मैं बचपन में एल. फ्रैंक बौम की लैंड ऑफ़ ओज़ पुस्तकों का उत्साही पाठक था l हाल ही में मुझे रिंकीटिंक इन ओज़  समस्त मूल कलाकृतियों के साथ मिली l मैं पुनः बौम के अदम्य, दयालु राजा रिंकीटिंक की व्यवहारिक भलाइयों पर हँसा l युवराज इंगा उत्तम वर्णन करता है : “उसका हृदय दयालु और कोमल है और यह बुद्धिमान होने से बेहतर है l”

किनता सरल और विवेकपूर्ण l फिर भी हमारे किसी प्रिय का हृदय किस ने कठोर शब्द से नहीं दुखाया है? ऐसा करके, हम उस समय की शांति और सुख में विघ्न डालकर   अपने प्रेमियों से की गई भलाइयों को बिगाड़ते हैं l  “एक छोटी सी दयाहीनता एक बड़ी गलती है,” 18 वीं शताब्दी के अंग्रेजी लेखक हैना ने कहा l

यहाँ खुशखबरी  है : कोई भी दयालु हो सकता है l शायद हम प्रेरणादायक उपदेश, कठिन प्रश्नों का हल न दे सकें, अथवा बहुतों को सुसमाचारित न कर सकें, किन्तु दयालु हो सकते हैं l

कैसे? प्रार्थना द्वारा l यही हमारे हृदयों को नम्र बना सकता है l “हे यहोवा, मेरे मुख पर पहरा बैठा, मेरे होठों के द्वार की रखवाली कर! मेरा मन किसी बुरी बात की ओर फिरने न दें” (भजन 141:3-4) l

संसार, जहाँ प्रेम ठंडा हो गया हैं, हमारे द्वारा दूसरों के समक्ष परमेश्वर के हृदय से निकलने वाली दयालुता सबसे अधिक सहायक और चंगा करने वाली होगी l