अपनी आखों की रोशनी जाते देख कर भी मेरा मित्र मिकी ने कहा, “मैं प्रतिदिन परमेश्वर की स्तुति करता रहूँगा, क्योंकि उसने मेरे लिए बहुत किया है l”
यीशु ने मिकी और हमें निरंतर स्तुति करने का परम कारण दिया है l मत्ती 26 अध्याय हमें बताता है कि यीशु किस तरह क्रूसित होने से पूर्व अपने शिष्यों के साथ फसह का भोज खाया l पद 30 हमें भोज का अंत बताता है : “फिर वे भजन गाकर जैतून पहाड़ पर गए l”
यह भजन कोई और नहीं स्तुति का भजन था l हजारों वर्षों से, यहूदियों ने फसह के समय “हल्लेल” [Hallel] नमक भजनों का एक समूह गाते आएं हैं (इब्री भाषा में हल्लेल अर्थात “स्तुति” है l) भजन 113-118 में पायी जानेवाली प्रार्थनाएं और गीत हमारे उद्धारक परमेश्वर के आदर में है (118:21) l वह निकम्मा ठहराए गए पत्थर का सन्दर्भ देता है जो कोने का सिरा हो गया (पद. 22) और जो प्रभु के नाम में आता है (पद.26) l वे यह भी गा सकते थे, “आज वह दिन है जो यहोवा ने बनाया है; हम इसमें मगन और आनंदित हों” (पद.24) l
यीशु ने अपने शिष्यों के साथ स्तुति करके, हमें हमारे तात्कालिक स्थितियों से ऊपर नज़र उठाने का अंतिम कारण दे रहा था l वह हमारे परमेश्वर के अविरल प्रेम और विश्वासयोग्यता की प्रशंसा में अगुवाई कर रहा था l
परमेश्वर की स्तुति हमें समाप्त नहीं होनेवाली
उसकी भलाइयों को स्मरण करने में सहायता करती है l