अनेक वर्ष पूर्व, मैं ईसा पूर्व द्वितीय शताब्दी के एक यूनानी लेखक के मछली पकड़ने के ज्ञान सम्बन्धी एक लेख के कुछ अंश से चकित हुआ l “बोरोका और थिस्सलुनीके के बीच एस्त्राकस नदी है, जिसमें चितकबरी त्वचा वाली ट्राउट मछलियाँ हैं l” फिर वह “मछलियों के लिए फंदा, जिससे उनको अच्छी और अधिक मछलियाँ मिलती हैं, बताता है l वे दो पंखों के साथ सुर्ख लाल ऊन एक कांटे में लगाते हैं l फिर वे अपने फंदे को पानी में फेंकते हैं, और मछलियाँ रंग से आकर्षित होकर ऊपर आकर खाना चाहती हैं” (ऑन द नेचर ऑफ़ एनिमल्स) l

मछुआरे आज भी यह आकर्षण उपयोग करते हैं l इसे लाल शिखा/कलगी कहते हैं l 2,200 वर्ष पूर्व उपयोगी फंदा “अधिक ट्राउट मछलियाँ पकड़ने में” आज भी उपयोगी है l

उस प्राचीन लेख को पढ़कर मैंने सोचा : समस्त पुरानी बातें अप्रचलित नहीं हुई गईं हैं-विशेषकर लोग l यदि संतुष्ट और आनंदित वृद्धावस्था द्वारा हम परमेश्वर की परिपूर्णता और गहराई दर्शाते हैं, हम अपने जीवन के अंत तक उपयोगी रहेंगे l वृद्धावस्था गिरते स्वास्थ्य, पूर्व अवस्था पर केन्द्रित हों ज़रूरी नहीं है l यह परमेश्वर के साथ वृद्ध होनेवालों का फल अर्थात् शांतचित्तता और आनंद और साहस और दयालुता से भरपूर हो सकता है l

“वे यहोवा के भवन में रोपे जाकर, … पुराने होने पर भी फलते रहेंगे, और रस भरे और लहलहाते रहेंगे” (भजन 92:13-14) l