मेरी मेज पड़ोस की ओर खुलनेवाली खिड़की के निकट है l मैं वहाँ से पक्षियों को निकट के पेड़ों पर बैठते हुए देख सकता हूँ l कुछ खिड़की की जाली में फंसे कीटों को खाने आती हैं l

पक्षी अपने आस-पास के तात्कालिक खतरे को जांचती और इधर-उधर देखकर ध्यानपूर्वक सुनती हैं l  खतरा न होने के निशिचय पश्चात ही वह चुगने को बैठती हैं l उसके बाद भी, आस-पास की जांच करने हेतु कुछ पल ठहरती हैं l

इन पक्षियों की सतर्कता मुझे स्मरण दिलाती है कि बाइबिल हम मसीहियों को सतर्कता का अभ्यास सिखाती है l हमारा संसार परीक्षाओं से पूर्ण है, और हमें निरंतर सचेत रहकर खतरों को नहीं भूलना है l आदम और हव्वा की तरह, हम आकर्षणों में फंसते हैं जिससे संसार की वस्तुएँ “खाने के लिए अच्छा, और देखने में मनभाऊ, और बुद्धि देने के लिए चाहने योग्य” लगती हैं (उत्प.3:6) l

पौलुस ने सावधान किया, “जागते रहो, विश्वास में स्थिर रहो” (1 कुरिं. 16:13) l और पतरस ने चिताया, “सचेत हो, और जागते रहो; क्योंकि तुम्हारा विरोधी शैतान गर्जनेवाले सिंह के सामान इस खोज में रहता है कि किस को फाड़ खाए” (1 पतरस 5:8) l

दैनिक ज़रूरतों के लिए मेहनत करते हुए, क्या हम बर्बाद करनेवाली बातों की ओर सचेत हैं? क्या हम अभिमान अथवा इच्छा की कोई झलक देखते हैं जो हमें हमारे परमेश्वर पर भरोसा करने की ओर उन्मुख करे?