क्या कभी आप खुद से बात करते हैं? कभी-कभी किसी योजना पर कार्य करते हुए-अक्सर कार के अन्दर-मैं मरम्मत के लिए जोर-जोर से बोलकर, सर्वोत्तम विकल्प ढूंढ़ता हूँ l किसी का मुझे “संवाद” करते हुए देखना लज्जाजनक हो सकती है-यद्यपि हममें से अनेक प्रतिदिन खुद से बातचीत करते हैं l

भजनकार अक्सर भजनों में खुद से संवाद करते थे l भजन 116 का लेखक अलग  नहीं है l पद 7 में उसने लिखा, “हे मेरे प्राण, तू अपने निवासस्थल में लौट आ; क्योंकि यहोवा ने तेरा उपकार किया है l” अतीत में परमेश्वर की भलाई और विश्वासयोग्यता खुद को याद दिलाना वर्तमान में उसके लिए व्यावहारिक सुख और सहायता है l हम अक्सर इस तरह के “संवाद” भजनों में देखते हैं l भजन 103:1 में दाऊद खुद से बोलता है, “हे मेरे मन, यहोवा को धन्य कर; और जो कुछ मुझ में है, वह उसके पवित्र नाम को धन्य कहे l” और भजन 62:5 में वह दृढ़तापूर्वक कहता है, “हे मेरे मन, परमेश्वर के सामने चुपचाप रह, क्योंकि मेरी आशा उसी से है l”

खुद को परमेश्वर की विश्वासयोग्यता और उसमें अपनी आशा याद करना भला है l हम भजनकार के उदहारण का अनुसरण करके खुद के प्रति परमेश्वर की अनेक भलाइयों को नाम-ब-नाम याद कर सकते हैं l ऐसा करके हम उत्साहित होते हैं l अतीत में विश्वासयोग्य रहनेवाला परमेश्वर भविष्य में भी अपना प्रेम दिखाता रहेगा l