मैं चिड़ियों को फुदकते देख प्रसन्न होता हूँ, इसलिए मैंने अपने पीछे के आँगन में एक छोटा शरण-क्षेत्र बनाया l मैं कई महीनों तक इन पक्षियों को दाना चुगते और फुदकते देख कर आनंदित हुआ-जब तक कि एक बाज़ ने मेरे पक्षी शरण-स्थान को व्यक्तिगत शिकार का आरक्षित स्थान नहीं बना लिया l

जीवन ऐसा ही है :जैसे ही हम शांत होकर विश्राम करना चाहते हैं, कुछ या कोई आकर हमारे घोंसले को हिला देता है l हम पूछते हैं, क्यों, इस जीवन का अधिक भाग आंसुओं की घाटी है?

मैंने इस पुराने प्रश्न के अनेक उत्तर सुने हैं, किन्तु अंत में मैं केवल एक से संतुष्ट हूँ : “संसार का समस्त अनुशासन हम बच्चों को वह बनाना चाहता है जिससे परमेश्वर हम पर प्रगट हो” (जॉर्ज मैक्डोनाल्ड,Life Essential) l बच्चों की तरह बन कर हम अपने स्वर्गिक पिता के प्रेम में सम्पूर्ण भरोसा करके उसको जानने और उसके समान बनना आरंभ करते हैं l

चिंता और दुःख जीवन भर हमारा अनुसरण करेंगे, किन्तु “हम हियाव नहीं छोड़ते; … क्योंकि हमारा पल भर का हल्का सा क्लेश हमारे लिए बहुत ही महत्वपूर्ण और अनंत महिमा उत्पन्न करता जाता है; और हम तो … अनदेखी वस्तुओं को देखते रहते हैं; क्योंकि … अनदेखी वस्तुएँ सदा बनी रहती हैं” (2 कुरिं. 4:16-18) l

क्या तब, हम अंत का ध्यान करके आनंदित न हों?