मुझे एक भूमिगत पानी की टंकी चाहिए थी, इसलिए मैंने अपनी इच्छानुसार निर्माणकर्ता को स्पष्ट निर्देश दिया l अगले दिन काम जांचने पर, मैं परेशान हुआ कि उसने वैसा नहीं किया l योजना के बदलने पर परिणाम भी बदल गया l उसके बहाने उसकी विफलता की तरह ही तकलीफ़देह था l

जब मैं उसे पुनः कंक्रीट कार्य करते हुए देखा, और जब मेरी निराशा कम हुई, दोष की एक भावना मुझ पर हावी हुई : प्रभु की आज्ञाकारिता के अंतर्गत कितनी बार मुझे कई कामों को पुनः करने की ज़रूरत पड़ती है?

परमेश्वर की आज्ञा उल्लंघन करनेवाले प्राचीन इस्राएलियों की तरह, हम भी भटक जाते हैं l फिर भी परमेश्वर के साथ गहराई लेते हमारे रिश्ते में अपेक्षित परिणाम आज्ञाकारिता है l मूसा ने लोगों से कहा, “इसलिए तुम अपने परमेश्वर यहोवा की आज्ञा के अनुसार करने में चौकसी करना; … जिस मार्ग पर चलने की आज्ञा तुम्हारे परमेश्वर यहोवा ने तुम को दी थी उस सारे मार्ग पर चलते रहो” (व्यव. 5:32-33) l मूसा के बहुत बाद, यीशु ने अपने शिष्यों से उस पर भरोसा रखने और परस्पर प्रेम करने को कहा l

यह सुख देनेवाला हमारे हृदयों का समर्पण है l जब आत्मा हमें आज्ञाकारिता में मदद करता है, यह स्मरण करना अच्छा है कि वह “अपनी सुइच्छा निमित्त तुम्हारे मन में इच्छा और काम, दोनों बातों के करने का प्रभाव डाला है” (फ़िलि. 2:13) l