केरी लोगों से प्रशंसा चाहती है l वह अधिकतर समय खुद को प्रसन्न दिखाती है ताकि लोग उसके आनंदित व्यवहार को देखकर उसकी तारीफ करें l कुछ लोग उसे लोगों की सहायता करते देखकर उसको सराहते हैं l किन्तु एक पारदर्शी क्षण में केरी स्वीकार करेगी, “मैं प्रभु से प्रेम करती हूँ, किन्तु कहीं-कहीं मुझे मेरा जीवन एक दिखावा लगता है l” दूसरों के सामने भला दिखाई देने के उसके अधिकतर प्रयास के पीछे उसकी अपनी असुरक्षा का भाव है, और उसके अनुसार इसे बनाए रखने में समय की किल्लत हो रही है l

हम संभवतः किसी न किसी तरह इससे सम्बंधित हैं क्योंकि सिद्ध इरादे असंभव हैं l हम प्रभु और दूसरों से प्रेम करते हैं, किन्तु मसीही जीवन जीने के हमारे इरादे महत्व अथवा प्रशंसा पाने की हमारी इच्छा में मिश्रित है l

यीशु दिखावे के लिए देनेवालों, प्रार्थना करनेवालों, और उपवास करनेवालों के विषय बातचीत किया (मत्ती 6:1-6) l उसने पहाड़ी उपदेश में सिखाया, “तेरा दान गुप्त रहे,” “गुप्त में प्रार्थना कर,” और “प्रार्थना करो, तो कपटियों के सामान तुम्हारे मुँह पर उदासी न छाई रहे” (पद.4,6,16) l

सेवा अक्सर सार्वजनिक तौर पर होती है, किन्तु गुप्त सेवा हमें हमारे विषय परमेश्वर के विचार में विश्राम करना सिखाएगा l जिसने हमें अपने स्वरुप में बनाया है, हमें इतना महत्व देता है कि उसने प्रतिदिन अपना प्रेम दिखने हेतु अपने पुत्र को दे दिया l