मेरा मित्र बॉब होमर यीशु को “सिद्ध ताकीद देनेवाला” कहता है l और यह अच्छा है, क्योंकि हम बहुत अधिक शंका करनेवाले और भूलनेवाले हैं l चाहे जितनी बार यीशु ने लोगों की ज़रूरतें पूरी की जब वह पृथ्वी पर था, उसके  प्रथम शिष्यों को कमी का भय बना रहा l और आश्चर्यकर्म देखने के बाद भी, वे उस बड़े अर्थ को समझने में नाकाम रहे जो प्रभु चाहता था वे याद रखें l

गलील की झील में यात्रा करते समय, यीशु ने उनसे पुछा, “क्या अब तक नहीं जानते और नहीं समझते? क्या तुम्हारा मन कठोर हो गया है? क्या आँखें रहते हुए भी नहीं देखते, और कान रहते हुए भी नहीं सुनते? और क्या तुम्हें स्मरण नहीं?” (मरकुस 8:17-18) l तब उसने उनको स्मरण दिलाया कि पाँच हज़ार लोगों को पाँच रोटियों से भोजन कराने के बाद बारह टोकरियाँ बची थीं l और चार हज़ार को सात रोटियों से खिलाने के बाद सात टोकरे बचे थे l तब “उसने उनसे कहा, “क्या तुम अब तक नहीं समझते?’” (पद.21) l

प्रभु का लोगों की भौतिक ज़रूरतों के लिए आश्चर्यजनक  प्रावधान एक बड़ी सच्चाई की ओर इशारा था-कि वह जीवन की रोटी है और कि उसका शरीर उनके और हमारे लिए “तोड़ा” जाएगा l

हम प्रभु भोज में रोटी खाते और कटोरे में से पीते समय, हमारे लिए प्रभु के महान प्रेम और प्रावधान याद करते हैं l