हमारे चर्च की सुसमाचार सेवा का समापन सम्पूर्ण शहर सेवा के साथ हुआ। जब टीम जिसने कार्यक्रम को आयोजित और संचालित किया था-जिसमें हमारा युवा संगीत समूह, परामर्शदाता, और कलीसिया नेतृत्व समाविष्ट थे-मंच पर गए, हम सबों ने ताली बजाकर उनके मेहनत के लिए उनकी प्रशंसा की।
एक व्यक्ति, हालाँकि, अप्रत्यक्ष था, यद्यपि वह समूह का अगुवा था। जब कुछ दिन बाद मैंने उसे देखा, मैं यह कहकर उसको घन्यवाद दिया और शुभकामनाएँ प्रेषित की, “कार्यक्रम में हमने शायद ही आपको देखा हो।”
उसने कहा, “मैं पृष्ठभूमि में कार्य करना पसन्द करता हूँ।“ वह अपने लिए सम्मान स्वीकारने के प्रति चिन्तित नहीं था। वह मेहनत करनेवालों द्वारा प्रशंसा प्राप्त करने का समय था।
उसका शान्त आचरण मेरे लिए सम्पूर्ण उपदेश था। यह मेरे लिए ताकीद थी कि प्रभु की सेवा करते समय, मुझे सम्मान नहीं खोजना चाहिए। प्रगट रूप से चाहे मैं दूसरों द्वारा सम्मानित किया जाऊँ अथवा नहीं मैं परमेश्वर को आदर दे सकता हूँ। मसीह के समान आचरण मेरे नगण्य ईष्याओं अथवा अस्वास्थ्यकर होड़ को कुचल सकता है।
यीशु, जो “सर्वोत्तम है“(यूहन्ना 3:31), “बढ़े और मैं घटूँ“(पद.30)। जब यह आचरण हमारा होता है, हम परमेश्वर के कार्य की उन्नति चाहेंगे। यह मसीह है, हम नहीं, जिसे हमारे सम्पूर्ण कार्य का केन्द्र होना चाहिए।