कुछ वर्ष पूर्व, मेरी पत्नी, कैरोलिन और मैं वाशिंगन राज्य में रेनर पहाड़ के बगल में कुछ दिन तम्बू लगाकर रहे । एक शाम अपने शिविर-स्थल पर लौटते समय हमने एक चारागाह में दो नर भालुओं को लड़ते देखकर देखने के लिए ठहर गए ।
निकट ही एक पैदल यात्री था, जिससे मैंने उस लड़ाई का कारण पूछा । “एक युवा मादा भालू” उसने कहा ।
मैंने पूछा, “वह कहाँ है?”
“ओह, वह 20 मिनट पहले चली गयी,” वह मुँह दबाकर हँसा । लिहाजा, मैं समझ गया कि यह लड़ाई मादा भालू के विषय नहीं किन्तु सबसे बलवाल भालू होने के विषय था ।
अधिकतर लड़ाईयाँ हिकमत और सिद्धान्त, अथवा सही या गलत, के विषय नहीं होती है; यह लगभग हमेशा अहंकार के विषय होती है । नीतिवचन का बुद्धिमान लेखक समस्या की जड़ पर प्रहार करते हुए लिखता है, “झगड़े-रगड़े केवल अहंकार ही से होते हैं”(13:10) । झगड़े में अहंकार ईंधन है, सही होने के लिए, मन मरजी पूर्ती हेतु, अथवा अपना अधिकार-क्षेत्र अथवा अहम बचाने हेतु ।
दूसरी तरफ, भलिभाँति सलाह माननेवालों में बुद्धि बसती है-जो सुनते, सीखते और सीखने का मन रखते हैं । दीन लोगों में बुद्धि होती है-अपनी स्वार्थी इच्छा दूर करनेवाले; अपनी समझ की सीमा समझनेवाले; दूसरों के परिप्रेक्ष्य सुननेवाले; जो सुधार हेतु अनुमति देते हैं । यह परमेश्वर की ओर से बुद्धि ही है जो हर स्थान पर शान्ति फैलाती है ।