1986 में जॉन पाईपर एक बड़े चर्च की पासबानी छोड़ना चाहा l उन्होंने अपने दैनिकी में स्वीकारा : “मुझे अत्यधिक निराशा में सभी विरोधी दिखते हैं l” किन्तु परमेश्वर उनकी सेवा को कलीसिया से परे पहुँचाया l
यद्यपि शब्द सफलता सरलता से गलत समझा जाता है, हम जॉन पाईपर को सफल कह सकते हैं l किन्तु क्या होता यदि उनकी सेवा नहीं बढ़ती?
परमेश्वर ने यिर्मयाह को सीधी बुलाहट दी l “गर्भ में रचने से पहले,” परमेश्वर ने कहा, “और उत्पन्न होने से पहले ही मैं ने तेरा अभिषेक किया” (यिर्मयाह 1:5) l परमेश्वर ने उसे अपने शत्रु से नहीं डरने को उत्साहित किया, “तुझे छुड़ाने के लिए मैं तेरे साथ हूँ” (पद. 8) l
बाद में यिर्मयाह जन्मपूर्व बुलाहट वाले व्यक्ति के लिए व्यंगपूर्ण भाषा में अपनी बुलाहट पर रोया l “हे मेरी माता, मुझ पर हाय, कि तू ने मुझ जैसे मनुष्य को उत्पन्न किया …!” (15:10) l
परमेश्वर ने यिर्मयाह को सुरक्षा दिया, किन्तु उसकी सेवा फलहीन हुई l उसके लोग कभी नहीं पछताएँ l उसने उनका संहार होते, उनको दासत्व में जाते और तितर-बितर होते देखा l फिर भी, निराशा और तिरस्कार के बाद भी, वह छोड़ा नहीं l उसे ज्ञात था कि परमेश्वर ने उसे विश्वासयोग्यता के लिए बुलाया है l उसने परमेश्वर पर भरोसा किया l यिर्मयाह का प्रत्यास्थी करुणा हमें पिता का हृदय दिखाता है, जिसकी इच्छा है सब उसकी ओर फिरें l