चर्च के कमरे में जहाँ मैं मदद कर रही थी एक व्यस्त सुबह थी l करीब एक दर्जन बच्चे चहक और खेल रहे थे l गतिविधियों के कारण कमरा गर्म हो गया और मैंने दरवाजा खोल दी l एक छोटा बच्चा यह सोचकर बाहर निकलना चाहा कि कोई उसे नहीं देख रहा है l मैं चौंकी नहीं, कि वह सीधे अपने पापा की बांहों में गया l
उस बच्चे ने वही किया जो ज़रूरी है जब जीवन व्यस्त और अभिभूत करता है-वह अपने पापा के पास भागा l यीशु भी अपने पिता के साथ प्रार्थना का समय ढूंढ़ता था l कुछ लोग कहेंगे कि उसको कमज़ोर करनेवाली मानवीय ऊर्जा की कमी को वह इसी तरह पूरा करता था l मत्ती रचित सुसमाचार के अनुसार वह एकान्त स्थान में जा रहा था जब भीड़ उसके पीछे थी l उनकी ज़रूरतों को जानकार, यीशु ने आश्चर्यजनक रूप से उनको चंगा किया और भोजन खिलाया l उसके बाद, हालाँकि, वह “प्रार्थना करने को अलग पहाड़ पर चला गया” (पद.23) l
यीशु ने बार-बार लोगों की मदद की, किन्तु खुद को थकित नहीं होने दिया और जल्दबाजी नहीं की l उसने प्रार्थना द्वारा परमेश्वर के साथ अपने सम्बन्ध को मजबूत किया l आपके साथ कैसा है? क्या आप परमेश्वर की सामर्थ्य और पूर्णता प्राप्त करने हेतु उसके साथ समय बिताएंगे?
परमेश्वर की निकट जाने से हम तरोताज़ा होते हैं और हमारी सामर्थ्य नूतन l