“आगामी मस्तिष्क स्कैन के लिए प्रार्थना।” “कि मेरे बच्चे चर्च वापस आ जाये।” “डेव के लिए सांत्वना, जिसने अपनी पत्नी को खो दिया।” हमारी कार्ड मंत्रालय टीम को इस तरह के प्रार्थना अनुरोधों की एक साप्ताहिक सूची प्राप्त होती है ताकि हम प्रार्थना कर सकें और प्रत्येक व्यक्ति को एक हस्तलिखित नोट भेज सकें। अनुरोध बहुत अधिक होते हैं, और हमारे प्रयास छोटे और ध्यान न दिए जाने वाले लगते हैं। यह तब बदल गया जब मुझे हाल ही में शोक संतप्त पति डेव से उसकी प्रिय पत्नी की मृत्युलेख की एक कॉपी के साथ हार्दिक धन्यवाद कार्ड मिला। मुझे एक ताज़ा एहसास हुआ कि प्रार्थना मायने रखती है।

यीशु ने स्वंम नमूना दिया कि हमें दृढ़ता से, अक्सर और आशापूर्ण विश्वास के साथ प्रार्थना करनी चाहिए। पृथ्वी पर उनका समय सीमित था, लेकिन अकेले जाकर प्रार्थना करने को उन्होंने प्राथमिकता दी (मरकुस 1:35; 6:46; 14:32)।

सैकड़ों वर्ष पहले, इस्राएल के राजा हिजकिय्याह ने भी यह सबक सीखा था। उसे बताया गया था कि एक बीमारी जल्द ही उसकी जान ले लेगी (2 राजा 20:1)। संकट में और फूट-फूट कर रोते हुए, हिजकिय्याह ने “दीवार की ओर मुंह करके यहोवा से प्रार्थना की” (पद 2)। इस उदाहरण में, परमेश्वर की प्रतिक्रिया तत्काल थी। उसने हिजकिय्याह की बीमारी को ठीक किया, उसके जीवन में पंद्रह वर्ष जोड़े, और राज्य को एक शत्रु से बचाने का वादा किया (पद 5-6)। परमेश्वर ने उसकी प्रार्थना का उत्तर इसलिए नहीं दिया क्योंकि हिजकिय्याह एक अच्छा जीवन जी रहा था, बल्कि “[अपने] सम्मान के लिए और [अपने] सेवक दाऊद के लिए” (पद 6 एनएलटी)। हो सकता है कि हमें हमेशा वह न मिले जो हम मांगते हैं, लेकिन हम निश्चिंत हो सकते हैं कि परमेश्वर हर प्रार्थना में और उसके माध्यम से काम कर रहा है।