सहायता करनेवाले अनेक धर्मार्थ संगठन जो लोगों की जरुरतों में सहायता करते हैं लोगों से जिनके पास जरुरत से अधिक है, अनचाहे कपड़ों और घरेलु वस्तुओं के दान पर निर्भर होते हैं । अनुपयोगी वस्तुएँ दे देना भला है जिससे दूसरों को लाभ मिले । किन्तु हम दैनिक उपयोग की मूल्यवान वस्तुओं से अलग होने में अनिच्छुक होते हैं ।
रोम के जेलखाने में पौलुस को निरन्तर भरोसेमन्द मित्रों का उत्साह और संगति चाहिए थी । फिर भी उसने अपने दो निकट मित्रों को फिलिप्पी में यीशु के अनुयायियों की सहायता करने भेजा(फिलि. 2:19-30)। “मैं तीमुथियुस को तुम्हारे पास तुरन्त भेजूँगा, …. मेरे पास ऐसा स्वभाव का कोई नहीं जो शुद्ध मन से तुम्हारी चिन्ता करे”(पद.19-20)। और, “मैं ने इपफ्रुदीतुस को जो मेरा भाई और सहकर्मी और संगी योद्धा और तुम्हारा दूत, और आवश्यक बातों में मेरी सेवा टहल करनेवला है, तुम्हारे पास भेजना आवश्यक समझा” (पद.25) । जो पौलुस के लिए अति आवश्यक था उसने मुफ्त में दूसरों को दे दिया ।
आज हम जिसको अपने जीवन में “अति मूल्यवान” समझते हैं हमारे किसी जाननेवाले के लिए अति लाभ का होगा। यह हमारा समय, मित्रता, उत्साह, एक सुननेवाला कान, अथवा कोई सहायक हाथ हो सकता है। परमेश्वर द्वारा हमें दिया गया यदि हम दे देते हैं, वह आदर पाता है, दूसरों की सहायता होती है और हम आशीष पाते हैं ।