“क्या आपके पास कुछ है जो मैं धो सकती हूँ?” मैंने अपने घर में एक मेहमान से पूछा l उनका चेहरा खिल उठा, और उसने अपनी पुत्री से कहा, “अपने गंदे कपड़े ले आओ-एमी हमारे कपड़े धो देगी!” मैं मुस्कराई, यह जानते हुए कि मेरा पेशकश थोड़े वस्तुओं से बढ़कर कहीं अधिक हो गया है l
बाद में रस्सी पर कपड़े फैलाते समय, प्रातः बाइबिल पठन से एक वाक्यांश मेरे मस्तिस्क में आया : “दीनता से एक दूसरे को अपने से अच्छा समझो” (फिलि. 2:3) l मैं पौलुस की लिखी फिलिप्पियों की पत्री पढ़ रही थी, जिसमें उसने परस्पर सेवा और एकता में मसीह की बुलाहट के योग्य जीवन जीने का आह्वान किया l वे अत्याचार सह रहे थे, किन्तु पौलुस उनसे एक मन रहने को कहा l उसे मालूम था कि उनकी एकता मसीह के साथ रहने और परस्पर सेवा में प्रगट है, जिससे वह अपने विश्वास में ताकतवर रहेंगे l
हम स्वार्थी इच्छा या व्यर्थ अहंकार के बगैर दूसरों से प्रेम करने का दावा कर सकते हैं, किन्तु व्यवहारिक प्रेम के बिना हमारे हृदय की वास्तविक दशा प्रगट नहीं होगी l यद्यपि मैंने कुड़कुड़ाना चाहा, मसीह का शिष्य होकर, मुझे अपने बुलाहट अनुसार अपना प्रेम मित्रों के सामने दर्शाना था-साफ़ हृदय से l
परमेश्वर की महिमा के लिए हम अपने परिवार, मित्रों, और पड़ोसियों की सेवा का अवसर खोजें l
परस्पर सेवा का परिणाम एकता का उपहार है l