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Articles by करेन पिम्पो

प्रार्थना मायने रखती है

"आगामी मस्तिष्क स्कैन के लिए प्रार्थना।" "कि मेरे बच्चे चर्च वापस आ जाये।" "डेव के लिए सांत्वना, जिसने अपनी पत्नी को खो दिया।" हमारी कार्ड मंत्रालय टीम को इस तरह के प्रार्थना अनुरोधों की एक साप्ताहिक सूची प्राप्त होती है ताकि हम प्रार्थना कर सकें और प्रत्येक व्यक्ति को एक हस्तलिखित नोट भेज सकें। अनुरोध बहुत अधिक होते हैं, और हमारे प्रयास छोटे और ध्यान न दिए जाने वाले लगते हैं। यह तब बदल गया जब मुझे हाल ही में शोक संतप्त पति डेव से उसकी प्रिय पत्नी की मृत्युलेख की एक कॉपी के साथ हार्दिक धन्यवाद कार्ड मिला। मुझे एक ताज़ा एहसास हुआ कि प्रार्थना मायने रखती है।

यीशु ने स्वंम नमूना दिया कि हमें दृढ़ता से, अक्सर और आशापूर्ण विश्वास के साथ प्रार्थना करनी चाहिए। पृथ्वी पर उनका समय सीमित था, लेकिन अकेले जाकर प्रार्थना करने को उन्होंने प्राथमिकता दी (मरकुस 1:35; 6:46; 14:32)।

सैकड़ों वर्ष पहले, इस्राएल के राजा हिजकिय्याह ने भी यह सबक सीखा था। उसे बताया गया था कि एक बीमारी जल्द ही उसकी जान ले लेगी (2 राजा 20:1)। संकट में और फूट-फूट कर रोते हुए, हिजकिय्याह ने "दीवार की ओर मुंह करके यहोवा से प्रार्थना की" (पद 2)। इस उदाहरण में, परमेश्वर की प्रतिक्रिया तत्काल थी। उसने हिजकिय्याह की बीमारी को ठीक किया, उसके जीवन में पंद्रह वर्ष जोड़े, और राज्य को एक शत्रु से बचाने का वादा किया (पद 5-6)। परमेश्वर ने उसकी प्रार्थना का उत्तर इसलिए नहीं दिया क्योंकि हिजकिय्याह एक अच्छा जीवन जी रहा था, बल्कि "[अपने] सम्मान के लिए और [अपने] सेवक दाऊद के लिए" (पद 6 एनएलटी)। हो सकता है कि हमें हमेशा वह न मिले जो हम मांगते हैं, लेकिन हम निश्चिंत हो सकते हैं कि परमेश्वर हर प्रार्थना में और उसके माध्यम से काम कर रहा है।

 

मसीह में समुदाय

जॉर्डन ने कहा, "मैं जानता था कि सफल होने का एकमात्र तरीका घर और अपनी पत्नी, बेटे और बेटी के बारे में भूल जाना है।" “मैंने पाया है कि मैं ऐसा नहीं कर सकता। वे मेरे दिल और आत्मा के ताने-बाने में बुने हुए हैं।" एक दूरदराज के इलाके में अकेले, जॉर्डन एक रियलिटी शो में भाग ले रहा था जहां प्रतियोगियों को यथासंभव लंबे समय तक न्यूनतम आपूर्ति के साथ बाहर रहने के लिए कहा जाता है। जिस चीज़ ने उसे हार मानने के लिए मजबूर किया, वह भयानक भालू, जमा देने वाला तापमान, चोट या भूख नहीं थी, बल्कि अत्यधिक अकेलापन और अपने परिवार के साथ रहने की इच्छा थी।

हमारे पास जंगल में रहने के लिए आवश्यक सभी जीवित रहने के कौशल हो सकते हैं, लेकिन खुद को समुदाय से अलग करना असफल होने का एक निश्चित तरीका है। सभोपदेशक के बुद्धिमान लेखक ने कहा, “एक से दो बेहतर हैं, क्योंकि . . . एक दूसरे की मदद कर सकता है” (4:9-10)। मसीह का सम्मान करने वाला समुदाय, अपनी सारी कमजोरियों बावजूद, हमारी समृद्धि के लिए आवश्यक है। यदि हम इस संसार की परीक्षाओं से स्वयं ही निपटने का प्रयास करें तो हमारे पास कोई मौका नहीं है। जो अकेले परिश्रम करता है, उसका परिश्रम व्यर्थ हो जाता है (पद 8)। समुदाय के बिना, हम खतरे के प्रति अधिक संवेदनशील हैं (पद 11-12)। एक धागे के विपरीत, "तीन धागों की डोरी जल्दी नहीं टूटती" (पद 12)। एक प्रेमपूर्ण, मसीह-केंद्रित समुदाय का उपहार वह है जो न केवल प्रोत्साहन प्रदान करता है, बल्कि चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों के बावजूद हमें आगे बढ़ने की ताकत भी देता है। हम एक दूसरे की जरूरत हैं।

 

प्रभु यीशु मसीह को धारण कर लो

मैं पहली बार अपना नया चश्मा पहनने के लिए बहुत उत्साहित था, लेकिन कुछ ही घंटों के बाद मैं उसे फेंक देना चाहता था। नए नुस्खे के साथ तालमेल बिठाने से मेरी आँखों में दर्द होने लगा और सिर में दर्द होने लगा। अपरिचित फ़्रेमों से मेरे कान दुखने लगे थे। अगले दिन जब मुझे याद आया कि मुझे उन्हें पहनना है तो मैं कराह उठी। मुझे अपने शरीर को अनुकूल बनाने के लिए हर दिन बार-बार अपने चश्मे का उपयोग करना पड़ता था। इसमें कई सप्ताह लग गए, लेकिन उसके बाद, मुझे ध्यान ही नहीं आया कि मैंने उन्हें पहन रखा है। 

कुछ नया पहनने के लिए समायोजन की आवश्यकता होती है, लेकिन समय के साथ हम इसमें विकसित होते हैं, और यह हमारे लिए बेहतर होता है। हम वे चीज़ें भी देख सकते हैं जो हमने पहले नहीं देखी थीं। रोमियों 13 में, प्रेरित पौलुस ने मसीह के अनुयायियों को "ज्योति के कवच पहनने" (पद 12) और सही जीवन जीने का अभ्यास करने का निर्देश दिया। वे पहले से ही यीशु पर विश्वास कर चुके थे, लेकिन ऐसा लगता था कि वे "सो” गए थे और अधिक आत्मसंतुष्ट हो गए थे; उन्हें "जागने" और कार्रवाई करने, शालीनता से व्यवहार करने और सभी पापों को त्यागने की आवश्यकता थी (पद 11-12)। पौलुस ने उन्हें यीशु को धारण अर्थात् अपने विचारों और कार्यों में उनके जैसा बनने के लिए प्रोत्साहित किया (पद 14)।

हम रातोंरात यीशु के प्रेमपूर्ण, सौम्य, दयालु और वफादार तरीकों को प्रतिबिंबित करना शुरू नहीं करते हैं। हर दिन "प्रकाश का कवच पहनना" चुनना एक लंबी प्रक्रिया है, तब भी जब हम ऐसा नहीं चाहते क्योंकि यह असुविधाजनक है। समय के साथ, वह हमें बेहतरी के लिए बदलता है।

 

प्रेम द्वारा प्रेरित

जिम और लेनिडा कॉलेज के दिनों से एक दूसरे से प्रेम करते थे l उनका विवाह हो चुका था और कई वर्षों तक जीवन सुखमय रहा l फिर लेनिडा ने अजीब व्यवहार करना आरम्भ कर दी, खोयी हुए लगने लगी और नियत कार्य भूलने लगी l सैंतालिस वर्ष की उम्र में ही पता चला कि उसे अल्जाइमर/Alzheimer disease(मानसिक बिमारी) हो गया है l एक दशक तक उसकी प्राथमिक देखभाल के बाद, जिम यह कह सका, “अल्जाइमर ने मुझे अपनी पत्नी को उन तरीकों से प्यार करने और सेवा करने का अवसर दिया है जो अकल्पनीय थे जब मैंने कहा, “मैं करता हूँ l’ ”

पवित्र आत्मा के वरदानों की व्याख्या करते हुए, प्रेरित पौलुस ने प्रेम के गुण पर विस्तार से लिखा (1 कुरिन्थियों 13) l उसने सेवा के रटे-रटाए कार्यों की तुलना प्रेमपूर्ण हृदय से उमड़ने वाले कार्यों से की l प्रभावशाली बोलना अच्छा है, पौलुस ने लिखा, लेकिन प्रेम के यह अर्थहीन शोर की तरह है (पद.1) l “यदि मैं . . . अपनी देह जलाने के लिए दे दूँ, और प्रेम न रखूँ, तो मुझे कुछ भी लाभ नहीं” (पद.3) l पौलुस ने अंततः लिखा, “सबसे बड़ा(उपहार) प्रेम है”(पद.13) l 

अपनी पत्नी की देखभाल करने के कारण जिम की प्रेम और सेवा के विषय समझ गहरी हो गयी l केवल गहरा और स्थायी प्यार ही उसे प्रतिदिन उसका समर्थन करने की शक्ति दे सकता था l अंततः, एकमात्र स्थान जहाँ हम इस बलिदानी प्रेम को पूरी तरह से प्रतिरूपित देखते हैं, वह हमारे लिए परमेश्वर का प्रेम है, जिसके कारण उसने यीशु को हमारे पापों के लिए मरने के लिए भेजा (यूहन्ना 3:16) l प्रेम से प्रेरित, बलिदान के उस कार्य ने हमारे संसार को हमेशा के लिए बदल दिया है l 

यीशु हमारे राजा

दुनिया के सबसे धूप वाले और सबसे शुष्क देशों में से एक में,  तेल के लिए ड्रिलिंग करते समय, पानी की एक विशाल भूमिगत प्रणाली का पता चलने पर टीमें हैरान रह गईं। इसलिए, 1983 में "मनुष्य द्वारा बनाई गई महान नदी" परियोजना शुरू की गई, जिसमें बहुत अच्छे प्रकार के (उच्च गुणवत्ता वाले) ताजे पानी को उन शहरों तक ले जाने के लिए पाइपों की एक प्रणाली स्थापित की गई, जहां इसकी अत्यधिक आवश्यकता थी। परियोजना की शुरुआत के पास एक पट्टिका में लिखा है, "यहां से जीवन की मुख्य नालिका(धमनी) बहती है।"

भविष्यवक्ता यशायाह ने भविष्य के धर्मी राजा का वर्णन करने के लिए रेगिस्तान (निर्जल देश) में पानी की छवि का उपयोग किया (यशायाह 32)। जैसे राजा और शासक न्याय और धार्मिकता के साथ शासन करते थे, वे "रेगिस्तान में जल की धाराएँ और प्यासे देश में बड़ी चट्टान की छाया" के समान होतेहैं (पद2)। कुछ शासक देने के बजाय लेना पसंद करते हैं। हालाँकि, ईश्वर-सम्मानित अगुआकी पहचान वह व्यक्ति है जो आश्रय, शरण, ताज़गी और सुरक्षा लाता है। यशायाह ने कहा कि “धर्म का फल शांति, और उसका परिणाम सदा का चैन और निश्चिन्त रहना होगा।" (पद 17)।

यशायाह के आशा के शब्दों को बाद में यीशु में अर्थ की परिपूर्णता मिलेगी, जो“प्रभु आप ही स्वर्ग से उतरेगा. . . और इसऔर इस रीति से हम सदा प्रभु के साथ रहेंगे।" (1 थिस्सलुनीकियों 4:16-17)। "मनुष्य द्वारा बनाई गई महान नदी" बिलकुल वैसी ही है - मनुष्यों के हाथों  द्वारा बनाई गई। किसी दिन वह जल भण्डार ख़त्म हो जायेगा। परन्तु हमारा धर्मी राजा ताज़गी और जीवन का जल लाता है जो कभी नहीं सूखेगा।

वह धार्मिक शहर

नए साल 2000 के पूर्वसंध्या पर, डेट्रॉइट में अधिकारियों ने सावधानीपूर्वक एक सौ साल पुराना टाइम कैप्सूल(Time Capsule-ऐतिहासिक रिकॉर्ड सुरक्षित रखनेवाला एक पात्र जो भविष्य में कभी खोला जा सकेगा) खोला। तांबे के बक्से के अंदर शहर के कुछ नेताओं की आशापूर्ण भविष्यवाणियां थीं, जिन्होंने समृद्धि के सपने व्यक्त किए थे। हालाँकि, मेयर के संदेश ने एक अलग दृष्टिकोण पेश किया। उन्होंने लिखा, “हमें अन्य सभी से बेहतर एक आशा व्यक्त करने की अनुमति दी जाए . . .  [कि] आप एक राष्ट्र, लोगों और शहर के रूप में एहसास कर सकें कि आप धार्मिकता में विकसित हुए हैं, क्योंकि यही एक राष्ट्र को ऊंचा उठाता है।”

 

सफलता, खुशी या शांति से अधिक, मेयर की इच्छा थी कि भावी नागरिक वास्तव में न्यायपूर्ण और ईमानदार होने के अर्थ में विकसित हों। शायद उसने अपना संकेत यीशु से लिया, जिन्होंने उन लोगों को आशीषित किया जो उसकी धार्मिकता के प्यासे हैं (मत्ती 5:6)। लेकिन जब हम परमेश्वर के आदर्श मानक पर विचार करते हैं तो निराश होना आसान होता है।

परमेश्वर की प्रशंसा हो कि हमें बढ़ने के लिए स्वयं के प्रयास पर निर्भर होना नहीं पड़ता। इब्रानियों के लेखक ने इसे इस प्रकार कहा : “अब शान्तिदाता परमेश्‍वर . . . हर एक भली बात में सिद्ध करे, जिससे तुम उसकी इच्छा पूरी करो, और जो कुछ उसको भाता है, उसे यीशु मसीह के द्वारा हम में पूरा करे” (इब्रानियों 13:20-21)। हम जो मसीह में हैं, उसी क्षण उसके लहू से पवित्र हो जाते हैं जिस क्षण हम उस पर विश्वास करते हैं (पद.12), लेकिन वह जीवन भर हमारे दिलों में धार्मिकता का फल सक्रिय रूप से उगाता है। हम यात्रा में अक्सर लड़खड़ाते है फिर भी हम “आनेवाले नगर” की प्रतीक्षा कर रहे हैं जहाँ परमेश्वर की धार्मिकता राज करेगी (पद.14)।

अंत में यीशु की जीत

द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान पूरे यूरोप में कुछ सैन्य शिविरों में, सैनिकों को घर की याद आ रही थी तो उनके लिए एक असामान्य प्रकार की सामग्री हवा से गिराई गई थी - सीधे पियानो। उन्हें विशेष रूप से  बनाया गया था जिसमे सामान्य पियानो का केवल दस प्रतिशत धातु उपयोग किया गया, और उन्हें विशेष जल-प्रतिरोधी गोंद और कीट-विरोधी उपचार प्राप्त हुए थे। पियानो मजबूत और सरल थे, लेकिन उन सैनिकों के लिए घंटों उत्साहवर्धक मनोरंजन प्रदान करते थे जो घर के परिचित गीतों को गाने के लिए इकट्ठा होते थे।

गाना—विशेषकर स्तुति के गीत—एक तरीका है जिससे यीशु में विश्वास करने वाले लोग युद्ध में भी शांति पा सकते हैं। जब राजा यहोशापात ने विशाल आक्रमणकारी सेनाओं का सामना किया तब उसे यह बात सच लगी (2 इतिहास 20)। भयभीत होकर राजा ने सभी लोगों को प्रार्थना और उपवास के लिए बुलाया(पद 3–4)। जवाब में, परमेश्वर ने उससे कहा कि वह सैनिकों को दुश्मन का सामना करने को ले जाए, यह वादा करते की "इस लड़ाई में तुम्हें लड़ना न होगा" (पद 17)। यहोशापात ने परमेश्वर पर विश्वास किया और विश्वास से कार्य किया। उन्होंने गायकों को सैनिकों के आगे जाने और उस आने वाली जीत के लिए परमेश्वर की स्तुति गाने के लिए नियुक्त किया, जिसके बारे में उन्हें विश्वास था कि वे देखेंगे (पद 21)। और जैसे ही उनका संगीत शुरू हुआ, उसने चमत्कारिक ढंग से उनके दुश्मनों को हरा दिया और अपने लोगों को बचाया(पद 22)।

जीत हमेशा हमारी इच्छा और समय के अनुसार नहीं मिलता है। लेकिन हम हमेशा पाप और मृत्यु पर यीशु की अंत में विजय प्राप्ति की घोषणा कर सकते हैं जो हमारे लिए पहले ही जीत ली गई है । हम युद्ध क्षेत्र के बीच में भी आराधना की भावना से आराम करना चुन सकते हैं।

अपने बगीचे की देखभाल करें

मैं अपने  मकान के पीछे के आंगन में फल और सब्जियों का बगीचा लगाने के लिए बहुत उत्साहित था। फिर मुझे मिट्टी में छोटे छोटे छेद नज़र आने लगे। इससे पहले कि उसे पकने का समय मिलता, हमारा पहला फल रहस्यमय तरीके से गायब हो गया। एक दिन मैं यह देखकर निराश हो गया कि हमारा सबसे बड़ा स्ट्रॉबेरी का पौधा एक घोंसला बनाने वाले खरगोश द्वारा पूरी तरह से उखाड़ दिया गया था और सूरज की रोशनी में झुलस गया था। काश मैंने चेतावनी के संकेतों पर करीब से ध्यान दिया होता!

श्रेष्ठगीत की खूबसूरत प्रेम कविता में एक युवक और युवती के बीच बातचीत को दर्ज किया गया है। अपने प्रिय को बुलाते समय, युवक ने उन जानवरों के प्रति कड़ी चेतावनी दी जो प्रेमियों के बगीचे को उजाड़ देंगे, जो उनके रिश्ते का एक रूपक है। उसने कहा, “जो छोटी लोमड़ियां दाख की बारियों को बिगाड़ती हैं, उन्हें पकड़ ले।” (श्रेष्ठगीत 2:15)। शायद उसने लोमडि़यों के संकेत देखे जो उनके प्रेम लीला को बर्बाद कर सकते थे, जैसे ईर्ष्या, क्रोध, छल या उदासीनता। क्योंकि वह अपनी दुल्हन की सुंदरता से प्रसन्न था (पद 14) वह किसी भी अस्वास्थ्यकर (बेकार) वस्तु की उपस्थिति को बर्दाश्त नहीं कर सकता था। वह उसके लिए कांटों के बीच एक सोसन (lily) के फूल के समान कीमती थी (पद 2)। वह उनके रिश्ते की रक्षा के लिए कार्यरत था।

हमारे लिए परमेश्वर के सबसे अनमोल उपहारों में से कुछ परिवार और दोस्त हैं, हालाँकि उन रिश्तों को बनाए रखना हमेशा आसान नहीं होता है। धैर्य, देखभाल और छोटी लोमड़ियों से सुरक्षा के साथ, हमें भरोसा है कि परमेश्वर सुंदर फल उगाएंगे।

देशों को एकजुट करना

संसार की सबसे लम्बी अंतर्राष्ट्रीय सीमा संयुक्त राज्य अमेरिका और कनाडा द्वारा साझा की जाती है, जिसमें अविश्वसनीय रूप से 5,525 मील भूमि और पानी शामिल है। सरहद को अचूक बनाने के लिए कार्यकर्ता नियमित रूप से सीमा के दोनों ओर दस फीट में पेड़ों को काट देते हैं। साफ की गई भूमि की इस लम्बी पट्टी को, जिसे “स्लैश” कहा जाता है, आठ हजार से अधिक पत्थरों की निशानियों द्वारा बिंदीदार बनाया गया है, जिससे कि आगंतुकों को हमेशा यह मालूम हो कि विभाजन रेखा कहाँ पड़ती है।

“स्लैश” के भौतिक वनों की कटाई सरकार और संस्कृतियों के अलगाव का प्रतिनिधित्व करती है। यीशु पर विश्वास करने वाले लोगों के रूप में, हम उस समय की प्रतीक्षा कर रहे हैं जब परमेश्वर इसे उलट देगा और समूचे संसार के सब देशों को अपने शासन के अधीन एकजुट कर लेगा। यशायाह भविष्यद्वक्ता ने एक ऐसे भविष्य के बारे में बात की थी जहाँ परमेश्वर का मंदिर दृढ़ता से स्थापित और ऊँचा किया जाएगा (यशायाह 2:2)। सब देशों के लोग परमेश्वर की विधियों को सीखने और “उसके मार्गों पर चलने” के लिए इकट्ठे होंगे (पद 3)। फिर हम उन मानवीय प्रयासों पर निर्भर नहीं रहेंगे जो शांति बनाए रखने में विफल रहे हैं। हमारे सच्चे राजा के रूप में, परमेश्वर जाति-जाति के बीच न्याय करेगा और सारे विवादों को सुलझाएगा (पद 4)।

क्या आप एक ऐसे संसार की कल्पना कर सकते हैं जिसमें विभाजन और संघर्ष नहीं पाया जाता? परमेश्वर ने ऐसे ही संसार को लाने की प्रतिज्ञा की है! हमारे चारों ओर फैली फूट के बावजूद, हम “प्रभु के प्रकाश में चल” सकते हैं (पद 5) और अब उसे अपनी वफादारी देने का चुनाव कर सकते हैं। हम यह जानते हैं कि परमेश्वर सब वस्तुओं पर शासन करता है, और किसी दिन वह अपने लोगों को एक झण्डे के नीचे एकजुट करेगा।