व्यंग-चित्र कलाकार, सार्वजनिक स्थानों में अपने चित्र-फलक लगाकर उन लोगों का चित्र बनाते हैं जो अपने हास्यपद-चित्र के लिए ठीक कीमत देने के इच्छुक हैं l ये चित्र हमें आनंद देते हैं क्योंकि ये हमारे भौतिक मुखाकृति के किसी एक या अनेक भाग को इस तरह बढ़ाकर दिखाते हैं जो पहचाना जाता है किन्तु हास्यकर होता है l
अपितु परमेश्वर के व्यंग-चित्र, हास्यकर नहीं l उसके किसी गुण को बढ़ाने से उसका विकृत छवि दिखता है जिसे लोग सरलता से नकार देते हैं l व्यंग-चित्र की तरह, परमेश्वर का एक विकृत छवि गंभीरता से स्वीकारा नहीं जाता l परमेश्वर को क्रोधित और रौब जमानेवाले न्यायी के रूप में देखनेवाले लोग सरलता से करुणा को प्रमुखता देनेवाले की ओर उन्मुख होते हैं l उसे दयालु दादा के रूप में देखनेवाले लोग न्याय की आवश्यकता के समय उस छवि को नकार देंगे l उसे जीवित, प्रेमी व्यक्तित्व की अपेक्षा उसे बौद्धिक विचार माननेवाले लोगों के लिए आख़िरकार दूसरे और विचार चिताकर्षक होंगे l उसे परम मित्र के रूप में देखनेवाले अधिक पसंदीदा मानवीय मित्र मिलने पर उसे पीछे छोड़ देते हैं l
परमेश्वर खुद को करुणामय और अनुग्रहकारी घोषित करता है, किन्तु दोषी को दण्डित करता है (निर्ग. 34:6-7) l
अपने विश्वास को कार्य रूप देते समय, हमें परमेश्वर में केवल पसंदीदा गुण नहीं दिखने चाहिए l हम परमेश्वर को सम्पूर्ण मानकर उपासना करें, केवल जो हमें पसंद है उसकी नहीं l
परमेश्वर केवल परमेश्वर है l