परमेश्वर अक्सर हमारी प्रार्थनाओं द्वारा अपने कार्य संपन्न करने का चुनाव करता है l ऐसे हम पाते हैं जब परमेश्वर ने एलिय्याह नबी से यह कहकर, “मैं भूमि पर मेंह बरसाऊंगा,” इस्राएल में साढ़े तीन वर्षों के अकाल को समाप्त करने की प्रतिज्ञा की (याकूब 5:17) l परमेश्वर द्वारा वर्षा की प्रतिज्ञा करने के बावजूद, कुछ समय बाद “एलिय्याह कर्मेल की चोटी पर चढ़ गया, और भूमि पर गिरकर अपना मुँह घुटनों के बीच [करके]”-वर्षा के लिए साभिप्राय प्रार्थना किया (1 राजा 18:42) l तब, प्रार्थना करते हुए, एलिय्याह ने “सात बार” अपने सेवक को समुद्र की ओर वर्षा के आने का संकेत देखने के लिए भेजा (पद.43) l
एलिय्याह समझ गया था कि परमेश्वर चाहता है कि हम दीन, और निरंतर प्रार्थना के द्वारा उसके कार्य में संलग्न हों l हमारे मानवीय सीमाओं के बावजूद, परमेश्वर हमारी प्रार्थनाओं द्वारा आश्चर्यजनक कार्य करता है l इसलिए याकूब की पत्री हमें ताकीद देते हुए कि “एलिय्याह हमारे सामान दुःख-सुख भोगी मनुष्य था” हमसे कहती है कि “धर्मी जन की प्रार्थना के प्रभाव से बहुत कुछ हो सकता है” (याकूब 5:16-17) l
जब हम एलिय्याह की तरह विश्वासयोग्य प्रार्थना द्वारा परमेश्वर की सेवा करने का लक्ष्य बना लेते हैं, हम एक खूबसूरत अवसर के हिस्से हैं-जब परमेश्वर हमारे द्वारा किसी समय आश्चर्यकर्म कर सकता है!
हमारी महान अपेक्षाओं द्वारा परमेश्वर को आदर मिलता है l