जब दक्षिण-पूर्व एशिया के विद्यार्थियों की मुलाकात उत्तर अमेरिका के एक शिक्षक से हुई, अतिथि शिक्षक ने एक सबक सीखा l कक्षा को उनका प्रथम बहु-चुनाव परीक्षा देने के बाद, उसको आश्चर्य हुआ कि अनेक प्रश्न अनुत्तरित थे l जाँचा हुआ प्रश्न पत्र वापस करते हुए, उसने सलाह दी कि, अगली बार, उत्तर छोड़ने की जगह उनको अनुमान लगाना चाहिए l चकित होकर एक विद्यार्थी अपना हाथ खड़ा करके पूछा, “यदि उत्तर सही रहा तो? मैं यह मानूंगा कि मैं उत्तर जानता था जबकि यह सच नहीं है l” विद्यार्थी और शिक्षक के पास भिन्न दृष्टिकोण और तरीका था l
नया नियम काल में, पूर्व और पश्चिम की तरह ही मसीह के पास आनेवाले यहूदी और गैर यहूदी के दृष्टिकोण भिन्न थे l जल्द ही वे उपासना के दिन और मसीह के अनुयायी को क्या खाना और क्या नहीं खाना चाहिए जैसे विषयों पर असहमत थे l पौलुस ने उनसे एक ख़ास तथ्य याद रखने का आग्रह किया : हममें से कोई भी किसी पर दोष नहीं लगा सकता l
सह विश्वासियों के साथ समस्वरता के लिए, परमेश्वर हमसे चाहता है कि हम जाने कि सब उसके वचनानुसार और अपने विवेक से कार्य करने के लिए प्रभु के सामने जिम्मेदार हैं l हालाँकि, केवल वो ही हमारे हृदयों के आचरण जांच सकता है (रोमियों 14:4-7) l
दूसरों पर दोष लगाने में जल्दीबाजी न करें किन्तु खुद को जांचने में शीघ्रता करें l