हमारे व्यस्क कैंप की विषय-वस्तु थी, “मेरे लोगों को सुख दें l” सभी उपदेशकों ने आश्वास किया l किन्तु अंतिम उपदेशक का स्वर कठोर था l उन्होंने यिर्मयाह 7:1-11 से कहा  “नींद से जागें l” उन्होंने स्पष्टता और प्रेम से, नींद से जागकर  पाप से फिरने की चुनौती दी l

उन्होंने नबी यिर्मयाह समान नसीहत दी, “परमेश्वर के अनुग्रह के पीछे न छिपें और गुप्त पाप छोड़ें l” “हम गर्व करते हैं, ‘मैं मसीही हूँ; परमेश्वर मुझसे प्रेम करता है; मैं बुराई से डरता नहीं,’ फिर भी हम बुराईयाँ करते हैं l”

हमें ज्ञात था वह हमारे विषय चिंतित था, फिर भी हम उसकी घोषणा से अपनी सीटों पर बेचैन थे, “परमेश्वर प्रेमी और भस्म करनेवाली आग भी है! (देखें इब्रा. 12:29) l वह पाप को माफ़ नहीं करेगा!”

प्राचीन यिर्मयाह लोगों को घबरा किया, “तुम जो चोरी, हत्या और व्यभिचार करते, झूठी शपथ खाते …दूसरे देवताओं के पीछे … चलते हो, तो क्या यह उचित है कि तुम इस भवन में आओ जो मेरा कहलाता है, और मेरे सामने … कहो, ‘हम छूट गए हैं,’ कि ये सब घृणित काम करें?” (7:9-10) l

इस उपदेशक का किस्म “मेरे लोगों को सुख दें” परमेश्वर के सुख का दूसरा पहलु था l जैसे एक कड़वी औषधि मलेरिया ठीक करती है, उसके शब्द आत्मिक स्वास्थ्य देनेवाले थे l कठोर शब्द सुनते समय, मुहं न फेरकर, उसके स्वास्थ्यवर्धक प्रभाव को अपनाएं l