युवा आइज़क वाट ने अपने चर्च में संगीत का अभाव महसूस कर पिता की चुनौती से गीत लिखा, “जिस क्रूस पर यीशु मरा था” अंग्रेजी भाषा का महानतम गीत अनेक भाषाओं में अनुदित हुआ l
आराधना से भरपूर तीसरा अंतरा हमें क्रूसित यीशु की उपस्थिति में पहुँचा देता है l
देख, उसके सिर, हाथ, पाँव के घाव, यह कैसा दुःख, यह कैसा प्यार!
अनूठा है यह प्रेम-स्वभाव, अनूप यह जग का तारणहार l
वाट अत्यधिक ख़ूबसूरती से क्रूसीकरण का वर्णन इतिहास के सबसे भयंकर क्षण के रूप में करता है l हम क्रूस के निकट खड़े लोगों का साथ देते हैं l देह में चुभी किलों से टंगा परमेश्वर पुत्र श्वास लेने की कोशिश करता है l घंटों के उत्पीड़न बाद, अलौकिक अंधकार छा जाता है l अनंतः, सौभाग्य से सृष्टि का प्रभु अपना मनोव्यथित आत्मा त्याग देता है l धरती डोलती है l मंदिर का मोटा परदा दो भाग हो जाता है l कब्रों से अनेक शव जी उठकर नगर में दिखाई देते हैं (मत्ती 27:51-53) l इस घटना से यीशु को क्रूसित करनेवाले सूबेदार बोल उठता है, “सचमुच यह परमेश्वर का पुत्र था!” (पद.54) l
वाट की कविता पर पोएट्री फाउंडेशन टिप्पणी करती है, “क्रूस समस्त मान्यताओं को पुनः व्यवस्थित करती है और समस्त दिखावे को रद्द करती है l” गीत का अंत इस तरह ही हो सकता था : “हे यीशु प्रिय आप को मैं, समर्पित करता हूँ देह, प्राण l”
उसे जिसने क्रूस पर हमें सब कुछ दे दिया,
हमारे लिए अपना सब कुछ उसको समर्पित करना एक सौभाग्य है l