अपनी जीविका के आरंभिक काल में मैंने अपनी नौकरी को उद्देश्य/मिशन माना, जिससे एक और कंपनी ने मेरे समक्ष खासा अच्छा वेतन वाला पद पेश किया l  इससे अवश्य ही परिवार लाभान्वित होता l किन्तु मैं एक नयी नौकरी नहीं तलाश रहा था, मैं वर्तमान कार्य से प्रेम करता था, जो एक बुलाहट बनती जा रही थी l

किन्तु वह पैसा . . .

शरीर से दुर्बल मेरे 70 वर्षीय पिता ने सटीक एवं स्पष्ट उत्तर दिया : “पैसे के विषय सोचों भी नहीं l तुम क्या करोगे?”

मैंने तुरंत निर्णय कर लिया l मेरे पसंदीदा कार्य को छोड़ने का कारण केवल पैसा होता! पिताजी, धन्यवाद l

यीशु ने अपने पहाड़ी उपदेश की शिक्षा का एक बड़ा हिस्सा पैसा और उसके प्रति हमारे लगाव पर केंद्रित किया l उसने हमसे धन इकट्ठा करने की बजाए “हमारी प्रतिदिन की रोटी” मांगने को कहा (मत्ती 6:11) l पृथ्वी पर धन इकट्ठा न करने की चेतावनी देकर पक्षियों और फूलों द्वारा बताया कि परमेश्वर अपनी सृष्टि की बहुत चिंता करता है (पद.19-31) l “पहले तुम परमेश्वर के राज्य और उसके धर्म की खोज करो,” यीशु ने कहा, “तो ये सब वस्तुएँ भी तुम्हें मिल जाएंगी” (पद.33) l

पैसा महत्वपूर्ण है l किन्तु हमारी निर्णय प्रक्रिया इसके ऊपर हो l कठिन समय और बड़े निर्णय अपने विश्वास को नए तरीकों से बढ़ाने के अवसर हैं. हमारा स्वर्गक पिता हमारी चिंता करता है l