अपने युवा पौत्र और उसके मित्रों को टी-बॉल खेलते देखना मनोरंजक है l बेसबॉल के इस रूप में, युवा खिलाड़ी गलत अड्डे की ओर दौड़ते हैं या बॉल पकड़ने के बाद उसके साथ क्या करना है नहीं जानते हैं l यदि हम व्यवसायिक बेसबॉल देखते होते, ये गलतियाँ मनोरंजक नहीं होतीं l
यह परिपक्वता का विषय है l
नहीं जानना क्या करना है या सभी बातों को सही तौर पर करना – युवा खिलाडियों के लिए ये ठीक है l वे प्रयास करते हुए सीख रहे हैं l इसलिए हम उनको सिखाते हैं और परिपक्वता की ओर मार्गदर्शित करते हैं l पश्चात् हम उनकी सफलता का उत्सव मानते हैं जब वे दल के रूप में कुशलता से खेलते हैं l
यीशु के शिष्यों के जीवन में ऐसा ही होता है l पौलुस ने संकेत किया कि कलीसिया को लोग चाहिए जो “धीरज धरकर प्रेम से एक दुसरे की सह लें” (इफि. 4:2) लेते हैं l और हमें अनेक प्रकार के “कोच” (पासवान, शिक्षक, आत्मिक शिक्षक) चाहिए जो “विश्वास में” एक होने में और “पूरे डील-डौल तक” (पद. 13) बढ़ने के हमारे प्रयास में हमारी सहायता करें l
उपदेश सुनना, सीखना, और मिलकर कलीसियाई जीवन का आनंद लेने का लक्ष्य मसीह में परिपक्व होना है (पद.15) l हम सब इस यात्रा में हैं, और यीशु में परिपक्वता के इस मार्ग में हम परस्पर उत्साहित करें l