मुख्य समाचार ने मुझे आकर्षित किया, धावकों के लिए आराम के दिन आवश्यक हैं l” टॉमी मैनिंग के लेख में अमरीकी पर्वत धावक टीम, ने समर्पित धावकों द्वारा कभी-कभी नज़रन्दाज़ करने वाले एक सिद्धांत पर बल दिया-अभ्यास के बाद शरीर को विश्राम और फिर से ताकत पाने के लिए समय चाहिए l मैनिंग ने लिखा, “मनोवैज्ञानिक रूप से, प्रशिक्षण के परिणामस्वरूप सुधार आराम से ही होता है l इसका अर्थ है, कि काम के बराबर आराम है l”
यह हमारे विश्वास और सेवा में भी उतना ही सच है l अक्रियाशीलता और निराशा से दूर रहने के लिए नियमित आराम चाहिए l अत्यधिक ज़रूरत के समय भी, यीशु अपने पृथ्वी पर के जीवन में आत्मिक संतुलन बनाए रखा l शिष्यों के शिक्षण और चंगाई के ज़ोरदार सेवकाई के बाद लौटने पर, “उसने उनसे कहा, ‘तुम आप अलग किसी एकांत स्थान में चलकर थोड़ा विश्राम करो l’” (मरकुस 6:31) l किन्तु एक बड़ी भीड़ उनके पीछे हो ली, इसलिए यीशु ने उनको उपदेश दिया और केवल पाँच रोटी और दो मछलियों से उन सब को भोजन कराया (पद.32-44) l सभी के चले जाने पर, यीशु “पहाड़ पर प्रार्थना करने को गया” (पद.46) l
यदि हमारे जीवन काम से परिभाषित हैं, तो हमारे कार्य अत्यधिक प्रभावहीन होते चले जाते हैं l यीशु नियमित रूप से हमसे उसके साथ मिलकर प्रार्थना करने और कुछ विश्राम करने को आमंत्रित करता है l
हमारे विश्वास और सेवा के जीवन में, आराम कार्य के बराबर महत्वपूर्ण है l