मेरे शहर के सामने एक चट्टानी पहाड़ी मैदान, टेबल रॉक पर एक बड़ा, चमकदार क्रूस, खड़ा है l निकट की भूमि पर अनेक घर बनाए गए, किन्तु हाल ही में सुरक्षा कारणों से मालिकों से वहाँ से हटने को बोला गया है l टेबल रॉक के सुदृढ़ आधार पर होने के बावजूद, ये मकान सुरक्षित नहीं हैं l वे अपनी नींव के ऊपर से सरक रहे हैं-करीब तीन इंच प्रतिदिन-जिससे जल पाइपलाइन के टूटने का जोखिम उत्पन्न है, जो सरकन को और बढ़ाएँगी l
यीशु उसके शब्दों को सुनकर उस पर चलनेवालों को चट्टान पर घर बनानेवालों से तुलना करता है (लूका 6:47-48) l उनके घर आंधियों में भी टिके रहते हैं l तुलनात्मक तौर पर, वह कहता है कि जिस घर का नींव सुदृढ़ नहीं है-उसके वचन पर नहीं चलनेवालों की तरह-आंधियों का सामना नहीं कर पाएंगे l
कई अवसर पर, मैं अपने विवेक की बातें नहीं सुनने की परीक्षा में पड़ा हूँ जब परमेश्वर ने मेरे देने से अधिक मुझ से मांगी है, और मेरी सोच थी कि मेरा प्रतिउत्तर “काफी निकट” था l फिर भी सरकती पहाड़ी पर के घरों ने दर्शाया है कि उसके प्रति आज्ञाकारिता की तुलना में “निकटता” महत्वहीन है l उन लोगों की तरह जिन्होंने दृढ़ नींव पर अपने घर बनाए और अक्सर आक्रमण करती जीवन की आंधियाँ सहते हैं, हमें भी अपने प्रभु की बातें पूरी तरह मानना होगा l
परमेश्वर का वचन जीवन का सबसे दृढ़ आधार है l