मेरी सहेली मिघन प्रवीण घुड़सवार है, जिससे मैं कुछ रूचिकर बातें सीख रही हूँ। जैसे, सभी स्तनधारियों में सबसे बड़ी आँखें होने के बावजूद, घोड़ों की दृष्टि कमजोर होती है, और मनुष्यों से कम रंग देखते हैं। इस कारण, भूमि पर की वस्तुएँ हमेशा पहचान नहीं पाते। एक डण्डा लांघना सरल है, अथवा वह हानि पहुँचाने वाला एक लम्बा साँप है, वे पहचान नहीं पाते हैं। इसलिए, प्रशीक्षित घोड़े होने तक वे डरते और तुरन्त दूर भागते हैं।

हम भी भयानक स्थितियों से भागना चाहते हैं। हम अय्यूब की तरह महसूस करते हैं जिसने अपनी समस्याओं को गलत समझा और चाहा कि वह जन्म ही नहीं लिया होता। इसलिए कि उसे ज्ञात नहीं था कि यह शैतान ही था जो उसे तोड़ना चाहता था, वह भयभीत हुआ कि परमेश्वर जिसमें वह भरोसा रखता था, उसे नष्ट करना चाहता था। अभिभूत होकर वह चिल्लाया, “परमेश्वर ने मुझे गिरा दिया है, और मुझे अपने जाल में फँसा लिया है“(अय्यूब 19:6)।

अय्यूब की तरह, हमारी दृष्टि भी सीमित है। हमें डरानेवाली परिस्थितियों से हम भी भागना चाहते हैं। परमेश्वर के नज़रों में, हम अकेले नहीं हैं। जो हमें भ्रमित करते एवं डराते हैं उन्हें वह समझता है। उसे ज्ञात है कि उसके हमारे निकट रहने से हम सुरक्षित हैं। यह हमारे लिए अपनी समझ की बजाए उसकी समझ पर भरोसा रखने हेतु सुअवसर है।