मेरे पति ने 18 वर्ष की उम्र में कार सफाई व्यवसाय आरंभ की l उन्होंने गराज किराए पर ली, सहायक बुलाए, और विज्ञापन विवरणिका बनवाई l व्यवसाए चल पड़ा l उससे प्राप्त लाभ से वह कॉलेज फीस देना चाहते थे, और एक ग्राहक मिलने पर वे प्रसन्न हुए l कुछ बातचीत के बाद, महसूस हुआ कि लेनदेन होगा l किन्तु आखिरी क्षण में, सौदा चूक गया l अब कई महीनों के बाद ही उसका व्यवसाय सफल होने वाला था l
निराश होना स्वाभाविक है जब हमारे जीवनों के लिए परमेश्वर का समय और अभिकल्पना हमारी अपेक्षानुकूल नहीं होता l जब दाऊद परमेश्वर का भवन बनाना चाहा, उसके उद्देश्य, नेतृत्व योग्यताएँ, और संसाधन उचित थे l फिर भी परमेश्वर ने कहा वह यह काम नहीं कर सकता क्योंकि उसने युद्ध में अनेक लोगों की हत्या की थी (1 इतिहास 22:8)l
दाऊद क्रोध में अपना मुक्का आसमान की ओर दिखा सकता है l वह खीज कर अपनी योजना आगे बढ़ा सकता था l किन्तु उसने दीनता से कहा, “हे यहोवा परमेश्वर! मैं क्या हूँ? … कि तूने मुझे यहाँ तक पहुँचाया है?” (17:16) l दाऊद परमेश्वर की प्रशंसा की और उसके प्रति अपनी भक्ति पुष्ट की l उसने अपनी अभिलाषा से अधिक परमेश्वर के साथ अपने सम्बन्ध का महत्व जाना l
क्या महत्वपूर्ण है-अपनी आशाओं और स्वप्नों की पूर्णता, या परमेश्वर के लिए हमारा प्रेम?