इंग्लैंड, लन्दन में नेशनल पोर्ट्रेट दीर्घा में सदियों के ढेर सारे तस्वीर हैं, जिसमें विंस्टन चर्चिल के 166, विलियम शेक्सपियर की 94, और जॉर्ज वाशिंगटन की 20 तस्वीरें हैं l पुरानी तस्वीरों को देखकर हम सोचेंगे : क्या ये लोग वास्तव में ऐसे ही दिखाई देते थे?
जैसे, स्कॉटलैंड के देश-प्रेमी विलियम वालस (c. 1270-1305) के 8 चित्र हैं, किन्तु हमारे पास इनसे तुलना करने के लिए शायद ही चित्र हैं l हम कैसे जाने कि चित्रकार ने वाल्स का सही चित्र बनाया?
कुछ ऐसा ही यीशु की समानता के साथ भी हो सकता है l बिना जाने, यीशु में विश्वास करनेवाले दूसरों पर उसकी छाप छोड़ रहे हैं l चित्रकारी ब्रश और रंग से नहीं, किन्तु आचरण, कार्य, और संबंधों के द्वारा l
क्या हम उसके हृदय की समानता का चित्र प्रदर्शित कर रहे हैं? प्रेरित पौलुस की यही चिंता थी l “जैसा मसीह यीशु का स्वभाव था वैसा ही तुम्हारा भी स्वभाव हो” (फिलि. 2:5) l हमारे प्रभु को उचित रूप में प्रदर्शित करने की इच्छा के साथ, उसने यीशु के अनुयायियों को दूसरों तक उसकी दीनता, आत्म-बलिदान और करुणा दर्शाने का आग्रह किया l
ऐसा कहा गया है, “हम ही केवल वह यीशु हैं जिसे कुछ लोग कभी देखेंगे l” हम “दीनता से एक दूसरे को अपने से अच्छा [समझकर] (पद.3), संसार को स्वयं यीशु का हृदय दिखाएँगे l
मसीह का स्वयं का बलिदान हमें दूसरों के लिए अपना बलिदान करने को प्रेरित करता है l