट्टी के बर्तन भेजे l आते समय बहुमूल्य चीजें टूट गईं l एक कप के कुछ बड़े टुकड़े, और टुकड़े और मिट्टी की ढेर l
मेरे पति ने टुकड़ों को जोड़ दिया l मैंने इस जुड़े हुए खूबसूरत कप को सजा दिया l इस छिद्रित-जोड़े हुए मिट्टी के बर्तन समान, मेरे दाग़ भी प्रमाण हैं कि परमेश्वर मुझे कठिन समय से निकाला है, फिर भी मैं मजबूती से खड़ी हो सकती हूँ l सुख का वह प्याला याद दिलाता है कि मेरे जीवन में और मेरे जीवन के द्वारा परमेश्वर का काम दूसरों को उनके दुःख में सहायता पहुँचाती है l
प्रेरित पौलुस परमेश्वर की प्रशंसा करता हैं क्योंकि वह “दया का पिता और सब प्रकार की शांति का परमेश्वर है” (2 कुरिं. 1:3) l प्रभु हमारे आजमाइशों और दुखों का उपयोग हमें अपने समान बनाने के लिए करता है l हमारे दुखों में उसकी सांत्वना से हम दूसरों को बताते हैं कि उसने हमारी ज़रूरतें कैसे पूरी की हैं (पद.4) l
मसीह के दुखों पर विचार करके, हम अपने दुखों में दृढ़ रहकर, भरोसेमंद हैं कि परमेश्वर हमारे अनुभवों से हमें और दूसरों को धीरजवंत धैर हेतु सामर्थी बनाता है (पद.5-7) l पौलुस की तरह, हम सुख पाते हैं कि प्रभु हमारे संघर्षों को अपनी महिमा के लिए उपयोग करता है l हम उसकी सांत्वना के भागीदार होकर पीड़ितों के लिए आश्वासन भरी आशा ला सकते हैं l
कुछ भी व्यर्थ नहीं
सीमित गतिशीलता और पुराने दर्द की निराशा और अवसाद से तीन वर्षों से जूझते हुए, मैंने एक सहेली से अपनी बातें बतायी, “मेरा शरीर अत्यधिक कमज़ोर है l मानो मैं परमेश्वर अथवा किसी को भी कुछ मूल्यवान दे नहीं सकती l
उसके हाथ मेरे हाथों पर थे l “क्या मुस्कराहट के साथ मेरा तुमसे मिलना अथवा तुम्हारी सुनना कोई अंतर नहीं डालता? क्या तुम्हारे लिए मेरी प्रार्थना अथवा एक उदार शब्द व्यर्थ है?”
मैं आरामकुर्सी में बैठकर बोली, “बिल्कुल नहीं l”
वह भौं चढ़ाकर बोली, “तब तुम खुद से ये झूठ क्यों बोल रही हो? तुम वह सब काम मेरे लिए और दूसरों के लिए करती हो l”
मैंने परमेश्वर को ये सब बातें याद दिलाने के लिए धन्यवाद दिया कि उसके लिए किया गया कोई भी कार्य व्यर्थ नहीं है l
1 कुरिन्थियों 15 में पौलुस हमें आश्वश्त करता है कि अभी हमारा शरीर कमजोर हो सकता है किन्तु वह “सामर्थ्य के साथ जी उठेगा” (पद.43) l
क्योंकि परमेश्वर की प्रतिज्ञा है कि हम मसीह में जी उठेंगे, हम उसके राज्य में अंतर लाने के लिए उसपर भरोसा करें कि वह हमारा हरेक बलिदान, हरेक छोटा प्रयास उपयोग करेगा (पद.58) l
हमारे संघर्ष में हमारी शारीरिक दुर्बलता, मुस्कराहट, उत्साहवर्धक शब्द, प्रार्थना, अथवा विश्वास का एक सबुत मसीह की विविध और स्वतंत्र देह के लिए उपयोगी होगी l प्रभु की सेवा में, कोई भी कार्य, अथवा प्रेम का कृत्य अति छोटा नहीं है l