एक शौकिया फोटोग्राफर होने के नाते, मैं कैमरे में परमेश्वर की रचनात्मकता की तस्वीरें खींचने का आनंद लेती हूं। फूल की कोमल पंखुड़ियों में, सूर्योदय-सूर्यास्त में, और आकाश रूपी कैनवास पर रंगे बादलों में और झिलमिलाते तारों में मैं उनकी उँगलियों के निशान देखती हूँ।

कैमरे से मैंने चेरी के पेड़ पर चहचहाती गिलहरी, खिलते हुए फूल पर मंडराती तितली, और समुद्र के तट पर धूप सेंकते हुए कछुओं की तस्वीरें ली हैं। हर तस्वीर मुझे अपने अद्भुत निर्माता की आराधना करने के लिए प्रेरित करती है।

भजन संहिता 104 का लेखक परमेश्वर के प्रकृति में बसी कला के कामों का स्तुति गान करता है (पद 24)। वह “विशाल समुद्र, की सराहना करता है जिसमें अनगिनत जलचर हैं” (पद 25) और उनकी निरंतर परवाह करने के लिए वह परमेश्वर में अनन्दित होता है (27-31)। भजनकार अपने चारों तरफ परमेश्वर की सृष्टि की महिमा देखते हुए, उनकी आराधना में कहता है:”मैं जीवन भर यहोवा …।” (पद 33)।
परमेश्वर की भव्य और विशाल सृष्टि पर मनन करते हुए, हम उनके हाथों की रचनात्मकता और उनके विस्तार को ध्यान से देख सकते हैं। और भजनकार के समान, हम अपने सृष्टिकर्ता को धन्यवाद के साथ आराधना की भेंट दे सकते हैं क्योंकि वह कितने सामर्थशाली, प्रतापी, और प्रेममयी हैं और सर्वदा रहेंगे। हल्लिलूय्याह!