एक सहेली ने मुझे बताया कि वर्षों तक वह शांति और संतोष खोजती रही l वह और उसके पति ने एक बड़ा व्यापार स्थापित करके एक बड़ा घर, सुन्दर कपड़े, और कीमती गहने खरीदे l किन्तु इन संपत्तियों के साथ प्रभावशाली लोगों से मित्रता ने भी शांति की उसकी आन्तरिक इच्छा को सनुष्ट न कर सके l तब एक दिन जब वह उदास और परेशान थी, एक सहेली ने उसे यीशु का सुसमाचार सुनाया l वहाँ उसने शांति के राजकुमार को खोज लिया, और सच्ची शांति और संतोष के विषय उसकी समझ हमेशा के लिए बदल गयी l

अपने मित्रों के साथ आखिरी भोज खाने के बाद उसने इस तरह की ही शांति के शब्द कहे (यूहन्ना 14), जब उसने उनको आनेवाली घटनाओं-उसकी मृत्यु, पुनरुत्थान, और पवित्र आत्मा का अवतरण-के विषय तैयार किया, जो संसार देने में असमर्थ था l वह उनको कठिनाई के मध्य सुख के भाव प्राप्त करना सिखाना चाहता था l

बाद में, पुनरुत्थित प्रभु अपनी मृत्यु के बाद भयातुर शिष्यों के सामने प्रकट होकर, उनका अभिवादन किया, “तुम्हें शांति मिले!” (यूहन्ना 20:19) l अब वह उनको और हमें अपने किये हुए कार्य में विश्राम की एक नयी समझ दे सकता है l ऐसा करके हम हमेशा परिवर्तनशील भावनाओं के मध्य एक अति गहरा भरोसा प्राप्त कर सकते हैं l