मेरे कालेज लेखन कक्षा के विद्यार्थी का ई-मेल आग्रह जता रहा था । सेमेस्टर का अन्त था और स्पोट्र्स में भागीदारी हेतु उसे बेहतर अंक चाहिए थे । उसे क्या करना था? उसने कुछ एक गृहकार्य छोड़ दिये थे, इसलिए मैंने उसे कार्य पूर्ण करके अपने अंक बढ़ाने हेतु 2 दिन दिये । उसका प्रतिउत्तर: “धन्यवाद। मैं करूँगा ।”

दो दिन-और निर्धारित तिथि-गुज़र गया, और कार्य नहीं हुआ । उसने अपने शब्दों का समर्थन क्रिया से नहीं किया ।

यीशु ने एक युवा के विषय बताया जिसने समान कार्य किया । लड़के के पिता ने उसे दाखबारी में कुछ करने को कहा । लड़के ने कहा, “मैं करूँगा“(मत्ती 21:30)। किन्तु वह केवल बात थी ।

मैथ्यू हेनरी ने इस दृष्टान्त पर टिप्पणी की: “कलियाँ और फूल, फल नहीं हैं ।” हमारे शब्दों की कलियाँ और फूल, जो हमारे द्वारा किए जानेवाले कार्य की प्रत्याशा उत्पन्न करते हैं, कार्य बिना खाली हैं । यीशु का आश्य धार्मिक अगुओं से था जो आज्ञाकारिता की बात करके पश्चाताप् बगैर क्रिया करते थे । किन्तु ये शब्द हम पर भी लागू होते हैं । “काम और सत्य के द्वारा”(1 यूहन्ना 3:18) परमेश्वर के साथ चलना ही सार्थकता है-केवल खोखली प्रतिज्ञाओं में नहीं-कि हम हमारे प्रभु और उद्धारकर्ता का आदर करते हैं ।

हमारी क्रियाओं द्वारा परमेश्वर की आज्ञाकारिता उसे अधिक प्रेम, और प्रशंसा देते हैं न कि मान्य दिखाई देने हेतु हमारे खोखले शब्द ।