मरकुस की पुस्तक में हम एक प्रचण्ड आँधी के विषय पढ़ते हैं। शिष्य यीशु के साथ नाव से गलील सागर को पार कर रहे थे। जब एक “बड़ी आँधी आयी,“ शिष्य-जिनमें कुछ एक अनुभवी मछुवारे भी थे-अति भयभीत हुए(4:37-38)। क्या परमेश्वर चिन्तित नहीं था? क्या यीशु ने उनका चुनाव नहीं किया था और वे उसके अति निकट नहीं थे? क्या वे यीशु की आज्ञा नहीं मान रहे थे जिसने उन्हें “पार“ चलने को कहा था?(पद.35)। तब, क्यों, वे इस अशान्त समय से गुजर रहे थे?
कोई भी जीवन की आँधियों से मुक्त नहीं है। किन्तु जिस तरह शिष्य पहले तो आँधी से भयभीत थे, बाद में मसीह को और आदर दिये, उसी तरह आँधियाँ जिनका हम सामना करते हैं हमें भी गहराई से परमेश्वर को जानने में सहायता करेंगी। “यह कौन है,“ शिष्यों ने सोचा, “आँधी और पानी भी उसकी आज्ञा मानते हैं!“(पद.41)। परीक्षाओं के द्वारा हम सीखते हैं कि कोई भी आँधी इतनी बड़ी नहीं जो परमेश्वर को उसकी इच्छापूर्ति करने से रोक सके(5:1)।
जबकि हम समझने में असमर्थ हो सकते हैं क्यों परमेश्वर हमारे जीवनों में परीक्षाओं को अनुमति देता है, हम उसको धन्यवाद देते हैं कि उनके द्वारा हम जान सकते हैं वह कौन है। हम उसकी सेवा के लिए जीते हैं क्योंकि उसने हमारे जीवनों को संरक्षित किया है।