कोशिश के हर क्षेत्र में, पहचान एवं सफलता निचोड़ एक इनाम मना जाता है l एक ओलम्पिक गोल्ड मेडल, एक ग्रैमी, एक अकादमी एवार्ड, अथवा नोबेल पुरस्कार “बड़े हैं l” किन्तु एक और भी बड़ा इनाम है जो कोई भी प्राप्त कर सकता है l
पौलुस प्रथम-शताब्दी के एथेलेटिक खेलों से परचित था जिसमें प्रतियोगी इनाम जितने हेतु पूरी ताकत लगाते थे l इसको ध्यान में रखते हुए, उसने फिलिप्पी के मसीही विश्वासियों को लिखा : “जो जो बातें मेरे लाभ की थीं, उन्हीं को मैं ने मसीह के कारण हानि समझ लिया है” (फ़िलि.3:7) l क्यों? क्योंकि उसके ह्रदय ने एक नये लक्ष्य को गले लगा लिया था : “मैं उसको और उसके मृत्युन्जय की सामर्थ्य को, और उसके साथ दुखों में सहभागी होने के मर्म को जानूं”(पद.10) l और इसलिए, पौलुस ने कहा, “उस पदार्थ को पकड़ने के लिए दौड़ा चला जाता हूँ, जिसके लिए मसीह यीशु ने मुझे पकड़ा था”(पद. 12) l दौड़ पूरी करने का इनाम “धर्म का …. मुकुट” होता (2 तिमू.4:8) l
हम सब उस इनाम को पाने का लक्ष्य बना सकते हैं, यह जानते हुए कि उसको पाने की चाह प्रभु की महिमा है l प्रतिदिन, हमारे साधारण कामों में, हम “बड़े पुरस्कार” की ओर बढ़ रहे हैं – “इनाम …. जिसके लिए परमेश्वर ने [हमें] मसीह यीशु में बुलाता है” (फ़िलि.3:14) l