लेखक के रूप में मेरी अधिकतर जीविका दुःख की समस्या के चारों-ओर घूमती रही l मैं ऊँगली द्वारा एक नासूर को छेड़ने जैसे प्रश्नों की ओर बार-बार लौटता  हूँ l मैं अपने पाठकों से सुनता हूँ, और उनकी दुखद कहानियाँ मेरे संशय को वास्तविक बनाती हैं l मुझे एक युवा पासवान का प्रश्न याद है जिसकी पत्नी और छोटी बेटी दूषित रक्त चढ़ाने से एड्स से मर रहे हैं l “मैं अपने युवा समूह से एक प्रेमी परमेश्वर के विषय कैसे बातचीत कर सकता हूँ l” l

मैं इस तरह के “क्यों” प्रश्नों का उत्तर नहीं देने का प्रयास करना सीख लिया है : क्यों युवा पासबान की पत्नी को एक बोतल दूषित रक्त चढ़ाया गया? क्यों तूफ़ान एक शहर को तबाह करता है, दूसरे को नहीं? क्यों शारीरिक चंगाई की प्रार्थना अनसुनी होती है?“

क्या परमेश्वर चिंतित है?” केवल एक ही उत्तर है, यीशु l यीशु में परमेश्वर ने एक चेहरा दिया l परमेश्वर अपने इस कराहते संसार में दुःख के विषय क्या सोचता है? यीशु को देखें l

“क्या परमेश्वर चिंतित है?” परमेश्वर पुत्र की मृत्यु, जो आखिरकार दर्द, दुःख, पीड़ा, और मृत्यु को हमेशा के लिए समाप्त कर देगी, ही उस प्रश्न का उत्तर है l “इसलिए कि परमेश्वर ही है, जिसने कहा, “अंधकार में से ज्योति चमके,” और वही हमारे हृदयों में चमका कि परमेश्वर की महिमा की पहिचान की ज्योति यीशु मसीह के चेहरे से प्रकाशमान हो” (2 कुरिन्थियों 4:6) l