मैं एक सुपर-मार्किट में भुगतान करने खड़ा चारों-ओर देख रहा हूँ l मैं सर मुंडाए और नाक में नथ पहने किशोरों को अल्पाहार/स्नैक लेते, एक युवा व्यवसायी को एक टिक्का, कुछ नागदौन की टहनियां, और शकरकंद खरीदते देखता हूँ; एक बुज़ुर्ग स्त्री आड़ू और स्ट्रॉबेरी देख रही है l क्या परमेश्वर नाम से इनको जानता है? क्या ये लोग उसके लिए महत्वपूर्ण हैं?

सारी सृष्टि के परमेश्वर ने मनुष्य को बनाया, और हम उसके व्यक्तिगत ध्यान और प्रेम के योग्य हैं l परमेश्वर ने उस प्रेम को व्यक्तिगत रूप से इस्राएल के बदसूरत पहाड़ी और आखिरकार क्रूस पर दिखाया l

जब यीशु दास बनकर पृथ्वी पर आया, उसने दर्शाया कि परमेश्वर का हाथ संसार के सबसे छोटे व्यक्ति के लिए बहुत शेखी मारनेवाला नहीं है l उस हाथ में हमारे व्यक्तिगत नाम खुदे हैं और घाव हैं, हमसे अत्यधिक प्रेम के लिए परमेश्वर द्वारा चुकाई हुई कीमत l

अब, जब मैं खुद को आत्म-ग्लानी, अकेलेपन के दर्द से अभिभूत पाता हूँ, जो अय्यूब और सभोपदेशक की पुस्तक में खूबसूरती से वर्णित है, मैं सुसमाचार में यीशु की कहानियों और कार्यों की ओर मुड़ता हूँ l यदि मैं इस निश्चय पर पहुँचता हूँ कि मेरा अस्तित्व “धरती पर” परमेश्वर के लिए अर्थहीन है, मैं परमेश्वर के इस धरती पर आने के मुख्य कारण का विरोधी हूँ l निश्चित तौर पर क्या मैं महत्वपूर्ण हूँ?  प्रश्न का उत्तर यीशु है l