किली पूर्वी अफ्रीका के एक दुरस्त क्षेत्र में एक मेडिकल मिशन पर जाने का अवसर पाकर प्रसन्न थी, किन्तु असहज l उसके पास मेडिकल अनुभव नहीं था l फिर भी, वह बुनियादी देखभाल कर सकती थी l
वहाँ रहते हुए उसकी मुलाकात एक महिला से हुयी जो भयंकर किन्तु साध्य रोग से ग्रस्त थी l उसका विकृत टांग उसको अकेला रखता था, किन्तु किली को कुछ करना ही था l टांग को साफ़ करके पट्टी करते समय, मरीज़ चिल्लाने लगी l चिंतित किली ने पूछा कि वह उसको तकलीफ तो नहीं पहुँचा रही l “नहीं,” उसने उत्तर दिया l “नौ वर्षों में पहली बार किसी ने मुझे छुआ है l”
कुष्ठ एक और बिमारी है जो अपने शिकार को दूसरों से दूर करता है, और प्राचीन यहूदी संस्कृति में इसके प्रसार को रोकने के लिए कठोर मार्गदर्शिकाएं थीं : “उन्हें अकेला रहना था,” व्यवस्था की घोषणा थी l “उसका निवास स्थान छावनी से बाहर हो” (लैव्य. 13:46) l
इसलिए यह असाधारण है कि एक कुष्ठ रोगी यीशु के निकट आकर बोला, “हे प्रभु, यदि तू चाहे, तो मुझे शुद्ध कर सकता है” (मत्ती 8:2) l “यीशु ने हाथ बढ़ाकर उसे छुआ, और कहा, “मैं चाहता हूँ, तू शुद्ध हो जा” (पद. 3) l
एक अकेली महिला का रोग ग्रस्त टांग छूकर, किली ने मसीह के भयमुक्त, एक करनेवाला प्रेम प्रदर्शित किया l मात्र एक स्पर्श अंतर लाता है l
भयमुक्त होकर और परमेश्वर द्वारा उपयोगी होने का भरोसा करके
आप कितना बड़ा अंतर ला सकते हैं?